पिता की असमय मौत से लिया सबक, बदला जीवन का नजरिया, अब मजदूरों को न्याय दिलाना है एकमात्र लक्ष्य
पिता की असमय मौत से लिया सबक, बदला जीवन का नजरिया, अब मजदूरों को न्याय दिलाना है एकमात्र लक्ष्य

दामिनी बंजारे/ रायपुर। कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो कोई भी मुकाम या मंजिल पाना कठिन नहीं होता। हो सकता है उस कामयाबी को हासिल करने में मेहनत और परिश्रम अधिक लगे मगर एक बार यदि मन में ठान लिया है तो रास्ता खुद-ब-खुद मिलने लगता है। हमने कई सफल लोगों की कहानियां पढ़ी हैं या देखी हैं, जिनसे हमें जीवन में कुछ करने की प्रेरणा मिलती है।

मगर क्या किसी की असमय हुई मौत भी हमें कुछ सीख दे सकती है तो शायद आपको थोड़ा अचरज लगे। मगर यह सच है, हम आज आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे युवा के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने उनके पिता की असमय हुई मौत व परिस्थितियों को देख उन्होंने बड़ा सबक लिया। अब वे प्रदेश के बंधुआ मजदूरों के हक के लिए लड़ते हैं और उनकी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

यह कहानी है राजधानी से मात्र 45 किमी दूर महासमुंद जिले के गुढेला पाठा के रहने वाले एक युवक आत्माराम मारकंडे की जो अपनी मेहनत और परोपकार की भावना के चलते वर्तमान में बंधुआ मजदूर के लिए मसीहा बनकर सामने आएं हैं।

गुढेला पाठा के 24 वर्षीय आत्माराम ने पिछले साल श्रमिक अधिकार और न्याय संघटन (SAANS) बनाया है। यह संगठन प्रवासी मजदूरों जो प्रदेश व अन्तर्राज्यीय इलाकों में बंधुआ मजदूरी करते हैं उनको बंधन मुक्त कराने का कार्य करता है। आत्माराम ने अभी तक 40 मजदूरों की मदद की है जिसमें वे मजदूर न केवल घर आए, बल्कि उन्हें बंधुआ मजदूरी से भी मुक्ति मिली है।

पिता की मौत ने बदला सबकुछ

आत्माराम बताते हैं कि वे अपने पिता के साथ बचपन से ही उत्तरप्रदेश के इलाके में ईंट भट्ठे पर काम करते थे। उनके पिता करीब बीस वर्षों से वहां बंधुआ मजदूरी करते थे। मैंने अपने दादा को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में ईंट भट्ठे में काम करते देखा है। मेरे पिता बारहवीं तक पढ़े लिखे थे मगर फिर भी हालातों के चलते वे एक प्रकार से बंधुआ मजदूरी करते थे और मैं भी उनके साथ काम करता था। मुझे मेरे पिता मोबाइल दिलाना चाहते थे इसलिए समय से अधिक मेहनत करने लगे।

उन्होंने आगे बताया कि 2017 में एक दिन उनके पिता ईंट भट्ठे पर शाम को काम करने गए थे। मैं भी उनके साथ गया, लेकिन उन्होंने रात का हवाला देकर मुझे वापिस भेज दिया। पिता देर रात घर लौटे जहां हम ठहरते थे। जब वे घर लौटे तो उन्होंने सीने में दर्द होने की शिकायत की। मैं उनके लिए कुछ कर पाता इससे पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया। आत्माराम का कहना है कि मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ कि मेरे सिर से पिता का साया उठ गया।

नसीब नहीं हुआ पिता का अंतिम संस्कार

आत्माराम उस घटना को याद करके भावुक हो जाते हैं कि जब वे पिता की मौत की जानकरी लेने ईंट भट्ठे के मालिक के पास गए। उनसे पूछा कि उनके पिता को क्या हुआ था? तो उसने कुछ बताने से इंकार कर दिया। साथ ही उसके पिता का अंतिम संस्कार करने से भी उसे रोक दिया और न ही पोस्टमार्टम कराने दिया। उस समय मैं कुछ नहीं कर पाया क्योंकि मेरी उतनी उम्र नहीं थी कि मैं कुछ समझ पाता। कुछ समय बाद उत्तरप्रदेश की एक निचली अदालत में मालिक के खिलाफ याचिका दायर की। मामला आज भी कोर्ट में है और मैं आज भी न्याय के लिए दर-दर भटक रहा हूँ।

लॉकडाउन में लिया प्रण

आत्माराम का कहना है कि पिछले वर्ष जब पूरा देश कोरोना की वजह से तालाबंदी के दौर से गुजर रहा था। तब उनके पास छत्तीसगढ़ के 12 प्रवासी मजदूर जो ओडिशा के बलांगीर में फंसे हुए थे उनका फोन आया। ये सभी वहां पर बंधुआ मजदूरी करते थे। मुझे लगा कि यदि आज इनकी हेल्प कर पाऊंगा तो मुझे लगेगा कि मैंने अपने पिता को न्याय दिलाया है। मैंने वहाँ के सरपंच से संपर्क किया और चैनल के माध्यम से खबरें प्रकाशित की और अंततः वे सभी मजदूर सकुशल वापिस अपने घर पहुंच गए। अभी तक उनके संगठन ने 40 से अधिक बंधुआ मजदूरों को उनके घर वापिस लाने में मदद कर चुका है। साथ ही वे शोषित और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ लगातार आवाज भी बुलंद कर रहे हैं।

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