रायपुर। IAS डाॅ.आलोक शुक्ला की पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के मामले में लगी याचिका पर सुनवाई के बाद बिलासपुर हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी की बेंच में गुरूवार को इस मामले में चार घंटे तक चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख दिया गया। बता दें कि बीजेपी नेता नरेश गुप्ता की ओर से लगाई गई याचिका में डाॅ.शुक्ला की नियुक्ति को नियम विरूद्ध बताया गया है।

याचिका पक्ष के वकील विवेक शर्मा और गैरी मुखोपाध्याय ने बताया कि कोर्ट में जिरह के दौरान उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि संविदा भर्ती नियम के रूल 4 (1) के तहत संविदा नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किए जाने का प्रावधान है, जबकि डाॅ.आलोक शुक्ला की संविदा नियुक्ति के पहले किसी तरह का विज्ञापन जारी नहीं किया गया। शर्मा ने कहा कि रूल 9 के तहत इंटिग्रिटी डाउटफुल होने तथा क्रिमिनल केस पेंडिंग होने पर संविदा नियुक्ति नहीं दी जा सकती। डाॅ. शुक्ला नान घोटाला मामले में अभियुक्त हैं और उनका नाम चार्जशीट में है। ईडी की जांच जारी है। प्रावधानों के तहत डाॅ.आलोक शुक्ला को संविदा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

संविदा भर्ती नियम का इस्तेमाल करते हुए डाॅ.शुक्ला को दी गई है नियुक्ति

वकीलों ने बताया कि सरकार की ओर से पक्ष रखा गया है कि संविदा भर्ती नियम के रूल 17 में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए डाॅ.शुक्ला को नियुक्ति दी गई है। जबकि रूल में सरकार की ओर से दिए जाने वाला रिलेक्सेशन पब्लिक परपज से जुड़े मसलों पर ही दिया जा सकता है। क्वालिफिकेशन में रिलेक्सेशन सरकार दे सकती है, लेकिन सर्विस के लिए इंटिग्रिटी जरूरी है। चूंकि शुक्ला के खिलाफ प्रकरण चल रहा है, लिहाजा उनकी संविदा नियुक्ति में उन्हें किसी तरह का रिलेक्सेशन नहीं दिया जा सकता।

बता दें कि शुक्ला 30 मई को ही रिटायर हुए थे.राज्य शासन ने रिटायरमेंट के अगले दिन ही उन्हें प्रमुख सचिव के रूप में संविदा नियुक्ति दी थी. बीजेपी नेता नरेशचंद्र गुप्ता की ओर से वकील विवेक शर्मा और गैरी मुखोपाध्याय ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल किया था। इस याचिका में संविदा नियुक्ति पर डाॅक्टर शुक्ला को लिए जाने की राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाया गया है।

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