रायपुर। जिलों में की गई विभिन्न घोषणाओं पर अमल के लिए डीएमएफ की राशि का उपयोग किया जा सकेगा। खनिज विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह घोषणा की है। उनके द्वारा हाल ही में इसके अलावा चारागाह निर्माण, हाट-बाजार क्लीनिक के लिए वाहन, गोठानों में मल्टी एक्टिविटी सेंटरों के लिए शेड निर्माण, देवगुड़ी निर्माण के कार्य भी इसी मद से किए जा सकेंगे।
पहले से ही होता रहा है DMF का उपयोग
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भले ही गोठान और अन्य योजनाओं के लिए DMF की राशि का इस्तेमाल करने की घोषणा आज की है। मगर सच तो यह है कि कई जिलों में गोठान सहित कई अन्य योजनाओं में DMF की राशि का उपयोग पहले से ही होता रहा है। DMF में सर्वाधिक राशि कोरबा जिले को मिलती है और इस जिले में पिछले दो वित्तीय वित्तीय वर्षों में भूपेश सरकार की “नरवा गरवा घुरवा और बाड़ी” जैसी महत्वाकांक्षी योजना के लिए DMF की राशि का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। अब पूरे प्रदेश में इस तरह की योजनाओं के लिए और मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर अमल के लिए DMF की राशि का उपयोग किया जा सकेगा।
प्रभावित क्षेत्रों को भूल जाता है प्रशासन
सरकार ने जब DMF का कानून बनाया तब खदानों से प्रभावित इलाकों के लोगो के बीच यह उम्मीद जगी थी कि अब क्षेत्र के साथ ही उनके रोजगार और विकास पर भी कार्य होगा, मगर हर साल DMF के लिए करोडो के कार्यो की स्वीकृति में खदान प्रभावितों का इलाका लगभग छूट जाता है।
अध्यक्ष को लेकर फंसा है पेंच
DMF यानि जिला खनिज न्यास के खर्च को लेकर जिलों में जो समितियां होती हैं उनके अध्यक्ष पहले कलेक्टर हुआ करते थे, मगर भूपेश की सरकार ने आते ही व्यवस्था बदल दी और जिलों के प्रभारी मंत्रियों को अध्यक्ष बनाये जाने का कानून पारित कर दिया। हाल ही में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ शासन को पत्र लिखकर पुरानी व्यवस्था को बहाल करने का निर्देश दिया है। इस पर अमल करने की बजाय राज्य शासन ने वर्तमान व्यवस्था ही लागू रखने और समिति में सांसदों को भी शामिल करने का सुझाव दिया है। अब देखना है कि केंद्र इस पर सहमत होता है या नहीं। वैसे इसकी उम्मीद कम नजर आ रही है, क्योंकि केंद्र के PMKKKY के कानून के आधार पर ही देश भर के राज्यों में DMF का कानून बना, अब एक राज्य में इससे अलग कोई कानून चल रहा है, इसे केंद्र सरकार कैसे बर्दास्त करेगी।