विश्व कार्टूनिस्ट दिवस
विश्व कार्टूनिस्ट दिवस विशेष : कार्टून छपने बंद हो गए इसलिए कार्टूनिस्ट अब रहे नहीं

टीआरपी डेस्क। ”कार्टून विपक्ष की भूमिका निभाता है, और आज विपक्ष को अखबारों ने दिखाना बंद कर दिया है, यही वजह है कि अब कुछ राष्ट्रीय अखबारों को छोड़कर बाकी अखबारों ने कार्टून छापना ही बंद कर दिया है. पहले अखबारों में बाकायदा कार्टूनिस्ट की पोस्ट हुआ करती थी, मगर अब यह पद भी ख़त्म कर दिया गया है.” यह कहना है प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट त्रयम्बक शर्मा का, जिनका कार्टून के क्षेत्र में काफी नाम है, और आज वे खुद की ”कार्टून वॉच” नामक पत्रिका निकालते हैं.

प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट त्रयम्बक शर्मा

विश्व कार्टूनिस्ट दिवस पर TRP NEWS से चर्चा करते हुए त्रयम्बक शर्मा ने कहा कि बीते दो दशक के दौरान कार्टून को अखबारों में महत्व मिलना कम होने लगा, और आज हालत यह है कि अखबारों में कार्टूनिस्ट के पोस्ट ही ख़त्म हो गए हैं। इसकी वजह पूछने पर त्रयम्बक शर्मा बताते हैं कि दरअसल कार्टून विपक्ष का काम करता है, जबकि आज सत्तापक्ष अख़बार को चलाता है, यही वजह है कि आज अख़बार कार्टून का कम इस्तेमाल करते हैं. कार्टून में कटाक्ष होते हैं, मगर सत्तापक्ष कटाक्ष को पसंद नहीं करता, आज नेहरू जी जैसे नेता नहीं रहे जो अपने ऊपर कार्टून बनाये जाने पर कभी बुरा नहीं मानते थे.

“कार्टूनिस्ट बनाये नहीं जा सकते”

त्रयम्बक शर्मा कहते हैँ कि लोगों को आप दूसरी कला सिखा सकते हैं, मगर एक कार्टूनिस्ट नहीं बना सकते, इसके पीछे वजह यह है कि एक कार्टूनिस्ट में आर्ट के साथ ‘सेन्स ऑफ़ ह्यूमर’ भी होना चाहिए। अर्थात कला तो सिखाई जा सकती है मगर विचार सिखाया नहीं जा सकता।

“केरल में सबसे ज्यादा कार्टूनिस्ट”

दक्षिण भारतीय राज्यों में आज भी कार्टूनिस्टों की पूछपरख है, यही वजह है कि केरल जैसे राज्य में कार्टूनिस्टों की संख्या सबसे ज्यादा है, दरअसल यहाँ की साक्षरता दर भी देश में सबसे ज्यादा है, और यहाँ के अख़बार कार्टून को आज भी ज्यादा महत्त्व देते हैं. पढ़े लिखे लोग कार्टून में दर्शाई गई चीजों को पॉजीटिव तरीके से लेते हैं, यही वजह है कि दक्षिण भारतीय राज्यों में कार्टून आज भी जिन्दा है.

“सोशल मिडिया कार्टूनिस्ट के लिए अच्छा माध्यम”

त्रयम्बक शर्मा बताते हैं कार्टून आज रोजगार नहीं रहा इसलिए जो भी कार्टूनिस्ट उनसे मिलता है तो वे उसे यही कहते हैं कि पहले रोजी रोटी का जुगाड़ कर लो, और भले ही सोशल मिडिया के माध्यम से अपने शौक पूरे करते रहो. उन्होंने छत्तीसगढ़ के अपने साथी कार्टूनिस्ट सागर, निशांत होता, भागवत साहू अदि को याद करते हुए कहा कि कार्टून अब पहले जैसे अख़बार के पहले पन्ने पर नहीं छपते हैं, यही वजह है कि कार्टूनिस्ट अब अख़बार की जरुरत नहीं रह गए हैं.