पाञ्चजन्य की स्टोरी में इंफोसिस... और घेरे में आया आरएसएस, आखिर क्यों मचा है बवाल

टीआरपी डेस्क। पाञ्चजन्य पत्रिका के 5 सिंतबर के अंक में इंफोसिस को लेकर प्रकाशित संस्करण के बाद उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। बता दें कि इसे पत्रकार चंदन प्रकाश ने लिखा है। खास बात है कि इस खबर को पाञ्चजन्य ने संस्थापक नारायण मूर्ति की तस्वीर के साथ कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित किया है। जिसका शीर्षक है, “#इंफोसिस साख और आघात”। इस अंक के छपने के बाद से सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर लोग आरएसएस को घेर रहे हैं।

ज्यादा विवाद बढ़ने के बाद आरएसएस के प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने ट्वीट कर कहा, “इंफोसिस का भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। पाञ्चजन्य पत्रिका में प्रकाशित लेख, लेखक के निजी विचार हैं और पाञ्चजन्य संघ का मुखपत्र नहीं है।”

दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा, “अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस लेख में व्यक्त विचारों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।”

जहां एक ओर संघ के प्रवक्ता पाञ्चजन्य को संघ का मुखपत्र मानने से इंकार कर रहे हैं। वहीं कई उद्योगपति इस लेख की आलोचना कर रहे हैं। मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन के चेयरमैन और इंफोसिस के पूर्व डायरेक्टर मोहनदास पई ने ट्वीट करते हुए लिखा, “इस तरह के दीवाने, पागल लेखक हर परछाई के पीछे षडयंत्र देखते हैं! वे उद्देश्यपूर्ण नहीं हैं और उनकी निंदा की जानी चाहिए।”

वहीं पाञ्चजन्य के एडिटर हितेश शंकर ने लेख का बचाव करते हुए लिखा, “5 सिंतबर को प्रकाशित अंक को लेकर बहुत शोर-शराबा मचा हुआ है। सभी लोगों को इस स्टोरी को पढ़ना चाहिए।”

‘इस स्टोरी के संदर्भ में तीन बातें ध्यान देने योग्य हैं.’

वह अपने ट्वीट में आगे लिखते हैं, 1. पाञ्चजन्य अपनी स्टोरी के साथ खड़ा है।

2. अगर इंफोसिस को आपत्ति है तो उसे कंपनी के हित में इन तथ्यों की अधिक गहन जांच का आग्रह करते हुए अपना पक्ष रखना चाहिए।

3. कुछ तत्व निहित स्वार्थों के चलते इस कड़ी में आरएसएस का जिक्र कर रहे हैं। याद रहे, यह रिपोर्ट संघ से संबंधित नहीं है, रिपोर्ट इंफोसिस के बारे में है। यह कंपनी की अक्षमता से संबंधित तथ्यों का मामला है।

आखिर क्या लिखा है रिपोर्ट में?

चार पेज में प्रकाशित पाञ्चजन्य की रिपोर्ट की शुरुआत लेखक चंद्र प्रकाश, आयकर रिटर्न पोर्टल में खामियों से करदाताओं को हो रही दिक्कतें, उससे सरकार पर जनता के भरोसे से पड़ते असर और इंफोसिस की साख पर लिखते हैं।

रिपोर्ट में बेंगलुरु स्थित कंपनी पर हमला करते हुए इसे ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान’ बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि सरकारी संगठन और एजेंसियां इंफोसिस को अहम वेबसाइटों और पोर्टलों के लिए अनुबंध देने में कभी नहीं हिचकिचाती हैं क्योंकि यह भारत की सबसे प्रतिष्ठित सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक है।

लेकिन जिस तरह से इंफोसिस द्वारा विकसित जीएसटी और आयकर रिटर्न पोर्टलों में गड़बड़ियां हुई हैं, उससें देश की अर्थव्यवस्था में करदाताओं के भरोसे को अघात पहुंचा है। लेख में सवाल किया गया है कि, एक सामान्य से काम में कंपनी ने इतनी असावधानी क्यों बरती? क्या यह उपभोक्ता को संतोषजनक सेवाएं न दे पाने की सामान्य शिकायत है या इसके पीछे कोई सोचा-समझा षड्यंत्र रचा छिपा है?

