टीआरपी डेस्क। कोवैक्सिन बनाने में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए 20 दिन से भी कम उम्र के बछड़े की हत्या की जाती है। ये दावा कांग्रेस के नेशनल कॉर्डिनेटर गौरव पांधी ने बुधवार को किया है। पांधी ने एक RTI के जवाब में मिले दस्तावेज शेयर किए। उन्होंने दावा किया है कि यह जवाब विकास पाटनी नाम के व्यक्ति की RTI पर सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) ने दिया है।

मोदी सरकार ने लोगों को धोखे में रखा

बछड़े के सीरम का उपयोग विरो सेल्स के रिवाइवल प्रोसेस के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल कोवैक्सिन बनाने के लिए किया जा रहा है। पांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने माना है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन में गाय के बछड़े का सीरम शामिल है। यह बहुत बुरा है। इस जानकारी को पहले ही लोगों को बताया जाना चाहिए था।

रिसर्च पेपर में भी किया गया था दावा

इससे पहले इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के रिसर्च पेपर में भी यह बात सामने आई थी कि कोवैक्सिन बनाने के लिए नवजात पशु के ब्लड का सीरम उपयोग किया जाता है।

रिसर्च में दावा किया गया था कि कोवैक्सिन के लिए नवजात बछड़े के 5% से 10% सीरम के साथ डलबेको के मॉडिफाइड ईगल मीडियम (DMEM) को इस्तेमाल किया जाता है। DMEM में कई जरूरी पोषक होते हैं, जो सेल को बांटने के लिए जरूरी होते हैं।

हॉर्सशू क्रैब के नीले खून का भी होता है इस्तेमाल

घोड़े के पैरों के खुर की तरह दिखने वाले जीव को हॉर्सशू क्रैब कहा जाता है। 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल से अमेरिका और साउथ एशिया के तटों पर पाए जाने वाले इस जीव के खून का इस्तेमाल दवाओं में किया जाता है। हॉर्सशू क्रैब का खून कोविड-19 की वैक्सीन डेवलप करने के काम भी आ रहा है। इनका नीला खून ये सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कहीं ड्रग में कोई खतरनाक बैक्टीरिया तो नहीं है।

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