जानिए कौन थी वो राजकुमारी जिन्होंने की AIIMS की स्थापना, जिसकी वजह से देश में बदली स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की सूरत

टीआरपी डेस्क। एम्‍स यानी All India Institute of Medical Sciences, जो हर स्‍वास्‍थ्‍य आपदा में खबरों में रहता है। एम्‍स पहुंचना हर उस युवा का सपना होता है जो डॉक्‍टर बनने का सपना देखता है। क्‍या आप जानते हैं कि कैसे इसकी शुरुआत हुई और इसे किसने शुरू किया था। एम्‍स की नींव डाली थी राजकुमारी अमृत कौर ने और राजकुमारी अमृत कौर भारत की पहली महिला स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री भी थीं।

1956 को राजकुमारी ने पेश किया बिल

18 फरवरी 1956 को देश की तत्‍कालीन स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने लोकसभा में एक नया बिल पेश किया था। कहते हैं कि जिस समय उन्‍होंने बिल पेश किया, उन्‍होंने कोई स्‍पीच नहीं तैयार की थी। लेकिन उन्‍होंने जो कुछ भी कहा, उसकी मिसाल आज तक दी जाती है। अमृत कौर ने कहा, ‘यह मेरा हमेशा से एक सपना था कि देश में पोस्‍ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई और मेडिकल एजुकेशन के उच्‍च स्‍तर को बरकरार रखने के लिए, एक ऐसे इंस्‍टीट्यूट की जरूरत है जो युवाओं को उनके ही देश में पोस्‍ट ग्रेजुएशन के बाद की पढ़ाई के लिए प्रेरित कर सके।

मई 1956 में पड़ी AIIMS की नींव

इस बिल के पेश होने के एक साल पहले यानी सन् 1946 में भारत सरकार की तरफ से हुए एक सर्वे में इस तरह के पोस्‍ट ग्रेजुएट मेडिकल इंस्‍टीट्यूट की सिफारिश की गई थी। जहां इस आइडिया को तो सराहा गया लेकिन इसके निर्माण में लगने वाली रकम की वजह से चिंताएं बढ़ गई थीं। राजकुमारी अमृत कौर को एम्‍स के लिए जरूरी फंड को इकट्ठा करने में पूरे 10 साल लग गए थे। मई 1956 में दोनों सदनों में ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एक्‍ट को पास किया गया और इस तरह से एम्‍स की नींव पड़ी।

कोविड-19 की जंग में एम्‍स का बड़ा रोल

राजकुमारी अमृत कौर ने कहा, ‘मैं यह कहना चाहूंगी कि ये बहुत ही आश्‍चर्यजनक होने वाला है, ये एक ऐसी घटना होगी जिस पर भारत को हमेशा गर्व रहेगा और मैं चाहती हूं कि भारत इस पर गर्व करे।’ भारत पिछले करीब डेढ़ साल से कोविड-19 के खिलाफ जंग लड़ रहा है और एम्‍स का रोल भी बहुत बढ़ गया है। हर मौके पर एम्‍स के डायरेक्‍टर की तरफ से महामारी को लेकर बयान दिया जाता है। उनके बयान पर संकट के इस दौर में हर पल नजरें टिकी रहती हैं।

लखनऊ में हुआ राजकुमारी का जन्‍म

राजकुमारी अमृत कौर का जन्‍म 2 फरवरी 1887 को लखनऊ में हुआ था. वह राजा ‘सर’ हरनाम सिंह अहलूवालिया की बेटी थीं. राजा हरनाम सिंह, कपूरथला के महाराज के छोटे बेटे थे. कहते हैं कि राजगद्दी पर विवाद की वजह से राजा हरनाम सिंह कपूरथला छोड़कर लखनऊ आ गए थे. वह औध जिसे अब अवध के तौर पर जानते हैं, उस स्‍टेट के मैनेजर बन गए. उन्‍होंने क्रिश्चियन धर्म को स्‍वीकार कर लिया था. राजा हरनाम की शादी बंगाल के गोकुलनाथ चटर्जी की बेटी प्रिसिला से हुई. उनके 10 बच्‍चे थे और अमृत कौर सबसे छोटी और उनकी इकलौती बेटी थीं.

ऑक्‍सफोर्ड ग्रेजुएट राजकुमारी

राजकुमारी अमृत कौर की स्‍कूली पढ़ाई इंग्‍लैंड के शीरबॉर्न स्‍कूल फॉर गर्ल्‍स में हुई जो डॉरसेट में है। इसके बाद उन्‍होंने ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। इंग्‍लैंड में पढ़ाई पूरी करने के बाद वह सन् 1908 में भारत वापस लौट आईं। वह महात्‍मा गांधी की कट्टर अनुयायियों में से एक थीं और देश की आजादी की लड़ाई में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता।

उनके परिवार वालों की ख्‍वाहिश है कि उन्‍हें हमेशा एक ऐसी महिला के तौर पर जाना जाए जो ‘सादा जीवन उच्‍च विचार’ में यकीन रखती थीं। इतिहास उन्‍हें एक ऐसी महिला के तौर पर करार देता है जिसने अपनी महिलावादी सोच की वजह से ब्रिटिश शासन को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था। साथ ही वो महिला जिसने देश में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के ढांचे को तैयार किया था।

खेल के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान

नई दिल्‍ली में 6 फरवरी 1964 को उनका निधन हो गया था। उन्‍होंने कभी शादी नहीं की थी। वह क्रिश्चियन धर्म को मानती थीं लेकिन उनका अंतिम संस्‍कार सिख धर्म के मुताबिक किया गया था। जब देश को सन् 1947 में आजादी मिली तो अमृत कौर को स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री नियुक्‍त किया गया। वह सन् 1957 तक इस पद पर रहीं। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के अलावा उनके पास खेल मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय जैसे विभाग भी रहे। एम्‍स के अलावा राजकुमारी अमृत कौर को नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ स्‍पोर्ट्स, पटियाला की नींव डालने का भी श्रेय दिया जाता है।

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