टीआरपी डेस्क। पहले ज्यादाकर युवा अपने वीकेंड का ज्यादातर हिस्सा वेब सीरीज देखकर बिताते थे।

आलम यह था कि एक दिन में 10-10 घंटे वह ऑनलाइन ही रहते थे। हालांकि, अब उन्होंने अपनी इस आदत

में बदलाव कर लिया है। बेंगलुरु में तो इसे बकायदा डोपामाइन फास्टिंग का नाम दिया गया है, यानी कि

वह उपवास जो कोई लत छुड़वाने के लिए रखा जाता है।

15 से 24 साल के युवा हैं शिकार :

इस बारे में सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नॉलजी के प्रफेसर डॉ. मनोज कुमार शर्मा बताते हैं,

‘मैं इस उपवास को डिजिटल फास्टिंग कहता हूं और इसके लिए अपने पेशेंट्स को शुरू में ही बता

देता हूं कि यह आदत इतनी आसानी से नहीं जाने वाली। इस आदत पर काबू पाने के लिए धीरे-धीरे

इसकी लत को छोड़ना होगा। बकौल प्रफेसर शर्मा, मैंने अभी तक जितने भी पेशेंट्स का इलाज किया है,

उनमें से ज्यादातर की उम्र 15 से 24 साल के बीच थी। इसमें भी ज्यादातर लोगों को सोशल मीडिया,

ऑनलाइन गेमिंग और पॉर्नोग्रफी की लत थी। डॉ. मनोज आगे कहते हैं, ‘हर हफ्ते तकनीकी लत से

जुड़े 10 केस मेरे पास आते हैं। मानसिक परेशानियों के अलावा इस अडिक्शन के चलते लोगों को

आंखों की समस्या, हाथ और बाजुओं में दर्द, हर समय थकावट जैसी दिक्कतें भी हो जाती हैं।’ बकौल

डॉक्टर यह लत कई बीमारियों को पैदा करने में मददगार होती है।

कैसे रखा जाता है ये उपवास :

इस उपवास में आपको फोन, लैपटॉप जैसी चीजों से दूरी बनाकर असली दुनिया का अनुभव लेना होता है।

चैतन्य (बदला हुआ नाम) ने इस उपवास के जरिए अपनी लत को छुड़वाया है। इसके लिए उन्होंने अपने

दोस्तों, ऑफिस और घर पर पहले ही मेसेज कर दिया ताकि अगर अगली सुबह 10 बजे तक वह किसी

से कॉन्टैक्ट न कर पाएं, तो कोई परेशान न हों। इसके बाद वह बस पकड़कर अपने शहर में घूमने के लिए

निकल गए। यह उपवास गुरुवार को था, जो कि बिजी दिन होना था। लेकिन उपवास की वजह से वह इस

दिन काफी फ्री रहे। इस दौरान वह मंदिर और कुछ टूरिस्ट स्पॉट गए। सोशल मीडिया से 24 घंटे की इस दूरी

मन, शरीर और यहां तक कि आत्मा को भी तरोताजा करती है।

मानसिक रूप से बीमार युवा :

पिछले दिनों मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर कई दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में

कई रिसर्च हुईं। इन सभी के परिणाम परेशान करनेवाले रहे। स्टडी में सामने आया कि टीनेजर्स और युवाओं

के बढ़ते मोबाइल प्रेम के कारण वे मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। उन्हें अपने इमोशंस को ठीक रूप

से व्यक्त करने में दिक्कत आ रही है और उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है।

82 प्रतिशत युवा तनाव का शिकार :

अगर सिर्फ भारत की बात करें तो एक प्राइवेट फर्म द्वारा की गई स्टडी में साबित हुआ है कि अन्य

विकासशील देशों की तुलना में 82 प्रतिशत भारतीय युवा किसी ना किसी तरह के तनाव का शिकार हैं।

शारीरिक बीमारियों की बाढ़ :

ऐसा नहीं है कि मोबाइल के कारण सिर्फ मानसिक तनाव बढ़ रहा है बल्कि मोटापा, हार्ट डिजीज,

अस्थमा, पाचन संबंधी समस्याओं जैसी बीमारियां भी मोबाइल का इस्तेमाल दे रहा है।

इन पर भी होती है खीज

तनाव से भरे वर्कप्लेस

वाई फाई जाने पर फूटता गुस्सा

मेरा फोन क्यों हटाया?

यही बचा है रास्ता

युवाओं में बढ़ते तनाव पर मनोचिकित्सकों का कहना है कि हर व्यक्ति के शरीर पर तनाव का अलग

असर होता है। पाचन से लेकर मूड स्विंग तक कई तरह की दिक्कतें युवाओं को घेर लेती हैं। जरूरी है

कि दिन में फिजिकल ऐक्टिविटी की जाए और कुछ वक्त के लिए मोबाइल से ब्रेक लिया जाए।

दिमाग से निकलता है सुखद हार्मोन :

माइंडफिट के सायकायट्रिस्ट डॉ. श्याम भट्ट कहते हैं कि डोपामाइन नाम का यह उपवास उन गतिविधियों

की लत को दूर करता है जिन्हें करके सुखद अहसास होता है। इनमें टेक्नॉलजी का इस्तेमाल, सोशल मीडिया,

सेक्स, मीठा खाना, कॉफी वगैरह शामिल हैं। डॉ. भट्ट कहते हैं, ‘डोपामाइन एक तरह का न्यूरोकैमिकल (हार्मोन)

होता है जो कि सुखद अनुभव होने पर दिमाग से रिलीज होता है और इनाम मिलने जैसा अनुभव देता है।

लेकिन धीरे-धीरे इस अहसास की चाह बढ़ती जाती है और आदमी उस काम में लगा रहता है। इसलिए

डोपामाइन नाम का यह उपवास आपके दिमाग को रीसेट करता है, लत से दूर करता है और आपको रोजमर्रा

की जिंदगी में असली खुशी का अहसास कराता है।’

इंटरनेट की लत छुड़ाने के लिए सलाह :

स्क्रीन फ्री संडे की शुरुआत
इंटरनेट फास्टिंग का इस्तेमाल
छुट्टी वाले दिन फोन का इस्तेमाल नहीं

 

डॉ. मनोज शर्मा के मुताबिक, खुशी हमारी जिंदगी का अहम और जरूरी हिस्सा है। ऐसे में यह उपवास उस

व्यक्ति को नहीं करना चाहिए जो बहुत दुखी है या पहले किसी तरह की मानसिक समस्या से जूझ चुका है।

यह उपवास अपने मानसिक कंफर्ट को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए।

 

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