टीआरपी डेस्क। सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया में कोविड-19 की तीसरी लहर को लेकर अलग ही हलचल है। खबरों की मानें तो ऐसा माना जा रहा है कि तीसरी लहर में बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा है। बच्चे ही सबसे ज्यादा संक्रमित होंगे और उनके गंभीर रूप से बीमार होने का रिस्क है।

हालांकि पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट, डॉ. चंद्रकांत लहरिया इन सब अटकलों को निराधार बताते हैं। इस रिपोर्ट में डॉ. चंद्रकांत लिखते हैं कि सभी सबूत तो यही इशारा करते हैं कि बच्चों (0-18 साल) को अपेक्षाकृत कम खतरा रहा है। उन्होंने तीसरी लहर के बच्चों पर असर को लेकर जो लिखा है, उससे हर माता-पिता की टेंशन थोड़ी कम होगी।
क्या कहते हैं डेटा?
डॉ. चंद्रकांत लिखते हैं, “बच्चों और कोविड-19 का एक साथ जिक्र होने पर यही मान लिया जा रहा है कि तीसरी लहर में उन्हें खतरा है। सिंगापुर में जब स्कूल बंद किए गए तो भारत में इसे एक तरह से सबूत की तरह देखा गया कि नए स्ट्रेन का प्रभाव बच्चों पर पड़ने वाला है। लेकिन एक बार हम उपलब्ध डेटा को देखें तो वह तस्वीर साफ कर देता है। दोनों लहरों में जितने भी लोग अस्पताल में भर्ती हुए, उनमें से 2.5 प्रतिशत 0-18 एजग्रुप वाले थे। इस एजग्रुप की आबादी में करीब 40% हिस्सेदारी है। बच्चों के मुकाबले वयस्कों को कोविड से गंभीर बीमारी और मौत का खतरा 10-20 गुना ज्यादा है। साथ ही दुनिया के किसी भी कोने से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि तीसरी या उसके बाद ही किसी लहर में बच्चों पर ज्यादा असर होगा।”
मीडिया में आ रही खबरों से माता-पिता की बढ़ी परेशानी
“SARS-CoV-2 के नए स्ट्रेन्स ज्यादा संक्रामक हैं लेकिन उनमें किसी एजग्रुप को गंभीर रूप से बीमार करने की क्षमता में परिवर्तन नहीं हुआ है। कोविड-19 को समझने वाले लगभग हर एक्सपर्ट ने यही तथ्य बताए हैं। भारत में पीडियाट्रीशियंस की प्रफेशनल एसोसिएशन ने भी यही बात कही है। फिर भी कई लोग डेटा को घुमा-फिराकर दिखा रहे हैं। उदारहण के लिए, टीवी पर एक स्टोरी खूब चली कि अप्रैल और मई 2021 में, महाराष्ट्र के भीतर 10 साल या उससे कम उम्र के बच्चों में कोविड-19 के 99,000 मामले दर्ज हुए। दावा हुआ कि बच्चों के संक्रमण में 3.3 गुना का इजाफा हुआ। इसी तरह एक और रिपोर्ट में अहमदनगर में 8,000 नए संक्रमण (0-18 साल उम्र वालों में) का जिक्र हुआ। यह सब यह बताने के लिए कि बच्चे पहले से ही प्रभावित होने लगे हैं। पेरेंट्स में घबराहट फैल गई क्योंकि बच्चों को टीका नहीं लगा है।”
डॉ. चंद्रकांत लिखते हैं कि आपको इस डेटा को पूरे संदर्भ के साथ देखना होगा। “अप्रैल-मई के बीच महाराष्ट्र से करीब 29 लाख मामले सामने आए। ऐसे में बच्चों में 99,000 नए मामले टोटल का केवल 3.5% हुए जबकि 0-10 साल के बच्चों की आबादी में हिस्सेदारी लगभग 24% है। दूसरी लहर के दौरान डेली केसेज में पहली लहर के पीक के मुकाबले करीब चार गुना का अंतर है, ऐसे में बच्चों में 3.3 गुना की बढ़त भी बाकी एजग्रुप्स से कम है।”
वैज्ञानिक सलाह पर देना होगा ध्यान
“यह भी ध्यान रखना होगा कि कोविड संक्रमित जिन बच्चों को भर्ती कराना पड़ा, उनमें से अधिकतर को पहले से कोई और बीमारी थी। ‘मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रन (MIS-C)’ एक दुर्लभ कंडिशन है जो महामारी के पहले भी होती है, इसका अब न्यूज रिपोर्ट्स में खूब जिक्र हो रहा है। राज्य सरकारों भी कुछ लोगों के झांसे में आ गई हैं। कुछ राज्यों ने बच्चों के लिए अलग से कोविड टास्क फोर्स बना दी है जिससे महामारी के रेस्पांस पर असर पड़ेगा। महामारी के खिलाफ जीतने के लिए सरकारों को वैज्ञानिक सलाह पर ध्यान होगा, न कि शोर पर।”