टीआरपी न्यूज डेस्क। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने बाद एक महीने से जारी उठापटक

आखिर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की उसी ख्वाहिश के साथ खत्म हुई है, जिसकी वजह से अब तक

सरकार बन नहीं सकी थी। ठाकरे की शर्त थी कि सीएम के पद पर शिवसैनिक ही बैठेगा और अब गुरुवार

शाम 6.40 बजे वो खुद ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर ‘पिता बालासाहेब ठाकरे से किया वादा’ पूरा कर दिया।

 

कभी संपादक थे उद्धव

 

आपको बता दें कि पार्टी के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के बाद पार्टी की कमान संभालने वाले उद्धव ठाकरे

का जन्म 27 जुलाई 1960 को मुंबई में हुआ था। उन्हें 2003 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से पहले

शायद ही कोई जानता हो। राजनीति में कदम रखने से पहले उद्धव पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ का काम देखते थे।

उद्धव ठाकरे प्रफेशनल फोटोग्राफर और लेखक हैं। उनका काम दर्जनों पत्रिकाओं और किताबों में देखा जा

सकता है।

 

बेटे आदित्य को बनाया परिवार का पहला विधायक :

उद्धव की शादी एक बिजनसमैन माधव पाटनकर की बेटी रश्मि से 13 दिसंबर 1989 को हुई थी। रश्मि ने

1987 में एलआईसी में काम करना शुरू किया जहां उनकी मुलाकात एमएनएस चीफ राज ठाकरे की बहन

जयवंती से हुई। बाद में रश्मि उद्धव से मिलीं।

 

शादी के बाद दोनों के दो बेटे- आदित्य और तेजस हुए। आदित्य जहां दादा बालासाहेब और पिता उद्धव ठाकरे

के नक्शे कदम पर चलते हुए कम उम्र में ही राजनीति में आ गए, वहीं तेजस इससे ठीक उलट लाइमलाइट से

दूर रहना पसंद करते हैं। आदित्य ऐसे पहले ठाकरे भी बन गए जिन्होंने चुनावी मैदान में कदम रखा और वर्ली

विधानसभा सीट से विजयी हुए।

 

पहली बार दिलाई थी सफलता :

 

2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद उद्धव शिवसेना के अध्यक्ष बने थे। उद्धव ठाकरे को पहली बार 2002 में

बृहन मुंबई नगर निगम के चुनावों की जिम्मेदारी सौंपी गई और शिवसेना को इसमें भारी सफलता मिली। हालांकि,

इस दौरान उद्धव ज्यादातर वक्त ‘सामना’ को ही दे रहे थे। इसके बाद 2004 में बाल ठाकरे ने अपने भतीजे राज

ठाकरे को दरकिनार करते हुए उद्धव ठाकरे को शिवसेना का अगला मुखिया घोषित कर दिया था।

 

पहले 40 साल नहीं थी कोई पहचान :

उससे पहले, 2003 में उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया गया था। दिलचस्प

बात यह है कि उद्धव अपनी जिंदगी के पहले 40 साल पार्टी से दूर रहे थे और उन्हें कोई नहीं जानता था। उद्धव

के पार्टी का अध्यक्ष बनने से हर कोई हैरान था। तब तक माना जाता था कि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे इस पद

पर होंगे, लेकिन बालासाहेब के फैसले ने सबको हैरान कर दिया। राज ने बाद में अपनी खुद की पार्टी महाराष्ट्र

नवनिर्माण सेना (एमएनएस) बना ली। यहां तक कि पार्टी के सीनियर नेता और पूर्व सीएम नारायण राणे ने भी

उद्धव से मतभेदों के चलते पार्टी छोड़ दी थी।

 

‘रिमोट कंट्रोल’ नहीं फ्रंटफुट पर खेलेगी शिवसेना :

माना जाता है कि उद्धव ने पार्टी की कमान संभालने के बाद कट्टर हिंदुत्ववादी स्टैंड को नरम किया। शायद यही

वजह रही कि कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियां विचारधारा में टकराव के बावजूद शिवसेना के साथ गठबंधन

करने का फैसला कर सकीं। इस बार के विधानसभा चुनाव में पहली बार ठाकरे परिवार के किसी सदस्य

(अपने बेटे आदित्य ठाकरे) को चुनाव के मैदान में उतारकर उन्होंने पहले ही दशकों पुरानी परंपरा तोड़ दी।

अब सीएम पद संभालने के साथ ही पार्टी की ‘रिमोट कंट्रोल’ राजनीति से बाहर आकर सत्ता चलाने की जो रीति

उद्धव ने चलाई है, उस पर पूरे महाराष्ट्र की नजरें टिकी रहेंगी।

 

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