बिलासपुर। हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रैक्टिशनर इन मॉर्डन एंड होलिस्टिक मेडिसीन त्रिवर्षीय चिकित्सा पाठ्यक्रम को वैध माना है। कोर्ट ने छत्तीसगढ़ चिकित्सा मंडल की संवैधानिकता को भी बरकरार रखा है।

साथ ही कहा है कि राज्य शासन स्वास्थ्य संबंधी नीतिगत निर्णय लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। यह मामला कोर्ट में 20 साल तक चला। हाई कोर्ट के निर्णय से त्रिवर्षीय चिकित्सा पाठ्यक्रम के तहत डिग्रीधारकों को राहत मिली है।

बता दें कि वर्ष 2001 में राज्य शासन ने दूरस्थ सुदूर ग्रामीण अंचलों में चिकित्सकों की कमी को देखते हुए छत्तीसगढ़ चिकित्सा मंडल एक्ट की स्थापना की। जिसके तहत प्रैक्टिशनर इन मॉडर्न एंड होलिस्टिक मेडिसीन (पीएमएचएम) पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई थी। जिसे राज्य के दो बड़े विश्वविद्यालय पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के माध्यम से मान्यता दी गई थी।

आठ साल पहले दायर हुई थी एक और याचिका

वर्ष 2012 में शासकीय चिकित्सक संघ ने भी इस पाठ्यक्रम के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि राज्य शासन ने नियम विरुद्घ 741 चिकित्सा अधिकारियों के पद को विलोपित करते हुए ग्रामीण चिकित्सा सहायक के रेगुलर पद का सृजन कर दिया है। याचिका में इस पद को विलोपित करने की मांग की थी। इसमे भी हाईकोर्ट ने अंतिम निर्णय में आरएमए के पद को पूर्ववत रखा है।

ये हैं फैसले का मुख्य बिंदु

छत्तीसगढ़ चिकित्सा मंडल का गठन असंवैधानिक नहीं,नहीं होगा भंग। ग्रामीण चिकित्सा सहायक आरएमए का पद भी नहीं होगा विलोपित। पूर्व की भांति कार्य करते रहेंगे। शासकीय नौकरी में कोई आंच नहीं आएगा। पूर्ववत करते रहेंगे कार्य।

पद व कैडर बनाना शासन का अधिकार। राज्य की स्थिति के हिसाब से निर्णय लेने का अधिकार राज्य शासन को ह । शासन ले सकती है नीतिगत निर्णय। समय -समय पर त्रिवर्षीय चिकित्सकों को राज्य शासन द्वारा संचालक स्वास्थ्य सेवाएं द्वारा दिये गए निर्देशों एवं सौंपे गए कार्यों को करने के लिए होंगे बाध्य।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों ,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों में खंड चिकित्सा अधिकारी/ चिकित्सा अधिकारी के सीधे नियंत्रण में करेंगे कार्य। स्वतंत्र प्रैक्टिस पर रोक, परंतु प्राथमिक चिकित्सा, स्थिरीकरण का अधिकार रहेगा,गंभीर स्थिति में प्राथमिक उपचार स्थिरीकरण।

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