नई दिल्ली। पूर्वोत्तर से सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति न्यायमूर्ति रंजन गोगोई रविवार को

भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो गए। उन्हें दशकों से चले आ रहे राजनीतिक और धार्मिक

रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद के पटाक्षेप का श्रेय जाता है।

 

न्यायाधीश और प्रधान न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गोगोई का कार्यकाल कुछ विवादों और व्यक्तिगत आरोपों

से अछूता नहीं रहा लेकिन यह कभी भी उनके न्यायिक कार्य में आड़े नहीं आया। इसकी झलक बीते कुछ दिनों में

देखने को मिली जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कुछ ऐतिहासिक फैसले दिये।

 

उनकी अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने नौ नवंबर को अयोध्या भूमि विवाद में फैसला सुनाकर अपना नाम

इतिहास में दर्ज करा लिया। यह मामला 1950 में उच्चतम न्यायालय के अस्तित्व में आने के दशकों पहले से चला

आ रहा था।

 

सर्वोच्च अदालत में उनके कार्यकाल को हालांकि इसलिये भी याद रखा जाएगा कि वह न्यायालय के उन चार सबसे

वरिष्ठ न्यायाधीशों में शामिल थे जिन्होंने पिछले साल जनवरी में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के काम करने के तरीकों

पर सवाल उठाए थे।

 

“स्वतंत्र न्यायाधीश और आवाज उठाने वाले पत्रकार लोकतंत्र की सुरक्षा की पहली पंक्ति हैं।” न्यायमूर्ति गोगोई ने उसी

कार्यक्रम में कहा था कि न्यायपालिका आम आदमी की सेवा के योग्य बनी रहे इसके लिये “सुधार नहीं क्रांति” की

जरूरत है। …न्यायमूर्ति गोगोई

 

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