ये संत हैं या भुजंग ? धर्मसंसद में विष - वमन!
ये संत हैं या भुजंग ? धर्मसंसद में विष - वमन!

-श्याम वेताल

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रावणभाठा मैदान में आयोजित धर्मसंसद में रविवार , 26 दिसंबर 2021 को एक धर्मज्ञानी का अधर्मी आचरण पूरे राज्य को लज्जित कर गया। यू – ट्यूब पर रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र का स्पष्ट पाठ कर प्रसिद्धि बटोरने वाले कालीचरण महाराज उर्फ़ अभिजीत धनञ्जय सराग ज्यों ही रावणभाठा के मैदान में बने मंच पर पहुंचे उनके शरीर में शायद रावणी – संचार हो गया और उनकी भाषा विष – वमन करने लगी।
संत से भुजंग बने कालीचरण महाराज ने धर्म की बातों को कहने से ज्यादा राजनीति में रुचि दिखाई और राष्ट्रपिता बापू के विरुद्ध अभद्र और अपमानजनक टिप्पणी की। इतना ही नहीं , ये महाशय एक धर्मविशेष के लोगों के ख़िलाफ़ भी ज़हर उगलने से बाज़ नहीं आये।

दुःखद यह था कि उस सभास्थल पर उस समय मौजूद किसी ने भी कालीचरण के काले – कुरूप वचनो का विरोध नहीं किया लेकिन प्रशंसा करनी होगी कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक एवं राज्य गोसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास की जिन्होंने काली की काली भड़काऊ भाषा और महात्मा गाँधी के विरुद्ध अपशब्द कहने का पुरजोर विरोध किया और मंच छोड़ दिया।

महाराष्ट्र के अकोला निवासी कालीचरण के ख़िलाफ़ राज्य की पूरी कांग्रेस पार्टी एकजुट हो गयी है और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने तो राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज़ करने की बात कही है। फ़िलहाल उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ हो गया है। अब सवाल उठता है कि कालीचरण को ऐसे आयोजन में ऐसा विस्फोटक वक्तव्य देने की बात मन में क्यों आयी होगी ? क्या उन्हें राजनीति में आने का लोभ है ? या उन्होंने ऐसी बात कहने के लिए किसी ने प्रेरित किया था ताकि माहौल बिगड़ सके ? क्या वे किसी राजनीतिक दल का मोहरा बने हैं ?

इन सवालों का जवाब तो तभी मिल सकता है जब उनसे सख्त पूछताछ हो और पूछताछ तब हो सकेगी जब उनकी गिरफ़्तारी होगी। अभी तो श्रीमान फरार हो गए हैं।यह दूसरा मौका है जब किसी संत ने छत्तीसगढ़ में बड़े नेता के खिलाफ़ बदजुबानी की है। कुछ वर्ष पहले रायपुर में रामविलास वेदांती ने भी सोनिया गाँधी के ख़िलाफ़ घटिया बातें कहीं थी। उस समय लेखक ने ‘ संत संतई की भाषा छोड़ गुंडई की भाषा बोलने लगे ! ‘ शीर्षक से एक लेख लिखा था।

समझ में नहीं आता कि संत महात्माओं को धर्म ,अध्यात्म को छोड़ राजनीति में क्यों घुसने दिया जाता है ? ऐसे संतों की पहचान होनी चाहिए जो समाज में जहर घोल कर राजनीति में प्रवेश करने का कुचक्र रच रहें हैं। ऐसे तथाकथित संतों को सार्वजनिक कार्यक्रमों में विचार रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वैसे भी , सांसारिक मोहमाया से दूर रहने वालों को ही संत और महात्मा कहा जाता है। गाँधी को तब महात्मा कहा जाने लगा जब उन्होंने मोहमाया का त्याग कर दिया और लाठी -लंगोटी में आ गये। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन सिर्फ देश के लिए लगा दिया। जबकि , आज के संत सिर्फ मोहमाया के लिए ही अपना सर्वस्व लगाते हुए दिखते हैं।
हालांकि , मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में बहुत कड़ा रुख अपनाया है और उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही कालीचरण छत्तीसगढ़ पुलिस की गिरफ्त में होगा ।

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