नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में विधानसभा में भाजपा की ओर से फ्लोर टेस्ट की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। बुधवार को लंच ब्रेक से पहले कांग्रेस, भाजपा और राज्यपाल की ओर से दलीलें पेश की गईं। कांग्रेस ने कहा कि 19 बागी विधायकों के इस्तीफे सौंपने के पीछे भाजपा की साजिश है। इसकी जांच होनी चाहिए।

बहुमत परीक्षण के लिए रातोंरात मुख्यमंत्री और स्पीकर को आदेश देना राज्यपाल का काम नहीं है। स्पीकर इस मामले में सबसे ऊपर हैं, राज्यपाल उन पर हावी हो रहे हैं। कांग्रेस ने विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई सीटों पर उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने की मांग की। वहीं भाजपा ने इसका विरोध किया और तुरंत फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की। कोर्ट ने कहा कि 16 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट में शामिल हों या नहीं, लेकिन उन्हें बंधक नहीं रखा जा सकता। उन्हें फैसले लेनी की आजादी हो।

कमलनाथ सरकार के बहुमत परीक्षण नहीं कराने के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और 9 भाजपा विधायकों ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है। वहीं, दूसरी याचिका कांग्रेस विधायकों की है, इसमें बेंगलुरु में ठहरे 22 बागी विधायकों को वापस लाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच में कांग्रेस के वकील दुष्यंत दवे, भाजपा के वकील मुकुल रोहतगी, राज्यपाल के वकील तुषार मेहता, स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने पैरवी की।

यह फोटो 16 मार्च का है, इसी दिन राज्यपाल ने पहली बार फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था।

दवे ने कहा कि प्रदेश की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था। चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी कांग्रेस ने उसी दिन विश्वास मत हासिल कर लिया था। बहुमत के साथ 18 महीने सरकार चलाई। भाजपा बलपूर्वक सरकार को अस्थिर कर लोकतंत्र मूल्यों को खत्म करना चाहती है।

उसने 16 विधायकों को अवैध हिरासत में रखा है। इस पर बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने कहा- ये झूठ है, कोई हिरासत में नहीं है।

दवे ने कहा कि हमारे विधायकों से जबरन इस्तीफे लिखवाए गए। होली के दिन भाजपा नेताओं ने जाकर 19 बागी विधायकों के इस्तीफे स्पीकर को सौंप दिए थे। ये बड़ी साजिश है। इसकी जांच जरूरी है। बागी विधायकों को चार्टर्ड विमानों से बाहर ले जाकर भाजपा नेताओं द्वारा बुक किए रिजॉर्ट में रखा गया है।

फ्लोर टेस्ट कराने का निर्णय लेने में स्पीकर सबसे ऊपर हैं। राज्यपाल उन पर हावी हो रहे हैं। रातोंरात मुख्यमंत्री और स्पीकर को फ्लोर टेस्ट का आदेश देना राज्यपाल का काम नहीं है।

दवे की दलील- राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का आदेश नहीं देना चाहिए था। जो विधायक इस्तीफा दे रहे हैं, चुनाव में जनता के बीच जाएं। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा- वही तो कर रहे हैं। उन्होंने सदस्यता छोड़ दी और फिर से मतदाताओं के पास जाना चाहते हैं।

दवे ने कहा- खाली हुई सीटों पर उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट को टाल दिया जाए। अभी कोई आसमान नहीं गिर पड़ा है कि कमलनाथ सरकार को तुरंत हटाकर शिवराज सिंह को गद्दी पर बैठा दिया जाए। कोर्ट को बाद में विस्तार से मामला सुनना चाहिए।

भाजपा के वकील रोहतगी ने इस पर विरोध जताते हुए कहा- हम अभी कोर्ट से कोई अंतरिम आदेश चाहते हैं। कांग्रेस 1975 में सत्ता के लिए देश पर इमरजेंसी थोपने वाली पार्टी है। किसी भी तरह सत्ता में बने रहना चाहती है।

सत्ता के लिए अजीब दलीलें दी जा रही हैं। जिसके पास बहुमत नहीं है, वह एक दिन सत्ता में नहीं रह सकता। यहां पहले खाली सीटों पर चुनाव की दलील देकर 6 महीने का प्रबंध करने की योजना है। चुनाव करवाना चुनाव आयोग का काम है। यहां इस पर विचार नहीं हो रहा, फ्लोर टेस्ट पर हो रहा है।

स्पीकर का संतुष्ट होना जरूरीः जस्टिस चंद्रचूड़

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने से पहले स्पीकर का संतुष्ट होना जरूरी है। वहीं, स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जवाब दाखिल करने के लिए वक्त मांगा। राज्यपाल की ओर से मेहता ने कहा- 6 लोग मंत्री थे। जब राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार किया, इसके बाद स्पीकर ने विधानसभा से उनका इस्तीफा मंजूर किया था।

ऐसे केस में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में क्या फैसला दिया?

भाजपा ने याचिका में 1994 के एसआर बोम्मई vs भारत सरकार, 2016 के अरुणाचल प्रदेश, 2019 के शिवसेना vs भारत सरकार जैसे मामलों का जिक्र किया है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था।

अरुणाचल प्रदेश के मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल को लगता है कि मुख्यमंत्री बहुमत खो चुके हैं तो वे फ्लोर टेस्ट का निर्देश देने के लिए स्वतंत्र हैं। 2017 में गोवा से जुड़े एक मामले में फ्लोर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक और टिप्पणी की- ‘फ्लोर टेस्ट से सारी शंकाएं दूर हो जाएंगी और इसका जो नतीजा आएगा, उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी विश्वसनीयता मिल जाएगी।’

राज्यपाल ने दो बार फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था

भाजपा ने दावा किया है कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है और कांग्रेस को सरकार चलाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। इस स्थिति में तत्काल विधानसभा फ्लोर टेस्ट कराया जाए। इससे पहले राज्यपाल लालजी टंडन फ्लोर टेस्ट कराने के लिए 14 और 16 मार्च को मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं।

कमलनाथ दोनों बार राज्यपाल से मिले और उन्हें बताया कि 16 विधायक बेंगलुरु में बंधक बनाकर रखे गए हैं। ऐसी स्थिति में फ्लोर टेस्ट नहीं कराया जा सकता है।

सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन बहुमत परीक्षण होना था, लेकिन राज्यपाल के अभिभाषण के बाद स्पीकर ने कोरोनावायरस का हवाला देते हुए विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च तक स्थगित कर दी थी। सरकार के रवैये से नाराज राज्यपाल अभिभाषण के बाद सिर्फ 12 मिनट में विधानसभा से राजभवन लौट गए थे।

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