इस्लामाबाद। पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाने वाली पाकिस्तान की विशेष

अदालत ने गुरुवार को एक विचित्र फैसले में कहा कि यदि फांसी दिये जाने से पहले मुशर्रफ की मौत हो

जाती है तो उनके शव को इस्लामाबाद के सेंट्रल स्क्वायर पर खींचकर लाया जाए और तीन दिन तक

लटकाया जाए।

 

तीन सदस्यीय विशेष अदालत की पीठ ने 76 वर्षीय मुशर्रफ को छह साल तक कानूनी मामला चलने के बाद

देशद्रोह को लेकर मंगलवार को उनकी गैर मौजूदगी में फांसी की सजा सुनाई थी। मंगलवार को मुशर्रफ को

मौत की सजा सुनाने वाली तीन सदस्यीय पीठ के प्रमुख और पेशावर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वकार

अहमद सेठ ने 167 पन्नों का विस्तृत फैसला लिखा है।

 

उन्होंने लिखा कि फांसी दिये जाने से पहले मुशर्रफ की मौत होने पर भी पूर्व राष्ट्रपति को फांसी पर लटकाया

जाना चाहिए। फैसले के अनुसार हम कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निर्देश देते हैं कि भगोड़े/दोषी को गिरफ्तार

करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी जाए और सुनिश्चित करें कि कानून के हिसाब से सजा दी जाए। अगर वह मृत

मिलते हैं तो उनकी लाश को इस्लामाबाद के डी चौक तक खींचकर लाया जाए तथा तीन दिन तक लटकाया जाए।

 

 

डी चौक या डेमोक्रेसी चौक के पास कई महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तर हैं। यहां राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय,

संसद और उच्चतम न्यायालय भी हैं। मुशर्रफ के खिलाफ फैसला 2-1 के बहुमत से दिया गया। लाहौर उच्च न्यायालय

के जस्टिस शाहिद करीम ने मृत्युदंड का समर्थन किया, वहीं सिंध हाई कोर्ट के जस्टिस नजर अकबर ने फांसी से

असहमति जताई। हालांकि जस्टिस करीम भी मुशर्रफ की मौत के बाद उनके शव को खींचकर लाने तथा लटकाने की

बात से असहमत हुए। उन्होंने लिखा कि मैं इससे असहमत हूं। कानून में इसके लिए कोई आधार नहीं है और ऐसा करना

इस अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। मेरे विचार से दोषी को मौत की सजा देना ही काफी है। इस फैसले के बाद

सेना नाराज हो गयी है।

 

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