रायपुर। आदिवासी बुद्धिजीवियों के सम्मेलन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी मां की कहानी सुनाकर

एनआसी के दर्द को बयां किया। आदिवासी अस्मिता-कल, आज और कल विषय पर आयोजित राष्ट्रीय

शोध संगोष्ठी में मुख्यमंत्री ने कहा कि एनआरसी अंग्रेजों ने बनाया और इसका सबसे पहले महात्मा गांधी

ने इसका विरोध किया।

 

अगर देश में एनपीपी लागू हुआ तो सबसे ज्यादा आदिवासियों को नुकसान होगा, क्योंकि वे जंगल में रहते

हैं और उनके पास कोई दस्तावेज नहीं होते। मुख्यमंत्री ने कहा कि यहां आदिवासियों की नहीं, मैं अपनी

बात करता हूं। जब मैं अपनी मां का जन्म प्रमाण पत्र प्रमाणित नहीं कर पाया, तो आदिवासी कैसे कर पाएंगे।

 

मुख्यमंत्री ने भावुक होकर कहा कि कुछ दिनों पहले ही उनकी मां शांत (निधन) हुईं। बघेल ने कहा-मेरी मां

चौथी क्लास तक पढ़ी थी। इस दौरान मामा के गांव और रायपुर में दो स्कूलों में पढ़ाई की। बचपन में जब मैं

मां से उनका जन्मदिन पूछता था, तो वह बता नहीं पाती थी। जब बड़ा हुआ तो उनकी मार्कशीट पर जन्म

तारीख खोजने का प्रयास किया। दोनों स्कूल की मार्कशीट को जब मिलान किया तो अलग-अलग जन्म तारीख

मिली। मैं अपनी मां की जन्म की तारीख प्रमाणित नहीं कर सकता, तो आदिवासी कैसे करेगा।

 

ऐसे में जब एनआरसी और एनपीपी लागू होगा तो मैं खुद अपने दस्तावेज प्रमाणित नहीं कर पाऊंगा और देश

से बाहर चला जाऊंगा। एनआरसी लागू हुआ तो आधा हिंदुस्तान डिटेंशन सेंटर बन जाएगा। यह हिंदु-मुसलमान

का मामला नहीं है, पूरे हिंदुस्तान का मामला है। इसलिए मैं कहता हूं कि एनआरसी लागू हुआ तो उस पर दस्तखत

नहीं कस्र्गा।

वैश्विक मंदी से लड़ने की ताकत छत्तीसगढ़ में

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम तटस्थ नहीं हैं, हम लड़ रहे हैं। वैश्विक मंदी से लड़ने की ताकत छत्तीसगढ़ में है। आदिवासी

अजायबघर में रखने की वस्तु नहीं है। उनके सीने में भी दिल धड़कता है, उनके भी कुछ सपने हैं, जिसे हम सबको

मिलकर पूरा करना है। आदिवासी की अस्मिता उनकी मातृ भाषा से जुड़ी है। छत्तीसगढ़ के लिए सबसे बड़ी चुनौती

कुपोषण से मुक्ति है।

 

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