रायपुर। (Coal Mines Auction Jindal Power) कोयला खदानों की नीलामी में केंद्र सरकार के नए नियम से निविदा कंपनियों ने फिर बड़ा खेल शुरू कर दिया है। आपको बता दें कि 5 साल पहले छत्तीसगढ़ के जिस गारे पेलमा 4/1 खदान को जिंदल पॉवर ने 1585 रु. टन की दर नीलामी में हासिल किया था, उसी खदान को आबंटन निरस्त होने के बाद दोबारा नीलामी में जिंदल पॉवर चार गुना से कम कीमत 385 रु. टन पर दोबारा हासिल कर लिया।

दरअसल केन्द्र सरकार ने प्रतिस्पर्धा के लिए न्यूनतम चार कंपनियों की शर्त को घटाकर दो कर दिया है। न्यूनतम दो बोलीदार आने पर भी नीलामी हो सकेगी। इसका कंपनियों ने जमकर फायदा उठाया और पसंदीदा खदान कम दर पर पाने में सफल रही हैं।

बता दें कि कोयला घोटाले के खुलासे के बाद केन्द्र सरकार ने खनन चल रही 205 खदानों को भी वापस ले लिया था और नए सिरे से नीलामी के जरिए आबंटन का फैसला लिया गया। पहली बार वर्ष 2015 में नीलामी हुई, जिसमें छत्तीसगढ़ की चार खदानों की बोली लगाई गई, इन खदानों में रायगढ़ जिले की गारे पेलमा 4/1, गारे पेलमा 4/7, चोटिया और एक अन्य खदान शामिल थीं।

केंद्र के नए नियम में हुआ ऐसा खेल

साल 2015 में जिंदल पॉवर ने अपनी पुरानी खदान गारे पेलमा 4/1 को 1585 रूपए प्रतिटन की बोली लगाकर हासिल कर लिया था। मगर कंपनियों ने खदान हासिल करने के बाद माइनिंग शुरू नहीं की तब केन्द्र सरकार ने तकनीकी कारण गिनाकर आबंटन निरस्त कर दिया था।

नियम में बदलाव के बाद जब दोबारा खदानों के व्यावसायिक उत्पादन के लिए नीलामी शुरू हुई है तो नए नियमों का फायदा उठा कर जिंदल पॉवर ने गारे पेलमा 4/1 को महज 385 रूपए प्रति टन की दर से दोबारा हासिल कर लिया। इसमें हर साल 6 लाख टन कोयला उत्पादन का अनुमान है, और 632 करोड़ रूपए राजस्व की प्राप्ति की उम्मीद जताई जा रही है।

नीलामी नहीं ये खदानों की बंदरबांट

खदान और जंगल के मुद्दों पर लगातार काम करने वाले छत्तीसगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने नए नियम से कोयला खदान नीलामी की प्रक्रिया को दिखावा करार देते हुए टीआरपी से चर्चा में कहा कि ये नीलामी नहीं खदानों की बंदरबांट है।

वे बताते हैं कि कोयला खदान नीलामी से राज्य सरकार को रायल्टी का नुकसान होगा। नए नियम शर्तें ही कुछ इस तरह की बनाई गई हैं, जिससे कंपनियों को काफी फायदा है। कंपनियां आपस में तय कर कम कीमत में खदान हासिल कर रही हैं। जो खदानें पहले ज्यादा मूल्य पर नीलामी हुई थी वो कई गुना कम कीमत पर उद्योग घरानों को दी जा रही है। इससे केंद्र को भी राजस्व हानि होगी।

हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि इस बार नीलामी के नियम बदले हैं, इसे राज्य सरकार को नुकसान नहीं होगा। जितनी रायल्टी की उम्मीद थी, उतनी ही मिल सकती है, हां केंद्र सरकार को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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