प्रसाद और प्रकाश पर वज्रपात क्यों ?

श्याम वेताल

केंद्र की भाजपा सरकार से दो वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर को क्यों बाहर किया गया? यह सवाल हर किसी को बेचैन कर रहा है। अभी तक कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है। दोनों दिग्गज मंत्रियों से कोई बहुत बड़ी भूल होने का भी कोई प्रमाण नहीं है। उनके मंत्रालयों का कामकाज भी सामान्यतया ठीक ही था। फिर उनके ऊपर यह वज्रपात क्यों ?

राजनीति के जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री बनने से पहले से ही नरेंद्र मोदी और रविशंकर प्रसाद अच्छे मित्र रहे हैं और दोनों के बीच आपसी समझ भी अपेक्षाकृत बेहतर रही। कानून की उत्कृष्ट जानकारी रखने वाले रविशंकर प्रसाद से नरेंद्र मोदी समय-समय पर राय भी लिया करते थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि मंत्रिमंडल विस्तार से पहले रविशंकर प्रसाद से त्यागपत्र ले लिया गया ? प्रत्यक्ष तौर पर एक ही कारण समझ में आता है। वह यह कि कुछ दिन पहले ट्विटर के साथ हुआ कुछ विवाद। लेकिन यह कोई इतना बड़ा मामला नहीं था कि इसकी सज़ा इस्तीफा हो। इसी तरह प्रकाश जावड़ेकर से भी इस्तीफा लिए जाने का कोई बड़ा कारण नहीं दिखाई पड़ता।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों वरिष्ठ मंत्रियों को नयी जिम्मेदारी क्या दी जाती है। जैसी की चर्चा है कि दोनों को पार्लियामेंट बोर्ड में स्थान दिया जायेगा या संगठन का दायित्व सौपा जायेगा। पार्लियामेंट बोर्ड में फ़िलहाल पांच स्थान रिक्त हैं। चूंकि पार्लियामेंट बोर्ड सुप्रीम बॉडी है इसलिए यहाँ स्थान मिलना भी महत्वपूर्ण है। यदि इन दोनों की उपयोगिता संगठन के लिए समझी जाती है तो भी दोनों सफल रहेंगे क्योंकि दोनों ने वर्षों तक संगठन के लिए कार्य किया है। हो सकता है कि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्ढा ने इन दोनों की सेवाएं प्रधानमंत्री से मांग ली हों। वैसे तो यह गौरव की बात है फिर भी, मंत्री पद जाने का मलाल दोनों को रहेगा।

देश की जनता की सामान्य समझ में मंत्री होना सबसे बड़ी उपलब्धि है। लोगों को पार्लियामेंट बोर्ड या संगठन महासचिव के पद में कोई आकर्षण नहीं दिखता। भीड़ हमेशा मंत्री के पीछे भागेगी, पार्लियामेंट बोर्ड के सदस्य या संगठन महासचिव के लिए इंतज़ार भी नहीं करेगी। नेताओं को भी इस भीड़ की ही ललक होती है। भीड़ होगी तो मीडिया भी होगा और मीडिया होगा तो प्रचार भी होगा। यही प्रचार नेताओं की आत्मा को तृप्त करता है। यदि कोई नेता मंत्री नहीं है तो वह दफ्तर का महज़ एक ‘बाबू’ है जो सिर्फ काम के लिए बना है, सलाम पाने के लिए नहीं। ऊपर की सीढ़ी से और ऊपर जाना सभी को अच्छा लगता है, नीचे उतार दिया जाना कोई पसंद नहीं करेगा।

बहरहाल, रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर को अब जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी,अपने भरसक वे अच्छी तरह निभाने की कोशिश जरूर करेंगे लेकिन हारे हुए मन से। हारे मन से पूरी कोशिश के बाद भी बहुत अच्छा काम नहीं हो सकता। हारा मन रूटीन का काम करेगा, इनोवेशन शायद ही करे।

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