दलित व गरीबों को शिक्षा देने के विरोध में पिता ने घर से निकाला, फिर भी नहीं मानी हार, लड़कियों के लिए शुरू किया देश का पहला स्वदेशी पुस्तकालय
दलित व गरीबों को शिक्षा देने के विरोध में पिता ने घर से निकाला, फिर भी नहीं मानी हार, लड़कियों के लिए शुरू किया देश का पहला स्वदेशी पुस्तकालय

टीआरपी डेस्क। फातिमा शेख ने समाज सुधारक ज्योति बा फुले और सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर 1848 में स्वदेशी पुस्तकालय की शुरुआत की थी, यह देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फातिमा शेख का जन्म आज ही के दिन यानी 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ था। वह अपने भाई उस्मान के साथ रहती थीं। जब फूले दंपती को दलित व गरीबों को शिक्षा देने के विरोध में उनके पिता ने घर से निकाल दिया था तो उस्मान शेख व फातिमा ने उन्हें शरण दी थी।

स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना शेख के घर में ही हुई थी। यहीं फातिमा शेख और फुले दंपती ने समाज के गरीब व वंचित तबकों व मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा देने का काम शुरू किया था। पुणे के इसी स्कूल में उन लोगों को शिक्षा देने का महायज्ञ शुरू हुआ था, जिन्में जाति, धर्म व लिंग के आधार पर उस वक्त शिक्षा से वंचित रखा जाता था।

इससे पहले गूगल ने कॉस्मोलॉजिस्ट, ऑथर और वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) के 80वें जन्मदिन पर वीडियो वाला डूडल बनाया था। इस डूडल में स्टीफन हॉकिंग के पूरे जीवन को दर्शाया गया था। इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में पैदा हुए स्टीफन हॉकिंग बचपन से ही ब्रह्मांड के प्रति आकर्षित थे। 21 साल की उम्र में उन्हें एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी का पता चला, जिसने उन्हें धीरे-धीरे व्हीलचेयर तक सीमित कर दिया था। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपनी रिसर्च जारी रखी थी।

घर-घर जाती थीं बच्चों को बुलाने

फातिमा शेख घर-घर जाकर दलितों और मुस्लिम महिलाओं को स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया करती था। वह चाहती थीं कि भारतीय जाति व्यवस्था की बाधा पार कर वंचित तबके के बच्चे पुस्तकालय में आएं और पढ़ें। हालांकि, उन्हें प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ा था। इसके बावजूद फातिमा शेख और उनके सहयोगियों ने सत्यशोधक आंदोलन जारी रखा।

वह फुले दंपती की तरह जीवन भर शिक्षा व समानता के लिए संघर्ष में जुटी रहीं। अपने इस मिशन में उन्हें भारी अवरोधों का भी सामना करना पड़ा। समाज के प्रभावशाली तबके ने उनके काम में रोड़े डाले। उन्हें परेशान किया गया, लेकिन शेख व उनके सहयोगियों ने हार नहीं मानी। इसके साथ ही भारत सरकार ने 2014 में फातिमा शेख की उपलब्धियों को याद किया और अन्य अग्रणी शिक्षकों के साथ उर्दू पाठ्यपुस्तकों में उनके प्रोफाइल को जगह दी, ताकि सभी बच्चे उनके बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जान सकें।

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