नई दिल्ली। ‘सीआरपीएफ’ के सुकमा कैंप में आज हुई घटना ने देश को हिलाकर रख दिया है। सुकमा में सीआरपीएफ 50वीं बटालियन में एक जवान ने अपने ही साथियों पर ‘एके 47’ स्वचालित राइफल से गोलियां चला दीं। इस घटना में चार जवानों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य जवान घायल हैं। आखिर सीआरपीएफ जवानों को गुस्सा क्यों आता है, वे एकाएक अपने साथियों पर घातक वार कर बैठते हैं। ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब अभी तक नहीं मिल सका है।

छुट्टी को लेकर RTI का नहीं मिला जवाब
पिछले एक दशक से केंद्रीय गृह मंत्रालय और बल मुख्यालय का इस बाबत एक ही जवाब रहा है कि जवान के परिवार में कोई परेशानी रही होगी। वह परेशानी जब उसके दिमाग पर हावी हो जाती है, तो उस स्थिति में जवान, घातक कदम उठा लेता है। कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन जब आरटीआई एक्ट के तहत यह सूचना मांगती है कि सीएपीएफ में कितने जवानों को एक साल में 100 दिन की छुट्टी मिली है, तो जवाब देने से मना कर दिया जाता है।
साल भर में 100 से अधिक जवानों ने की आत्महत्या…
सीआरपीएफ में 2020 से लेकर इस साल सितंबर माह तक 100 से अधिक जवानों ने आत्महत्या की है। कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह का कहना है कि जवान, बहुत दबाव में ड्यूटी देते हैं।
केवल छलावा है 100 दिन छुट्टी की घोषणा
दिसंबर 2019 को सीआरपीएफ की नई बिल्डिंग की नींव का पत्थर रखने पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, सीएपीएफ में ऐसी व्यवस्था बनाई जा रही है, जिसके अंतर्गत केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान 100 दिनों की छुट्टी अपने परिजनों के साथ बिता सकेंगे। इस साल रणबीर सिंह ने गृह मंत्रालय से आरटीआई एक्ट के तहत जब यह सूचना मांगी कि एक साल में कितने जवानों को 100 दिन की छुट्टी मिली है तो मंत्रालय ने वह जानकारी देने से ही मना कर दिया। रणबीर सिंह बताते हैं कि ये घोषणा एक छलावा बनकर रह गई है।
जवानों की टेंशन मुद्दे हल करने से दूर होगी
सीआरपीएफ में जवानों द्वारा आत्महत्या करना या अपने साथियों पर गोली चला देना, इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पिछले एक दशक में कई दावे किए गए हैं। जवानों को मानसिक तनाव से दूर रखने के लिए बल ने निजी कंसलटेंट की सेवाएं भी ली। बाकायदा एक लंबा चौड़ा कार्यक्रम बनाया गया। योगा क्लासेज भी शुरू की गईं। अब हाल ही में जवानों के मानसिक स्वास्थ्य के मद्देनजर ‘चौपाल’ कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। अगर जवान की बात समय पर सुन कर उसकी समस्या का निवारण कर दिया जाए, तो आत्महत्या या साथियों पर गोली चलाने जैसी खतरनाक स्थिति को रोकने में मदद मिल सकती है। एसोसिएशन का कहना है कि जवानों की टेंशन, मुद्दे हल करने से खत्म होगी। जवानों के साथ अच्छे व्यवहार का सलीका, ऐसे आदेश समय-समय पर आते रहते हैं, लेकिन वे केवल फाइलों में ही होते हैं। जवानों को लेकर अफसरों में कोई बदलाव नहीं दिखता।

81000 जवानों ने ले लिया वीआरएस
एक दशक के दौरान सीएपीएफ में 81 हजार से ज्यादा जवानों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले ली है। वर्ष 2011-2020 तक 16 हजारों जवानों ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। एक सिपाही को भर्ती करने से लेकर उसकी ट्रेनिंग और उसे ड्यूटी देने तक सरकार के 15 से 20 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। इतनी भारी संख्या में जवानों के समय से पहले रिटायरमेंट लेने और नौकरी से त्यागपत्र देने के कई बड़े कारण हैं। किसी ने भी ‘सीएपीएफ’ को जानने व समझने की जरूरत नहीं समझी। ‘नॉन फैमिली स्टेशन’ की पोस्टिंग वाले ‘सीएपीएफ’ जवानों को अपना सरकारी आवास बचाने के लिए अदालत में जाना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार ने इन बलों में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने की तरफ ध्यान नहीं दिया। इन बलों में 2004 से पुरानी पेंशन खत्म कर दी गई है। समय पर जवानों को छुट्टी नहीं मिल रही। कई महीनों तक उन्हें परिवार से दूर रहना पड़ता है। सीआईएसएफ के जवानों को मात्र 30 दिन का वार्षिक अवकाश मिलता है। पिछले बजट में सेना के लिए 100 सैनिक स्कूल खोलने की घोषणा हो गई, लेकिन अर्धसैनिक बलों के लिए ऐसी घोषणा नहीं हुई।
सेना और सीएपीएफ के जवान देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करते हैं, मगर शहीद का दर्जा केवल सेना के जवान को मिलता है। परिजनों को मिलने वाली आर्थिक मदद में भी काफी अंतर होता है।