टीआरपी डेस्क। बिहार विधानसभा (Bihar Assembly Elections) की कुल 40 सीटें एससी और एसटी के लिए सुरक्षित हैं। इन पर कभी लोक जनशक्ति पार्टी का दबदबा नहीं रहा। मगर इस बार बिहार के सबसे बड़े दलित नेता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के निधन (Death) के बाद कयास लगाये जा रहे हैं कि चिराग पासवान को दलितों के साथ ही अन्य मतदाताओं के सहानूभूति वोट (Sympathy Vote) मिलेंगे।
इन जिलों में बिगड़ेगा खेल
बिहार के 38 में से पांच ऐसे जिले हैं जहां चिराग ( Chirag Paswan ) को (Bihar Assembly Elections) अधिक लाभ मिल सकता है। खगड़िया, समस्तीपुर, जमुई, वैशाली और नालंदा इनमें खगड़िया पासवान का पैतृक जिला है। यहां के अलौली विधानसभा क्षेत्र से पासवान पहली बार विधायक चुने गये थे।
इसके अलावा वैशाली, समस्तीपुर, जमुई और नालंदा ऐसे जिले हैं जहां दलित वोटों (Dalit votes) की संख्या अधिक होने के कारण इस बार के चुनाव में चिराग को सहानुभूति लहर का फायदा मिलने की उम्मीद है। चिराग की पार्टी लोजपा ने जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं इसलिए इसका नुकसान भी जदयू को ही होगा।
जेडीयू के खिलाफ हर सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगी लोजपा
एलजेपी नेता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के निधन से खेल तो सभी दलों का खराब होगा, लेकिन इसका ज्यादा असर जेडीयू पर पड़ेगा, क्योंकि कुछ दिन पहले ही लोजपा ने एनडीए से अपना नाता तोड़ते हुए कहा था कि लोजपा जेडीयू के खिलाफ हर सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगी। इस बीच केंद्रीय मंत्री और एलजेपी के संस्थापक रामविलास पासवान का निधन हो गया।
16 फीसदी है महादलित और दलितों की आबादी
बिहार (Bihar) में अभी की तारीख में महादलित और दलित वोटरों की आबादी कुल 16 फीसदी के करीब है। 2010 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) से पहले तक रामविलास पासवान इस जाति के सबसे बड़े नेता बताते रहे हैं। दलित बहुल सीटों पर उनका असर भी दिखता था लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने नीतीश का साथ नहीं दिया था। इससे खार खाए नीतीश कुमार ने दलित वोटों में सेंधमारी के लिए बड़ा खेल कर दिया था। 22 में से 21 दलित जातियों को उन्होंने महादलित घोषित कर दिया था,लेकिन इसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया था।
उस वक्त महादलितों की आबादी 10 फीसदी हो गई थी
नीतीश कुमार के इस खेल से उस वक्त महादलितों की आबादी 10 फीसदी हो गई थी और पासवान जाति के वोटरों की संख्या 4.5 फीसदी रह गई थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के इस मास्टरस्ट्रोक का असर पासवान पर दिखा था। 2009 के लोकसभा चुनाव में वह खुद चुनाव हार गए थे। 2014 में पासवान एनडीए में आ गए। नीतीश कुमार उस समय अलग हो गए थे।
2015 में पासवान एनडीए गठबंधन के साथ मिल कर चुनाव लड़े लेकिन उनकी पार्टी बिहार विधानसभा में कोई कमाल नहीं कर पाई। बाद में नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में आ गए, तो गिले-शिकवे भूल कर 2018 में पासावन जाति को महादलित वर्ग में शामिल कर दिया। अब चिराग यह बात अपने वोटरों को बतायेंगे और अपने पिता के साथ हुए अपमान की कहानी भी अपने वोटरों को सुनायेंगे। राजनीति के जानकारों का कहना है कि इसका लाभ चिराग को चुनाव में मिलेगा।
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