अगर आपने लिया है कोविशिल्ड का डोज तो आप हैं सबसे ज्यादा सुरक्षित... जानें कितने सुरक्षित हैं कोरोना के अन्य टीके

टीआरपी डेस्क। कोरोनावायरस के डेल्टा वैरिएंट ने इस समय पूरी दुनिया में कोहराम के बीच कोलंबिया यूनिवर्सिटी और बहरीन के रिसर्चरों द्वारा वैक्सीन के प्रभाव की जांच की है। इसमें कई महत्वपूर्ण आंकड़े सामने आए हैं।

इस रिसर्च में चीन की साइनोफार्म, रूस की स्पूतनिक, अमेरिका की फाइजर और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्रा जेनेका की वैक्सीन (जिसे भारत में कोविशील्ड नाम दिया गया है) को शामिल किया गया। बता दें कि बहरीन की आबादी 15 लाख से थोड़ी ज्यादा है, जिसमें से 10,03,960 से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लग चुकी है।

किसे लगीं कितनी वैक्सीन?

9 दिसंबर 2020 से 17 जुलाई 2021 तक बहरीन में 5 लाख 69 हजार 54 लोगों को चीन की साइनोफार्म वैक्सीन लगी। वहीं, 1 लाख 84 हजार 526 लोगों को स्पूतनिक वैक्सीन लगी। उधर 1 लाख 69 हजार 58 लोगों को फाइजर-बायोएनटेक और 73,765 लोगों को कोविशील्ड दी गई थी। इसके अलावा रिसर्च में 2 लाख 45 हजार 876 ऐसे लोगों को भी शामिल किया गया, जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली और जिन्हें कोरोनावायरस से संक्रमित पाया गया था। इन सभी लोगों की उम्र 18 साल से ऊपर थी।

वैक्सीन न लेने वाले लोगों के मुकाबले, इन चारों वैक्सीन में से एक भी लेने वालों को सभी पैमानों पर काफी सुरक्षा मिली। ये सुरक्षा डेल्टा वैरिएंट के फैलने के दौरान भी जारी रही। हालांकि, जब सभी वैक्सीन के डेटा की तुलना की गई, तो सामने आया कि किसी भी वैक्सीन के मुकाबले चीन में बनी साइनोफार्म की वैक्सीन लगवाने वाले लोगों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा सबसे ज्यादा रहा। इतना ही नहीं, उनके अस्पताल में भर्ती रहने, आईसीयू में भेजे जाने मौतों के आंकड़े भी बाकी वैक्सीन पाने वालों में से ज्यादा रहा। खासकर 50 साल से ज्यादा उम्र वालों में।

इन चार पैमानों पर हुई जांच 

  • लोगों के संक्रमित होने की दर
  • अस्पताल में भर्ती होने की दर
  • आईसीयू में ले जाने की दर
  • मृत्यु की दर

चारों वैक्सीन के तुलनात्मक नतीजे?

रिसर्च के मुताबिक एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन से सबसे बेहतर नतीजे मिले हैं। फिर चाहे वह अस्पताल में भर्ती होने से बचाने का मामला हो या मौतों से बचाने में। खास बात यह है कि कोविशील्ड वैक्सीन इन सभी वैक्सीन में सबसे सस्ती भी है।

अस्पताल में भर्ती कराने की दर

रिसर्च के मुताबिक वैक्सीन न लगवाने वाले प्रति 10 हजार संक्रमितों में से करीब 1322 को अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ी, वहीं साइनोफार्म वैक्सीन लगवाने वाले प्रति दस हजार संक्रमितों में 694 लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। इसी तरह स्पूतनिक-वी लगवाने के बाद 10 हजार संक्रमितों में से 224 को भर्ती कराया गया। दूसरी तरफ फाइजर की वैक्सीन लगवाने वालों में से 199 लोगों को संक्रमण के बाद अस्पताल ले जाना पड़ा। लोगों को अस्पताल ले जाने से बचाने में कोविशील्ड सबसे आगे रही। इसे लगवाने वालों 10 हजार लोगो में से सिर्फ 152 लोगों को ही हॉस्पिटल ले जाना पड़ा।

आईसीयू भेजे जाने की दर

वैक्सीन वाले प्रति दस हजार संक्रमितों में से सिर्फ 201 लोगों को आईसीयू पहुंचाना पड़ा, वहीं साइनोफार्म लगवाने वाले हर 10 हजार में 57 संक्रमितों को आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा। स्पूतनिक लगवाने वालों में कोई भी गंभीर समस्या नहीं उभरी और उन्हें आईसीयू ले जाने की जरूरत नहीं पड़ी। उधर फाइजर लगवाने वाले प्रति 10 हजार में सिर्फ 5 लोगों को ही आईसीयू ले जाना पड़ा। कोविशील्ड में यह दर दोगुनी यानी प्रत्येक 10 हजार में से 10 संक्रमित ही आईसीयू भेजे गए।

वैक्सीन लगने के बाद मौतों की संभावना

वैक्सीन न लगवाए लोगों को कोरोना से मौत का खतरा वैक्सीन लगवाने वालों के मुकाबले काफी ज्यादा है। जहां टीका न लेने वाले प्रति 10 हजार लोगों में 132 की कोरोना से मौत हुई, तो वहीं साइनोफार्म की वैक्सीन लेने वाले 10 हजार में से 46 लोगों की जान गई। स्पूतनिक वैक्सीन लेने वाले 10 हजार में से 9 लोगों की ही मौत की संभावना रही। उधर फाइजर-बायोएनटेक का टीका लेने वाले 10 हजार में से 15 की जान जाने की संभावना रही। इसमें भी सबसे बेहतर रिकॉर्ड कोविशील्ड का रहा, जिसे लगवाने वाले 10 हजार में सिर्फ 3 लोगों के मौत की संभावना रही।

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