रायपुर। बस्तर संभाग (Bastar Division) के अबूझमाड़ (Abujhmad) को फिर एक बार समझने की कवायद सरकार ने शुरू की है। सरकार ने IIT रुड़की (IIT Roorkee)  को वहां के गांवों का मसाहती (ऐसे गांव जिनका न तो राजस्व सर्वे हुआ है और न सीमा तय है) खसरा-नक्शा तैयार करने की जिम्मेदारी दी है। राजस्व विभाग ने अबूझमाड़ क्षेत्र में पड़ने वाले तीनों जिलों के कलेक्टरों को इस संबंध में आदेश जारी किया है।

सरकार ने नारायणपुर (Narayanpur), दंतेवाड़ा (Dantewada) और बीजापुर (Bijapur) कलेक्टरों को निर्देश जारी कर कहा है कि नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ (Abujhmad) की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए असर्वेक्षित ग्रामों में नियमित राजस्व अभिलेख के स्थान पर मसाहती खसरा और नक्शा तैयार किया जाए। अबूझमाड़ क्षेत्र की पूरी भूमि को राजस्व भूमि के रूप में मानते हुए यह काम करने को कहा गया है।

4400 वर्ग किलोमीटर की अबूझ पहेली है अबूझमाड़

बस्तर संभाग (Bastar Division) के नारायणपुर (Narayanpur) जिले से लेकर दंतेवाड़ा (Dantewada), बीजापुर (Bijapur) और महाराष्ट्र (Maharastra) की सीमा तक 4400 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत अबूझमाड़ अपने नाम के अनुरूप अबूझ ही है। यहां करीब 237 गांव हैं लेकिन भूमि की सीमा का निर्धारण कभी नहीं हो सका। घने जंगलों, पहाड़ों, नदी-नालों से घिरे अबूझमाड़ में आज भी आदिम सभ्यता जीवित है।

इस तरह तैयार होगा नक्शा

राजस्व विभाग ने कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि IIT रुड़की के सहयोग से असर्वेक्षित ग्रामों के लिए नक्शा तैयार कराएं। IIT से प्राप्त नक्शों की प्रति संबंधित ग्राम पंचायत एवं ग्राम के प्रमुख व्यक्तियों को उपलब्ध कराएं और नक्शे में अंकित प्रत्येक खेत के कब्जेदार के संबंध में जानकारी प्राप्त करें। इस जानकारी के आधार पर सभी संबंधित ग्राम के लिए मसाहती खसरा और नक्शा तैयार किया जाए।

आवश्यकतानुसार होगा संशोधन

नक्शे में ग्रामवासियों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर आवश्यक संशोधन आइआइटी स्र्ड़की के माध्यम से कराया जाए। संशोधित नक्शे में परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होने पर उसे मसाहती नक्शे के रुप में अधिसूचित किया जाए। संबंधित ग्राम पंचायत और ग्राम के प्रमुख व्यक्तियों की सहायता से ग्राम की दखल रहित भूमि का ग्रामवासियों के सामुदायिक उपयोग करने की दशा में इसका उल्लेख करते हुए निस्तार पत्रक तैयार किया जाए।

मुगल शासन के दौरान हुई थी पहली कोशिश

मुगलकाल में अकबर के शासन में एक बार लगान वसूलने के लिए भूमि सर्वेक्षण (Land Survey) शुरू किया गया था जो पूरा नहीं किया जा सका था। ब्रिटिश सरकार ने 1908 में एक और प्रयास किया वह भी विफल रहा। राज्य की पूर्ववर्ती सरकार ने इसरो और आइआइटी रुडकी के सहयोग से हवाई सर्वेक्षण कराया था, लेकिन नक्सली खतरे के कारण जमीन पर सर्वे नहीं हो सका। तीन वर्ष पहले अबूझमाड़ के बाहरी इलाके के गांवों तक ही राजस्व की टीमें पहुंच पाई हैं। इसी बीच विरोध भी शुरू हो गया है।

169 परिवारों को 685 एकड़ का मिला पट्टा

राजस्व अमला व IIT रुडकी की तकनीकी टीम ने करीब डेढ़ वर्ष की मशक्कत के बाद मार्च 2018 तक दस गांव कुंदला, बासिंग, ओरछा, कुरूषनार, कंदाड़ी, कोडोली, जिवलापदर, नेड़नार, ताड़ोनार व आकाबेड़ा का राजस्व सर्वे पूरा किया। इनमें से पांच गांवों में दावा-आपत्ति के निराकरण के बाद मई 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह (Former CM Dr. Raman Singh) ने 169 परिवारों को 685 एकड़ जीमन का अधिकार पत्र दिया था।

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