टीआरपी डेस्क। कार्तिक पूर्णिमा यानि देव दिवाली इस साल 12 नवंबर मंगलवार को मनाया जा रहा है। बता दें कि

साल में कुल 12 पूर्णिमा होती है इनमें कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में

स्नान करके दीप दान और अन्न एवं वस्त्र दान करने का पुण्य अन्य दिनों की अपेक्षा कई गुणा माना गया है।

 

धार्मिक मान्यता है कि इस पूर्णिमा के दिन व्रत और पूजन करके बछड़ा दान करने से शिवतत्व और शिवलोक की

प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा को महत्व जितना शैव मत में है उतना ही वैष्णवों में भी है।

 

आइए जानें कार्तिक पूर्णिमा का इतना महत्व क्यों है…

 

इस दिन श्रीहरि ने लिया था मत्स्य अवतार

भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य का माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने

प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण किया था। नारायण के पहला अवतार इस पूर्णिमा के दिन होने

की वजह से वैष्णव मत में इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मान्यता यह भी है कि कार्तिक मास में नारायण मत्स्य रूप

में जल में विराजमान रहते हैं और इस दिन मत्स्य अवतार को त्यागकर वापस बैकुंठ धाम चले जाते हैं।

 

इस दिन शिवशंकर को मिला था त्रिपुरारी नाम

शैव मत को मानने वाले कार्तिक पूर्णमा को अधिक महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं कि इस दिन भगवान शिव को

एक नया नाम मिला था त्रिपुरारी। दरअसल कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने एक अनोखे रथ पर सवार

होकर अजेय असुर त्रिपुरासुर का वध किया था। इस असुर के मारे जाने से तीनों लोकों में धर्म को फिर से स्थापित

किया जा सका। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं और इस दिन देव दिवाली भी मनाई जाती है।

 

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताए थे पितरों की तृप्ति के उपाय

महाभारत का महायुद्ध सामाप्त होने पर पांडव इस बात से बहुत दुखी थे कि युद्ध में उनके सगे-संबंधियों की

असमय मृत्यु हुई उनकी आत्मा की शांति कैसे हो। पांडवों की चिंता को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों

को पितरों की तृप्ति के उपाय बताए। इस उपाय में कार्तिक शुक्ल अष्टमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक की

विधि शामिल थी। कार्तिक पूर्णिमा को पांडवों ने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए गढ़ मुक्तेश्वर में तर्पण और

दीप दान किया। इस समय से ही गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा स्नान और पूजा की परंपरा चली आ रही है।

 

देवी तुलसी का प्राकट्य

पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवी तुलसी का भगवान के शालिग्राम स्वरूप का

विवाह हुआ था और पूर्णिमा तिथि को देवी तुलसी का बैकुंठ में आगमन हुआ था। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के

दिन देवी तुलसी की पूजा का खास महत्व है।

 

मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देवी तुलसी का पृथ्वी पर भी आगमन हुआ है। इस दिन नारायण

को तुलसी अर्पित करने से अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

इसी दिन हुआ था गुरु नानक देवजी का अवतरण

हिंदू धर्म की रक्षा के लिए सिख धर्म की स्थापना हुई थी। इस धर्म के प्रथम गुरु बाबा नानक देवजी का जन्म भी

कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस दिन को सिख धर्म में प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है। गुरुद्वारों में

इस दिन विशेष कार्यक्रमों और लंगर का आयोजन होता है।

 

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