उचित शर्मा

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सियासी पारी अब छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की प्रतीक बन गई है। चाहे कोई भी अवसर हो मुख्यमंत्री की सोच आम छत्तीसगढ़िया की माली हालत और उनकी खुशहाल जिंदगी के इर्दगिर्द ही दिखाई देती है। रूरल इकानामी की ग्रोथ बढ़ाने के लिए उनकी टीम दिन रात होम वर्क में जुटी है। छत्तीसढ़ में आए इस बदलाव को अगर दूर से देखे तो छत्तीसगढ़ के किसान अब खुद को ठगा हुआ नहीं बल्कि अन्नदाता होने का गर्व महसूस करते दिखते हैं। उन्हें विश्वास हो चला है कि उनकी उपजाई फसल की वाजिब कीमत मिल सके इसके लिए मुख्यमंत्री फिक्रमंद हैं। सही मायने में पिछले 15 साल में प्रदेश में काबिज सरकार के कार्यकाल के दौरान विकास तो दिखा पर इसकी चकाचौंध में आम छत्तीसगढ़िया कहीं खो गया था। “अब बदलाव की बारी है”, हालांकि इस चुनावी नारे को कांग्रेस ने इलेक्शन कैम्पन के दौरान दिया था मगर ये आम छत्तीसगढ़िया की आवाज थी, जिसका असर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के रूप में सामने आया। भूपेश ने विपक्ष में रहने के दौरान छत्तीसगढ़ियों के इस दर्द को समझा था, यही वजह है​ कि वो अब उन सपनों को पूरा करने दिन-रात एक कर रहे हैं।

अब दीपावली के अवसर पर कुम्हारों के बनाए दीये खरीदने की जो अपील उन्होंने जारी की है उसके पीछे उनकी सोच साफ नजर आती है। अब कुम्हारों को शहरों में अपनी गुमठी लगाने में किसी सरकारी चाबुक से डरने की जरूरत नहीं है, वे अपने सामानों की बिक्री बिना डरे कर सकते हैं। अफसरों को हिदायत दी गई है कि मिटटी के ​दीये बनाने वाले कुम्हारों को परेशान न किया जाए। उन्हें अपने पुश्तौनी धंधे से न रोका जाए, ताकि उनकी भी दिवाली मन सके। ऐसा बहुत कम देखने में आता है जब सरकार की योजना गरीब और गांवों के इर्दगिर्द ही घूमती दिखती हो और धरातल में साकार होती भी नजर आती हो, पर बदलते छत्तीसगढ़ में ऐसा ही दिख रहा है। मुख्यमंत्री त्योहार के अवसर पर ग्रामीण शिल्पकारों और जुलाहों की फिक्र करते दिखे। सरकार ने कलेक्टरों के नाम जो परिपत्र जारी किया है उसमें ग्रामीण शिल्पकारों के बनाए गए उत्पाद खरीदने की अपील की गई है। बिना लाग लपेट के कहे तो सरकार के कामकाज से अपने सोलहवें साल की दहलीज पर खड़े नए छत्तीसगढ़ के आम छत्तीसग​ढ़िया के चेहरों पर जो गर्व वाली फीलिंग दिखाई देती है वो इसी का नतीजा है।

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