श्याम वेताल

आम बजट हर साल पेश होता है। बजट पेश होने के बाद सत्ता पक्ष के छाते के नीचे बैठने वाले इसे अच्छा कहते हैं और छाते के बाहर के लोग कहते हैं कि इसमें आम जनता के लिए कुछ नहीं है। बरसों से यही परंपरा चलती आ रही है और आगे भी चलती रहेगी। वास्तव में, बजट अपने आप में एक जटिल विषय है और इसे बनाने वालों ने इसे और कठिन बना दिया है ताकि सामान्य जनता तुरंत यह न समझ सके कि बजट कितना जनहितकारी है या कितना जनविरोधी ? अर्थशास्त्री और सी ए भी तत्काल प्रतिक्रिया देने से बचना चाहते हैं और राजनेता तो अपनी पार्टी लाइन का पालन करते हैं।

इस साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो आम बजट पेश किया है उसमे पांच राज्यों के चुनाव का एहसास साफ है अन्यथा आम चुनाव के दो साल पहले का बजट इतना सरल , मुलायम नहीं होता कि विरोधियों को भी निंदा करने के लिए सही एंगल न मिले।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले इसे भरोसे का बजट करार देते हुए कहा हो कि इस बजट से किसानो को अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलेगी ,युवाओं के सपनो को मजबूती मिलेगी , नये स्टार्ट अप्प्स को प्रोत्साहन मिलेगा और अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी लेकिन पुराने वादों को याद किया जाय तो बकौल प्रधानमंत्री इस भरोसे के बजट पर सहसा भरोसा नहीं होता।

मोदी सरकार ने किसानो की आय दोगुनी करने का वादा किया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने का आश्वासन दिया गया था , विफल रहे। कोरोना की विपदा ने उन्हें बचा लिया वरना किसानों की तरह युवा वर्ग के आंदोलन को भी झेलना होता . अब इस बजट में कहा गया है कि किसानो से रेकार्ड खरीदारी की जाएगी , रबी और खरीफ फसलों की खरीद बढ़ेगी ,फसलों केआकलन के लिए किसान ड्रोन का इस्तेमाल करेंगे , 2023 मोटा अनाज वर्ष घोषित होगा , 2025 तक हर गांव में ऑप्टिकल फाइबर पहुँच जायेगा। युवाओं से फिर वादा किया गया है कि 60 लाख नौकरियां दी जाएंगी।

नौकरीपेशा लोगों को इस बजट ने निराश ही किया है। आयकर स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ। स्टैण्डर्ड डिडक्शन भी जहां के तहां है। आश्वासन है कि टैक्स सिस्टम को आसान किया जायेगा और रिटर्न में भूल सुधार के लिए दो साल मिलेंगे।

इसके अलावा , कुछ ऐसी घोषणाएं हैं जो आम जनता की रोज़मर्रा ज़िंदगी पर फ़िलहाल असर नहीं डालती। मसलन , डिजिटल यूनिवर्सिटी शुरू होगी , वर्ष 2022 -23 में रिजर्व बैंक डिजिटल करेंसी जारी करेगा , 25000 किलोमीटर सड़कें बनेंगी , रेलवे में पी पी पी मोडल से विकास होगा ,तीन सालों में 400 वन्दे भारत ट्रेनें चलेंगी और नागरिकों के लिए ई -पासपोर्ट शुरू होंगे।

अब इन घोषणाओं से आम आदमी को खुश रहने के लिए कहा जाता है …… कोई कैसे खुश होगा ? और क्यों खुश होगा ? हमसे टैक्स लिया जाता है क्यों ? इसलिए कि आप जो परोसें हमें खाना चाहिए और खुश भी होना चाहिए ? हमारी जरूरत और हमारी पसंद का कोई मतलब नहीं ? हमें आज रोटी चाहिए , आप कहतें हैं कि साल भर बाद हम आपको चुपड़ी रोटी देंगे….!

बहरहाल , अब जमाना बदल गया है। हर व्यक्ति अपेक्षा करता है कि आज हमें खुशहाल जिंदगी और आरामदेह गुजर -बसर मिले , कल के वादे पर आज हमसे खुश होने को मत कहिये। ये हमसे ना हो पायेगा। खैर , मोदी सरकार ने पूरी कोशिश की है उनके बजट पर लोग भरोसा करें लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है इस बजट में जो भरोसे के लायक हो। …..और फिर, आज के युग में भरोसा दिलाया नही जाता , हो जाता है अगर आपकी मंशा सही है।

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