रायपुर। प्रदेश भर में धड़ल्ले से बिक रहे रसायन युक्त मिलावटी दूध (adulterated-milk) को लेकर सेंटर फॉर सोशल लर्निंग की फाउंडर प्रज्ञा निर्वाणी(founder of center for social learning) ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा(to-stop-adulterated-milk-prgya-nirwani-written-latter-to-chiefminister) है। उन्होंने नरवा, गरुआ, घुरवा बाड़ी की अवधारणा को जनोपयोगी बताते हुए लिखा कि मिलावटी दूध(adulterated milk) को अगर जल्दी नहीं रोका गया तो इसके घातक परिणाम देखने को मिलेंगे।

अतिरिक्त दूध, खोवा, पनीर पर उठाए सवाल:
प्रज्ञा निर्वाणी ने पत्र में लिखा है राजधानी में दूध बेचने वालों की गौ शालाओं पर खाद्य अधिकारी निरीक्षण कर यह सुनिश्चित करें कि उनकी उत्पादन क्षमता कितने लीटर की है? क्योंकि हर गाय और भैंस की प्रतिदिन दूध देने की क्षमता से 3 से 4 गुना अधिक दूध कुछ डेयरी संचालक बेचते हैं। इसके साथ ही साथ वो घी , दही ,पनीर और खोवे का निर्माण भी करते हैं, तो यह अतिरिक्त दूध खोवा,और पनीर आखिर आता कहाँ से है?
अमानक खोवा, दूध:
प्रदेश भर में रसायन युक्त दूध उत्पादन की बात समय समय पर सामने आती रहती है। होली दीवाली के समय अमानक खोवा पनीर पकड़े जाते हैं, केमिकल से बने यह दूध आम आदमी न तो पहचान सकता न ही अंतर कर सकता परन्तु इनके सेवन से कई गंभीर बीमारियों का शिकार जरूर हो रहा है।
आने वाले खतरे की ओर किया इशारा:
वर्तमान परिवेश में यह जरूरी हो गया है कि लोगों को जो भी मिल रहा है कम से कम फायदेमंद नहीं तो हानिकारक न हो, रासायनिक दूध से लीवर सबसे पहले संक्रमित होता है और लंबे समय से इसके सेवन से धीरे -धीरे शरीर के आॅर्गन्स और नर्व सिस्टम फेल होने लगते हैं। गौ शालाओं की दीवारों पर उनके प्रतिदिन उत्पादन क्षमता के तख्ती खाद्य विभाग लगाए और समय समय मे नियमित ग्राहकों के शोसल आडिट कर मिलावटी दूधों के फैल चुके कारोबार पर अंकुश लगाएं। लाखों लीटर दूध की प्रतिदिन आपूर्ति शहर में ही होती है पर उतने गौशालाएं नहीं दिखती हैं।
शाकाहारी परिवार की गृहणियां अपने बच्चों और परिवार के पौष्टिक के लिए मुख्यत: दूध पर आश्रित रहती हैं,जिले भर में दूध के मिलावटी कारोबार पर अगर अंकुश नहीं लगाया गया तो इसकी बड़ी कीमत यहाँ के लोगों को चुकानी पड़ेगी।

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