अनाथ बच्चों के गोद का आमंत्रण देना गैरकानूनी, सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई का दिया निर्देश
अनाथ बच्चों के गोद का आमंत्रण देना गैरकानूनी, सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई का दिया निर्देश

नई दिल्ली। आज शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में दिए शाहीन बाग फैसले को बरकरार रखा है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि धरना प्रदर्शन लोग अपनी मर्जी से और किसी भी जगह नहीं कर सकते। साथ ही अदालत ने कहा कि विरोध जताने के लिए धरना प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन उसकी भी एक सीमा तय है। 

प्रदर्शनकारियों को हटाने का अधिकार पुलिस के पास है : अदालत

सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2020 में फैसला सुनाया था कि धरना प्रदर्शन के लिए जगह चिन्हित होनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति या समूह इससे बाहर धरना प्रदर्शन करता है, तो नियम के मुताबिक प्रदर्शनकारियों को हटाने का अधिकार पुलिस के पास है। धरना प्रदर्शन से आम लोगों की जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। धरने के लिए सार्वजनिक स्थान पर कब्जा नहीं किया जा सकता।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हो रही शाहीन बाग के प्रदर्शन को गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार करने के लिए याचिका दायर की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने आज खारिज कर दिया है। 

पुनर्विचार याचिका जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने खारिज की। साथ ही कहा कि लंबे समय तक प्रदर्शन करके सार्वजनिक स्थानों पर दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता। विरोध का हक हर जगह नहीं हो सकता। 

कोरोना लॉकडाउन के दौरान शाहीन बाग में प्रदर्शन खत्म हुआ था

बता दें साल 2019 में दिल्ली का शाहीन बाग का सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन स्थल के रूप में सामने आया था। यहां बड़ी संख्या में लोगों ने पहुंचकर नागरिकता कानून का विरोध किया था। कोरोना वायरस महामारी के चलते बीते साल मार्च में लगाए गए लॉकडाउन के बाद शाहीन बाग में प्रदर्शन खत्म हो गया था। प्रदर्शन में मौजूद लौग और आलोचक इस कानून को ‘मुस्लिम विरोधी’ बता रहे थे।

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