वैक्सीन के बाद संक्रमित होने वाले 80 फीसदी मरीज डेल्टा वैरिएंट के शिकार, ICMR की स्टडी में खुलासा

नई दिल्ली। Corona: कोरोना का डेल्टा वैरिएंट कितना ज्यादा खतरनाक है, इसका अंदाजा ICMR की ताजा स्टडी से लगाया जा सकता है। वैक्सीन की कम से कम एक या फिर दोनों डोज लेने के बाद भी संक्रमित हुए लोगों की जांच से पता चला है कि इनमें से 80 फीसदी लोग डेल्टा वैरिएंट के शिकार हुए थे। ICMR की एक नई रिपोर्ट में ये बात सामने आई है।

हालांकि रिपोर्ट से ये बात भी साफ होती है कि कि भले ही वैक्सीन के बावजूद भी लोग संक्रमित हो गए, लेकिन इसकी वजह से अस्पताल जानेवालों या मरने वाले लोगों की संख्या बेहद कम थी। ऐसे मामलों में महज 9.8 फीसदी को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी, और मृत्यु दर भी 0.4 फीसदी रही। भारत में ‘ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन’ यानी टीकाकरण के बाद हुए संक्रमण के मामलों की पड़ताल का यह सबसे बड़ा और पहला राष्ट्रव्यापी अध्ययन है।

कैसे हुई स्टडी

ICMR ने लगभग 677 ऐसे लोगों का अध्ययन किया, जिन्हें एक या दोनों टीका लगवाने के बाद भी कोविड संक्रमण हुआ था। ये नमूने 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लिए गए। वैक्‍सीन लगवा चुके इन 677 लोगों में से 71 लोगों ने कोवैक्सिन टीका लिया था जबकि बाकी 604 को कोविशील्ड वैक्सीन लगी थी।

इनमें से दो ने चीनी वैक्सीन सिनोफार्म भी ली थी। अध्‍ययन के अनुसार, कुल पॉजिटिव हुए लोगों में 86.09% डेल्टा वेरिएंट के बी.1.617.2 से संक्रमित थे। संक्रमित हुए लोगों में 9.8% को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता थी, जबकि मात्र 0.4% मामलों में मौत देखी गई।

स्टडी का निष्कर्ष

इसमें यह सुझाव दिया गया है कि कोरोना टीकाकरण जरूरी है। क्योंकि टीकाकरण के बाद मौत की संभावना कम रहती है और ज्‍यादातर लोगों को अस्‍पताल में भर्ती होने की भी आवश्‍यकता नहीं पड़ती।

कोविड-19 की और भयावह लहरों को आने से रोकने के लिए टीकाकरण अभियान को बढ़ाना और लोगों का जल्द से जल्द टीकाकरण करना सबसे महत्वपूर्ण रणनीति होगी। इससे हेल्थ सिस्टम पर पड़ा रहा बोझ भी कम होगा।

भारत के ज्यादातर हिस्सों में ऐसे मामलों की वजह डेल्टा वैरिएंट है, लेकिन उत्तरी क्षेत्र में कोरोना वायरस का अल्फा वैरिएंट हावी है।

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