रायपुर। दुर्ग में कल एक घोड़े में ग्लैंडर नामक बीमारी पाए जाने के बाद उसे जहर का इंजेक् शन देकर मार दिया गया। कुछ दिनों पहले रायपुर में डॉ. संजय जैन के मार्गदर्शन में 4 घोड़ों को जहर का इंजेक् शन लगाकर मारा गया था। कांकेर में 7 घोड़ों के रक्त की जांच कामधेनु विश्वविद्यालय के लोग कर रहे हैं। राजधानी का पशु पालन विभाग चुप्पी साधे बैठा है। तो वहीं स्वास्थ्य विभाग भी सोया हुआ है। इनको शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार है।
क्या है ग्लैंडर बीमारी:
पशु चिकित्सक डॉ. संजय जैन बताते हैं कि ये घोड़ों में पाई जाने वाली एक संक्रामक बीमारी है। जो संपर्क में आने वाले मनुष्यों में भी फैल सकती है। ऐेसे में आदमी हो या घोड़े दोनों का कोई इलाज नहीं है। घोड़ों को तो सरकार के एनिमल हस्बेंड्री डिपार्टमेंट से परमिशन लेकर प्वाइजन का इंजेक् शन लगा दिया जाता है।
मनुष्यों में क्या-क्या लक्षण हो सकते हैं:
डॉ. संजय जैन ने कहा कि अगर कोई ग्लैंडर से बीमार घोड़े के संपर्क में रहता है। उसकी देखभाल करता हो या फिर उसके साथ कहीं गया हो। ऐसे व्यक्ति को ग्लैंडर बीमारी हो सकती है। इसमें आदमी को बुखार आता है। सिरदर्द होता है। मसल में ऐंठन होती है। इन पर दवाओं का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता।
कैसे इससे बचा जाए:
डॉ. एनपी दक्षिणकर (कुलपति) कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा तथा डॉ. संजय जैन की सलाह है कि घोड़ों के रक्त नमूनों के साथ उनका पालन-पोषण करने वालों के भी ब्लड सैंपल लिए जाएं। दोनों की जांच की जाए। तो वहीं जो भी इफेक्टेड पाया जाए उससे दूरी बनाए रखी जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो फिर ये बीमारी लगातार फैलती जाएगी। डॉ. दक्षिणकर ने कहा कि हम कोशिश कर रहे है कि स्वास्थ्य विभाग को भी इसमें सम्मिलित किया जाए।
स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों ने नहीं उठाया फोन:
मनुष्यों में ये बीमारी न फैले इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग में क्या तैयारियां की गई हैं? यह जानने के लिए जब स्वास्थ्य विभाग की सचिव निहारिका बारिक को फोन लगाया गया तो घंटी बजती रही और फोन नहीं उठाया गया। यही हाल स्वास्थ्य संचालक शिखा राजपूत का भी रहा। और तो और स्वास्थ्य मंत्री का फोन आउट आॅफ रीच बताता रहा। ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार है? या फिर हादसे के बाद ही इनकी तंद्रा टूटने की आदत बनती जा रही है।

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