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टीआरपी डेस्क। देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर अब काफी हद तक काबू में आ गई है। अप्रैल और मई के शुरुआती हफ्तों में रोजाना जहां संक्रमण के मामले साढ़े तीन लाख के आंकड़े को पार कर गए थे, वह अब घटकर सवा लाख से भी कम हो गए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ, वैक्सीनेशन को कोरोना से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय मान रहे हैं, इसी को ध्यान में रखते हुए टीकाकरण के अभियान को तेज कर दिया गया है।

इस बीच देश में कोरोना की दवाओं के निर्माण का काम भी जोरों पर चल रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा बनाई कोरोना की दवा 2डीजी के बाद अब एक अन्य दवा पर भी तेजी से काम जारी है। सीएसआईआर और लक्साई लाइफ साइंसेज ने एक अन्य दवा का क्लीनिकल परीक्षण शुरू किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने रविवार को इस संबंध में जानकारी दी है।

टेपवर्म संक्रमण में प्रयोग की जाती रही है दवा

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने रविवार को ट्वीट कर बताया-  ”सीएसआईआर और लक्साई लाइफ साइंसेज ने ‘निक्लोसामाइड’ नामक दवा का क्लीनिकल परीक्षण शुरू किया है। इस दवा का उपयोग पहले वयस्कों और बच्चों में होने वाले टेपवर्म संक्रमण के इलाज में व्यापक रूप से किया जाता रहा है। पहले भी सुरक्षात्मक दृष्टि से कई बार इसका परीक्षण किया जा चुका है, जिसमें इस दवा को इंसानों के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित पाया गया है।” कोविड-19 के उपचार में भी इस दवा को वैज्ञानिक प्रभावी मान रहे हैं, इसी की पुष्टि करने के लिए संस्थानों ने निक्लोसामाइड दवा का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है।

सिनसाइटिया निर्माण को रोक सकती है यह दवा

डीजी-सीएसआईआर के सलाहकार डॉ राम विश्वकर्मा ने बताते हैं- ‘हम उस दवा की खोज में लगे हुए थे जो कि सिनसाइटिया निर्माण को रोकने में कारगर हो सके। इसी क्रम में किंग्स कॉलेज, लंदन के अनुसंधान समूह द्वारा निक्लोसामाइड दवा की पहचान की गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड-19 के कई रोगियों के फेफड़ों में सिनसाइटिया या फ्यूज्ड कोशिकाएं देखी जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि संभवत: सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन की फ्यूजोजेनिक गतिविधि के परिणामस्वरूप यह निर्मित हो रही हैं। अब तक के अध्ययनों में देखा गया है कि निक्लोसामाइड दवा, इस तरह के निर्माण को रोकने में कारगर साबित हो सकती है।

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