टीआरपी डेस्क। बस्तर की शामों को एक बार फिर से मांदर की थाप और लोकगीतों की स्वरलहरियां नम करने लगीं हैं। गांव-गांव में पहुंच रहे कला-जत्थों के माध्यम से न केवल सांस्कृतिक वातावरण लौट रहा है, बल्कि ग्रामीण बेहतर जिंदगी जीने के लिए प्रेरित भी हो रहे हैं। उन्हें शासकीय योजनाओं की जानकारी मिल रही है, साथ ही यह भी पता चल रहा है कि इन योजनाओं का लाभ कैसे उठाया जा सकता है।

बस्तर संभाग के सुकमा जिले के सबसे अधिक संवेदनशील एवं पहुँच विहीन क्षेत्रों में शामिल जगरगुण्डा और चिंतलनार से लेकर बीजापुर जिले के गंगालूर, बासागुड़ा तक और नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ के बीहड़ों में पहुंचकर ये लोक कलाकार नाटक, गीत और संगीत के माध्यम से शासन की योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं।

कई वर्षों से छाई अशांति के कारण विकास की दौड़ में पीछे रह जाने वाले दुर्गम क्षेत्र के ग्रामीणों को विकास में प्राथमिकता देते हुए शासन की योजनाओं को पहुंचाने का कार्य कला-जत्थों के माध्यम से किया जा रहा है। बस्तर संभाग के ऐसे क्षेत्र, जो आधुनिक संचार साधनों से दूर हैं, वहां प्रचार का यह तरीका कभी प्रभावी साबित हो रहा है।

जनसंपर्क विभाग द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और आजीविका सहित कई क्षेत्रों में संचालित लोककल्याणकारी योजनाओं की जानकारी जन-जन तक पहुंचाई जा रही है। छत्तीसगढ़ी, हल्बी, गोंडी, भतरी, धुरवा और दोरली जैसी स्थानीय बोलियों के माध्यम से रोचक नाटक और गीत-संगीत के साथ दी जा रही शासन के योजनाओं की जानकारी लोगों को लुभा रही हैं। कला जत्थों द्वारा किसानों, युवाओं, महिलाओं की उन्नति के लिए संचालित योजनाओं के साथ-साथ उनके क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए किए जा रहे कार्य, अधोसंरचना विकास, स्थानीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए किए जा रहे प्रयासों के संबंध में जानकारी दी जा रही है।

वनवासी क्षेत्रों में तेंदूपत्ता पारिश्रमिक के बढ़े हुए दर का लाभ उठाने, नरवा, गरवा घुरवा बाड़ी जैसी योजनाओं से जुड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कला जत्था दल द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित छत्तीसगढ़ शासन की योजनाओं से संबंधित प्रचार सामग्री भी ग्रामीणों को दी जा रही है।

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