छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलने वाली जड़ी-बूटियों से पुरानी चिकित्सा पद्धति को घर-घर पहुंचा रही है यह आदिवासी महिला… अब तक दे चुकी हैं 400 से अधिक महिलाओं को रोजगार
छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलने वाली जड़ी-बूटियों से पुरानी चिकित्सा पद्धति को घर-घर पहुंचा रही है यह आदिवासी महिला… अब तक दे चुकी हैं 400 से अधिक महिलाओं को रोजगार

प्रीति ऊके, टीआरपी डेस्क। छत्तीसगढ़ राज्य को हर्बल स्टेट कहा जाता है। क्योंकि अकेले इस राज्य के जंगलों में 1,500 से अधिक प्रजातियों के हर्बल उत्पाद मिलते हैं। जिसमें नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित एक छोटे से गांव जिसे बोलचाल में अमरकंटक गांव भी कहा जाता है यहां के जंगलों में जड़ी-बूटियां सबसे ज्यादा पाई जाती हैं।

इसी बीच हम आपके लिए प्रदेश के कोरबा जिले में रहने वाली एक 39 वर्षीय आदिवासी महिला सरोजिनी गोयल की प्रेरक कहानी लेकर आए हैं जो बीते कई वर्षों से आदिवासियों के प्राकृतिक उपचार की पुरानी परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।

गौरतलब है कि आदिवासी अपनी पारंपरिक पद्धती एवं जंगल में मिलने वाली जड़ी-बूटियों से कई गंभीर बीमारियों का इलाज करने में सक्षम हैं। अपने माता-पिता से मिले इसी ज्ञान को गोयल ने प्राकृतिक चिकित्सा और वनस्पति विज्ञान के पाठ्यक्रम में भी शामिल करवाया है। स्व- सहायता समूह बनाकर वह दूसरी महिलाओं तक अपना ज्ञान भी पहुंचा रही हैं। जिससे लोगों को उपचार तो मिला ही है साथ ही महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है।

गोयल 2010 में ट्रेडिशनल हीलर एसोसिएशन के संपर्क में आईं और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), साथ ही साथ राज्य सरकार द्वारा समर्थित एक वनस्पति विज्ञान पाठ्यक्रम में भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 65 प्रतिशत ग्रामीण भारत प्राथमिक स्वास्थ्य रोगों से निपटने के लिए पारंपरिक तरीकों पर निर्भर है। इसे देखते हुए ही यूएनडीपी ज्ञान की रक्षा और संरक्षण में निवेश भी करता है।

एक साल के लंबे पाठ्यक्रम के बाद और वनस्पति ज्ञान के साथ, सरोजिनी ने गांव की अका फैसला किया।न्य महिलाओं के साथ मिलकर एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) शुरू करने लेकिन उन्हें वैज्ञानिक रूप से विकसित और संरक्षित करने की भी आवश्यकता थी। उन्हें नुकसान पहुंचाए बिना उन्हें काटने की जरूरत थी, दरअसल यदि संयंत्र क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो यह अगले साल उत्पादन को प्रभावित करेगा। वहीं इसके बाद उन्होंने किचन गार्डन में औषधीय पौधों की नर्सरी भी तैयार करना शुरू किया। जिससे आजीविका कमाने के लिए इन पौधों या इनसे बनी दवाओं या चीजों को बेच सकें।

सरोजिनी के द्वारा कुल 60 महिलाओं के साथ शुरू हुए इस समूह से करीब 450 महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है। समूह इससे सालाना 15 लाख रुपये का कारोबार करता है। वहीं समूह से जुड़ी महिलाओं को कम से कम 5,000 रुपये प्रति माह या उससे अधिक की आमदनी भी होती है।

छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं ने भले ही जड़ी-बूटियों को उपयोग में ला कर लोगों के लिए औषधीय बना रही है लेकिन इससे बेरोजगार महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है साथ ही उपचार भी सही तरिके से हो रहा है और न ही इसके कोई साइड इफेक्ट है।

बता दें सरोजिनी गोयल के अनुसार घर के गार्डन में तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा, नीम, शतावरी, अडुलसा और अन्य स्थानिक प्रजातियों जैसे पौधों जरूर लगाने चाहिए। जिसके उपयोग से बिमारियों का उपचार कम खर्च में और घर पर ही किया जा सकें।

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