ब्रेकिंग: वुहान लैब में ही तैयार हुआ वायरस, कोरोना में यूनिक फिंगरप्रिंट भी मिला
ब्रेकिंग: वुहान लैब में ही तैयार हुआ वायरस, कोरोना में यूनिक फिंगरप्रिंट भी मिला

नई दिल्ली। कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर संदेह के घेरे में आए चीन का सच जल्द ही अब सामने आने वाला है। कोरोना की उत्पत्ति की नए सिरे से जांच को लेकर अमेरिका-ब्रिटेन विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बना रहे हैं, इस बीच एक ऐसा सनसनीखेज दावा किया गया है कि कोरोना प्राकृतिक रूप से नहीं पनपा है, बल्कि इसे वुहान के लैब में ही चीनी वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है।

डेली मेल की खबर के मुताबिक, एक नई स्टडी में यह दावा किया गया है कि चीनी वैज्ञानिकों ने वुहान लैब में ही कोविड-19 को तैयार किया और फिर इसके बाद इस वायरस को रिवर्स-इंजीनियरिंग वर्जन से इसे कवर करने की कोशिश की, जिसे यह लगे कि कोरोना वायरस चमगादड़ से प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है।

एचआईवी वैक्सीन बनाने वालेेे ब्रिटिश प्रोफेसर का दावा

ब्रिटिश प्रोफेसर एंगस डल्गलिश और नॉवे के वैज्ञानिक डॉ बिर्गर सोरेनसेन ने साथ मिलकर यह स्टडी की है। वे दोनों इस स्टडी में लिखते हैं कि प्रथमदृष्टया उनके पास एक साल से भी अधिक समय से चीन में कोरोना वायरस पर रेट्रो-इंजीनियरिंग के सबूत हैं, मगर उनकी स्टडी को कई अकेडमिक्स और प्रमुख जर्नल ने अनदेखा कर दिया।

बता दें कि प्रोफेसर डल्गलिश लंदन में सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी में कैंसर विज्ञान के प्रोफेसर हैं और उन्हें ‘एचआईवी वैक्सीन’ बनाने में उनकी सफलता के लिए जाना जाता है। वहीं, नार्वे के वैज्ञानिक डॉ सोरेनसेन एक महामारी विशेषज्ञ हैं और इम्यूनर (Immunor) कंपनी के अध्यक्ष हैं, जो कोरोना की वैक्सीन तैयार कर रही है, जिसका नाम है बायोवैक-19। इस कंपनी में उनका शेयर भी है।

वुहान लैब में हुई डेटा से छेड़छाड़

इस स्टडी में चीन पर सनसनीखेज और हैरान करने वाले आरोप लगाए गए हैं। इस स्टडी में दावा किया गया है कि चीन ने वुहान लैब में जानबूझकर प्रयोग से जुड़े डेटा को नष्ट किया गया, छिपाया गया और छेड़छाड़ किया गया।

इसमें कहा गया है कि जिन वैज्ञानिकों ने इसे लेकर अपनी आवाज उठाई, उन्हें कम्युनिस्ट देश चीन ने या तो चुप करा दिया या फिर गायब कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इस स्टडी को जल्दी ही आने वाले कुछ दिनों में छापा जाएगा।

यूनिक फिंगरप्रिंट भी मिला

डेली मेल की खबर में दावा किया गया है कि जब पिछले साल डल्गलिश और सोरेनसेन वैक्सीन बनाने के लिए कोरोना के सैंपल्स का अध्ययन कर रहे थे, तो उन्होंने वायरस में एक ‘यूनिक फिंगरप्रिंट’ को खोजा, जिस बारें उन्होंने कहा कि ऐसा लैब में वायरस के साथ छेड़छाड़ करने के बाद ही संभव है।

उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपनी स्टडी की फाइंडिंग्स को जर्नल में प्रकाशित करना चाहा तो कई बड़े साइंटिफिक जर्नल ने इसे खारिज कर दिया, क्योंकि उस वक्त तक उनका मानना था कि कोरोना वायरस चमगादड़ या जानवरों से इंसानों में नेचुरली आया है।

इतना ही नहीं, जब सीक्रेट इंटेलिजेंस सर्विस यानी एमआई6 के प्रमुख सर रिचर्ड डियरलव ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वैज्ञानिकों के सिद्धांत की जांच की जानी चाहिए, तब भी इस विचार को फेक न्यूज बताकर इसे खारिज कर दिया गया था।

हालांकि, अब एक साल बाद एक बार से वैज्ञानिकों ने इस बात पर बहस शुरू कर दी है कि कोरोना कैसे और कहां से पनपा, इसकी नए सिरे से जांच की जानी चाहिए।

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