लगातार कोयले की कीमतों हो रही वृद्धि के कारण संकट में आए मिनी स्टील उद्योग, बिजली आपूर्ति के लिए राज्य सरकार से की स्थायी नीति बनाने की मांग

रायपुर। राज्य सरकार मिनी स्टील उद्योग संचालकों के लिये पांच वर्षीय एक योजना बना कर दे ताकि ऐसे उद्योग अपने स्टील प्लांट को सुचारू रूप से चला सकें। मिनी स्टील प्लांट एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास अग्रवाल, और महासचिव मनीष धुप्पड़ ने पत्रकारों के साथ चर्चा के दौरान यह सुझाव मीडिया के माध्यम से सरकार को दिए हैं। पत्रकावार्ता में एसासिएशन के अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

मिनी स्टील उद्योग संचालकों का कहना है कि स्टील उद्योग राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन काफी समस्या से गुजरना पड़ रहा है। एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में दो सौ मिनी स्टील प्लांट है। और उच्च श्रेणी की सबसे ज्यादा बिजली खपत करते हैं। इससे राज्य का हर साल 20 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व विद्युत मंडल को प्राप्त होता है। राज्य और केन्द्र सरकार को प्रतिवर्ष पांच हजार करोड़ से अधिक का राजस्व प्रदान किया जाता है। दो लाख परिवारों को प्रत्यक्ष, और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है।

उन्होंने बताया कि कोयला की कीमतों में वृद्धि के कारण बिजली के दरों में वीसीए चार्ज लगातार बढ़ गया है। जिससे लागत दरों में अत्याधिक वृद्धि हो गई है। वर्तमान में तैयार लौह का बिल्कुल भी डिमांड नहीं है और उल्टा कोयले के दरों में दिनों दिन वृद्धि होती जा रही है इससे पूरा स्टील उद्योग चरमरा गया है। जिसके कारण लोगों को अपना उद्योग बंद करने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

एसोसिएशन ने मांग की है कि मिनी स्टील प्लांट उद्योगों के लिए बिजली के दरों पर कम से कम पांच वर्षों की लॉग टाइम पॉलिसी बनाया जाए जिससे उद्योगों को प्रति वर्ष बिजली की दरों में वृद्धि बोझ बचा जा सके। उन्होंने कहा कि भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा नीलामी प्रक्रिया के द्वारा स्क्रैप एवं पिग आयरन का विक्रय किया जाता है। परन्तु वह स्क्रैप भी कुछ व्यापारियों द्वारा मुनाफाखोरी कर राज्य के बाहर निर्यात किया जा रहा है, परिणाम स्वरूप आयरन व स्क्रैप की कमी का दंश झेलना पड़ रहा है। इस पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए। एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री के साथ-साथ केन्द्रीय वित्त मंत्री को भी पत्र लिखकर स्टील उद्योगों की समस्याओं को हल करने की दिशा में कदम उठाने का आग्रह किया है।

एसोसिएशन ने उद्योगों को बचाने के लिए कई सुझाव दिए हैं। जिसके तहत कहा गया कि छत्तीसगढ़ रायपुर में एक समान्य स्क्रेप नीति के तहत स्क्रेप यार्ड खोला जाए, क्योंकि भारत के बाकी तटवर्तीय क्षेत्रों में स्क्रेप आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जैसा छत्तीसगढ़ रायपुर के आईसीडी में स्क्रेप निर्यात करने का आदेश लगभग 4 वर्ष पहले प्राप्त हो चुका है परन्तु स्क्रेनिंग मशीन के वित्तीय खर्च के कारण से वाणिज्य एवं वित्त विभाग केन्द्र सरकार के बीच में फाइल रूका हुआ है।

इस पर जल्द फैसला होना चाहिए और छत्तीसगढ़ रायपुर के आईसीडी में स्क्रेन मशीन लगवाकर स्क्रेप निर्यात सुविधा प्रदान करवाना चाहिए। प्राकृतिक खनिज संपदा को चीन, और अन्य देशों में निर्यात किया जा रहा है। इसको पहले अपने स्थानीय क्षेत्र के उद्योगों को संरक्षित करना चाहिए उसके उपरांत ही कच्चा माल देश के बाहर निर्यात करना चाहिए। इससे स्थानीय उद्योगों का कच्चे माल की संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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