चपरासी के भरोसे चल रहा है प्रदेश का एक हाई स्कूल, एकमात्र शिक्षक की कोरोना से मौत के बाद बदहाल हुए छात्र
चपरासी के भरोसे चल रहा है प्रदेश का एक हाई स्कूल, एकमात्र शिक्षक की कोरोना से मौत के बाद बदहाल हुए छात्र

महासमुंद। कोरोना संक्रमण के चलते लंबे अंतराल के बाद स्कूलों को पढ़ाई के लिए तो खोल दिया गया है, मगर शिक्षको की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई आज भी प्रभावित है। ऐसा ही एक मामला महासमुंद जिले के सिंघोड़ा से सामने आया है, जहां का हाई स्कूल चपरासी के भरोसे चल रहा है।

कई सालों से एक ही शिक्षक के भरोसे था स्कूल, मगर अब…

महासमुंद जिले के उड़ीसा सीमा पर स्थित ग्राम सिंघोड़ा के हाई स्कूल में पिछले 3 साल से शिक्षकों की तो कमी है ही, अब हालात यह हो गये हैं कि यहां पदस्थ एकमात्र शिक्षक जिनके भरोसे स्कूल संचालित होता था, उनकी की भी मौत कोरोना से होने के बाद यह स्कूल अब शिक्षक विहीन हो गया है और यहां पढ़ने वाले 9वीं और 10वीं के 78 बच्चों के भविष्य पर तलवार लटकने लगी है।

स्टाफ रूम की खाली कुर्सियां खोल रहीं हैं व्यवस्था की पोल

स्कूल में बिना शिक्षक के बैठे बच्चे, स्टाफ रूम की खाली कुर्सियां, और तो और प्राचार्य रूम का खाली पडा कमरा, महासमुंद जिले में दम तोड़ती सरकारी शिक्षा व्यवस्था का हाल बयां कर रही है। ऐसा नहीं है कि शिक्षा विभाग को इसकी जानकारी नहीं। पूरा डाटा स्कूल शिक्षा विभाग के पास स्कूल खोले जाने से पहले है, लेकिन औपचारिक व्यवस्था के बगैर ही 2 अगस्त से स्कूल को खोल दिया गया है, जहां चपरासी स्कूल खोल देता है और बच्चें यहां सिर्फ खेलने आते है। इस बात को लेकर बच्चों के परिजन काफी परेशान है और इन्होने कलेक्टर व जिला शिक्षा अधिकारी से गुहार भी लगाई है। इन्ही में से एक पालक तन्मय पंडा का कहना है कि जब से स्कूल खुला है तब से शिक्षकों का अभाव है और इस बात को लेकर कई बार पालक आंदोलन भी कर चुके है। अब तो यह स्कूल शिक्षक विहीन हो चुका है, यही हालात रहे तो बच्चों की पढ़ाई बंद करवा कर उन्हें बकरी चराना होगा ।

समस्या से खुद को अनजान बता रहे हैं अधिकारी

ऐसा नहीं है कि सिंघोड़ा हाई स्कूल के हालात अभी के है। सालों से ग्रामीण अव्यवस्था को लेकर नाराज है, हर बार आंदोलन होता है और हर बार उन्हें आश्वासन का झुनझुना पकड़ा दिया जाता है। ग्रामीणों की मांग पर शिक्षा विभाग के सहायक संचालक सतीश नायर इस समस्या से खुद से अनजान बता रहें है और जल्द ही स्कूल में शिक्षक की व्यवस्था कराने का दावा कर रहे हैं।

शिक्षा विभाग “स्कूल आ पढ़े बर, जिंदगी ल गढ़े बर” जैसे स्लोगन के साथ बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का दम भरता है, लेकिन अगर स्कूल में शिक्षक ही ना हो तो आखिर इन बच्चों का भविष्य कौन गढ़ेगा। इन सवालों का जवाब शिक्षा विभाग के पास भी नहीं है। बहरहाल देखना यह होगा कि अब सिंघोड़ा के बच्चों के भविष्य के लिए शिक्षा विभाग का प्रयास कितना सार्थक होता है।

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