रिपोर्ट के एक छोटे से हिस्से में “इंफोसिस पर कुछ गंभीर आरोप” भी लगाए गए हैं। रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि यह पहली बार नहीं है जब कंपनी से गलती हुई है। आयकर रिटर्न और जीएसटी पोर्टल से पहले इंफोसिस ने कंपनी मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट भी बनाई थी। उस वेबसाइट ने भी उद्यमियों के काम को आसान बनाने की जगह कठिन कर दिया।

भारत सरकार ने आयकर रिटर्न फांइलिग के लिए नई वेबसाइट बनाने का काम कंपनी को साल 2019 में दिया था। 4400 करोड़ के ठेके में से कंपनी को सरकार ने 164.5 करोड़ का भुगतान कर दिया है। इस वेबसाइट को बनाने का उद्देश्य था कि टैक्सदाता की प्रक्रिया को 63 दिनों से घटाकर एक दिन कर दिया जाए।

कम बोली लगाकर क्यों सरकारी ठेके लेती है इंफोसिस

रिपोर्ट में लेखक ने इंफोसिस पर बिना किसी सबूत के गंभीर आरोप लगाए हैं। जैसे कि कोई कंपनी इतनी कम बोली लगाकर महत्वपूर्ण सरकारी ठेके क्यों ले रही है? कंपनी ने आयकर पोर्टल और जीएसटी पोर्टल बनाकर लोगों का विश्वास सरकार के कामकाज से कम किया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई देशविरोधी शक्ति इंफोसिस के जरिए भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाने में जुटी है?

रिपोर्ट में आगे इंफोसिस पर देशविरोधी फंडिग का आरोप लगाया गया है। कहा गया है कि कंपनी पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर देश के खिलाफ काम करने वाले लोगों के समर्थन की बात सामने आ चुकी है। लेखक आगे इसमें ऑल्ट न्यूज, द वायर और अन्य मीडिया संस्थानों की फंडिग के तौर पर कंपनी को देशविरोधी कदमों से जोड़ते हैं।

आयकर रिटर्न पोर्टल में गड़बड़ियों पर विपक्षी नेताओं द्वारा कुछ नहीं बोलने पर लेखक सवाल पूछते हुए लिखते हैं, कहीं कांग्रेस के इशारे पर कुछ निजी कंपनियां अव्यवस्था पैदा करने की फिराक में तो नहीं हैं? साथ ही कहा गया है कि कंपनी के मालिकों में से एक नंदन नीलेकणी कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़ी कोई कंपनी यदि भारत सरकार के महत्वपूर्ण ठेके लेती है तो कहीं उसमें चीन और आईएसआई के प्रभाव की कोई भूमिका तो नहीं?

लेखक ने कंपनी के दो लोगों का जिक्र किया है लेकिन कंपनी के ही एक अन्य डायरेक्टर मोहनदास पई जो बीजेपी समर्थक हैं, उनके राजनीतिक गठजोड़ के बारे में नहीं बताया गया है।

रिपोर्ट के आखिर में डाटा चोरी का शक जताया गया है। बताया गया है कि अमेरिकी उद्योगपति जार्ज सोरोस और गूगल ने मिलकर एक फंड बनाया था जिसके बाद आधार कार्ड बनाने से जुड़ी एक कंपनी को खरीदकर बंद कर दिया गया, जिसपर आरोप था कि आधार डाटा चोरी के लिए कंपनी खरीदी गई थी। जीएसटी से जुड़े डाटा के लीक होने का आरोप भी लगता रहा है, तो इसमें कोई आश्यर्च नहीं होना चाहिए कि इंफोसिस आयकरदाताओं की सूचनाओं के साथ ऐसा करे।

इंफोसिस पर रिपोर्ट लिखने वाले लेखक चंद्र प्रकाश के ट्विटर बायो के मुताबिक वह कई मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। वह टीवी टुडे, एनडीटीवी, जी न्यूज और कई अन्य मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं।

चंद्र प्रकाश के टाइमलाइन पर इंफोसिस की खबर को भी शेयर किया गया है। उन्होंने खबर के वायरल होने के बाद 5 सिंतबर की शाम को एक ट्वीट किया, “सोचिए अगर “अंबानी अडानी” ने इनकम टैक्स की वेबसाइट बनाई होती तो क्या होता?”

क्या पाञ्चजन्य नहीं हैं संघ का मुखपत्र

पाञ्चजन्य की इस रिपोर्ट के बाद मचे विवाद के बीच आरएसएस ने पाञ्चजन्य से कन्नी काट ली। पत्रिका की वेबसाइट के मुताबिक उनके पहले एडिटर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। बता दें कि यह पत्रिका समय-समय पर सरकार और आरएसएस के पक्ष में खबरें करती हैं।

Hindi News के लिए जुड़ें हमारे साथ हमारे
फेसबुक, ट्विटरयूट्यूब, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, टेलीग्रामकू और वॉट्सएपपर