रायपुर : छत्तीसगढ़ सरकार के 3 साल पूरे होने के अवसर पर राजधानी के साइंस कॉलेज मैदान में विकास प्रदर्शनी लगाई गई है। इस प्रदर्शनी में बस्तर के विकास को समर्पित एक विशेष पंडाल लगाया गया है। यह पूरा पंडाल बस्तर को समर्पित है। इस पंडाल के अंदर बस्तर में संचालित विभिन्न योजनाओं से उत्पादित वस्तुओं को रखा गया है। जिसमें यहाँ के मिलेट्स, शहद, प्राक्रितिक मसाले एवं अचार आदि शामिल हैं। लेकिन इस पंडाल में विशेष आकर्षण है बस्तर की कला को समर्पित स्टॉल्स जहाँ बस्तर की विभिन्न कलाओं को देखा जा सकता है।

काष्ठ शिल्पकला

बस्तर अंचल की प्राचीनतम शिल्प कला में काष्ठ कला भी शामिल है। बस्तर के जनजाति समुदाय मुख्यतः अबूझमाड़िया, मुड़िया भतरा, हलबा एवं गोड़ प्रमुख है। ये सभी जनजाति समुदाय काष्ठ से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों के निर्माण करते रहे हैं। जिसमें देवी-देवताओं, मानव कलाकृति एवं जनजाति संस्कृति के चित्र आदि प्रमुख हैं।

काष्ठ शिल्पकला

बाँस कला

देश में मुख्यतः बँसोर जनजाति समुदाय के लोग परंपरागत रूप से बाँसशिल्प को व्यवसाय के रूप में अपना कर स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार घरेलू उपयोगी सामग्री का निर्माण करते थे। आज इस कला ने अपनी अलग पहचान बना ली है और बस्तर का बाँसशिल्प देश विदेश में जाना जाने लगा है।

बाँस कला

तुम्बा शिल्प

इसे तुम्बा नामक सब्जी जिसे छत्तीसगढ़ी में तुमा और हिंदी में लौकी के नाम से भी जाना जाता है से बनाया जाता है। यह शिल्प छत्तीसगढ़ में बस्तर के जिलों के आदिवासियों द्वारा किया जाता है। इसे बनाने के लिए गर्म लोहे की सलाखों का उपयोग किया जाता है जिसके द्वारा तुमा पर विभिन्न प्रकार के चित्रों को उकेरा जा सकता है।

तुम्बा शिल्प

सीसल कला

इसका निर्माण सीसल की पत्तियों के रेशों से होता है। सीसल की पत्तियों के रेशे निकाले जाते हैं यह रेशे सफेद रंग के एवं मजबूत होते हैं। इन से बनने वाली रस्सियों का व्यवसायिक उपयोग समुद्री जहाज को बांधने के लिए लंगर में किया जाता था। इन्हीं सीसल के रेशों से विभिन्न प्रकार के सजावटी एवं उपयोगी सामान का निर्माण बस्तर जिले के शिल्पकारों के द्वारा किया जाता है।

सीसल कला

भित्ती कला

प्रदेश की प्राचीन कला में से एक है भित्ती कला। बस्तर अंचल अपनी भित्ती कला के लिए जाना जाता है। प्राचीन काल से घर की दीवारों की सजावट करने के लिए प्रतीक चिन्हों का अंकन स्थानीय उपलब्ध रंगों तथा मिट्टी के उभार से बनाए गए सुंदर चित्रों का उपयोग किया जाता है। अब इसी का प्रयोग करके बस्तर में अनेक उपयोगी सामान बनाए जा रहे हैं।

भित्ती कला

ढोकरा शिल्प

यह शिल्प प्रदेश के प्रचीन शिल्पों में से एक है। ढोकरा शिल्प बस्तर अंचल की पहचान है जो न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जाना जाता है। बस्तर अंचल के बहुत से शिल्पकारों को राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। प्रदेश में करीब 2000 परिवार ढोकरा शिल्प से जुड़े हुए हैं।

ढोकरा शिल्प

लौह शिल्प

लौह शिल्प आदि काल से प्रचलित है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो सभ्यता के समय भी इस प्रकार के शिल्पों के प्रमाण मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि यह शिल्प अत्याधिक प्राचीन है। प्रदेश के बस्तर क्षेत्र में भी यह शिल्प काफी प्रचलित है। इसके प्रयोग से यहाँ के निवासी विभिन्न साज सज्जा के सामान आदि का निर्माण करते हैं। जिनकी मांग देश सहित विदेशों में भी हैं।

लौह शिल्प

श्रृंगार

मृदा शिल्प, ढ़ोकरा शिल्प एवं लौह शिल्प के समन्वय से जिला प्रशासन कोंडागांव द्वारा हस्तशिल्प आभूषणों का श्रृंगार ट्राईबल ज्वेलरी के ब्रांड के नाम को लेकर प्राचीन कला को आधुनिक साज सज्जा से जोड़ते हुए 15 महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आभूषण निर्माण कराया जा रहा है। अब तक डेढ़ लाख का व्यवसाय दुबई और भारत के राज्यों में किया जाता है।

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