टीआरपी डेस्क। अक्टूबर 2020 में सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक का नाम बदलकर मेटा रखा गया। जिसके बाद कंपनी को मेटा (Meta) के नाम से जाना जा रहा है। मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा है कि वे चाहते हैं कि दुनिया उनकी कंपनी को सिर्फ फेसबुक के तौर पर नहीं, बल्कि एक मेटावर्स के रूप में जाने, लेकिन नए नाम के बाद भी विवाद कंपनी का पीछा नहीं छोड़ रहे।

डाटा ट्रांसफर की सुविधा नहीं मिलती तो कंपनी को बंद करनी होगी सेवाएं
मेटा ने अपने एक बयान में कहा है कि यदि उसे अन्य देशों के साथ यूरोपियन यूजर्स का डाटा शेयर करने की इजाजत नहीं मिलती है तो उसे अपनी सेवाएं बंद करनी होगी। मेटा ने कहा है कि यूजर्स का डाटा शेयर ना होने से उसकी सर्विसेज पर प्रभाव पड़ता है। यूजर्स डाटा के आधार पर ही कंपनी यूजर्स को विज्ञापन दिखाती है।
नई शर्तों में डाटा शेयर की हो रही मनाही
मेटा ने साफतौर पर कहा है कि वह 2022 की नई शर्तों को वह स्वीकार तो करेगा लेकिन यदि डाटा ट्रांसफर की सुविधा नहीं मिलती है तो उसे फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत अपनी कई सेवाएं बंद करनी पड़ेंगी। बता दें कि अभी तक मेटा यूरोप के यूजर्स को डाटा अमेरिका सर्वर पर स्टोर कर रहा था लेकिन नई शर्तों में डाटा शेयर की मनाही है।
इस वजह से बंद करना पढ़ सकता है फेसबुक, इंस्टाग्राम
मेटा ने सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन को बताया है कि यदि जल्द-से-जल्द सर्विस को लेकर नया फ्रेम वर्क तैयार नहीं किया गया तो यूरोप के यूजर्स के लिए उसे अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ेंगी। यूरोपियन यूनियन के कानून के मुताबिक यूजर्स का डाटा यूरोप में नहीं रहना चाहिए, जबकि मेटा की मांग है की यूजर्स का डाटा शेयर करने की इजाजत मिले। जुकरबर्ग चाहते हैं कि यूरोप के यूजर्स का डाटा भी अमेरिकन सर्वर पर स्टोर हो।
बता दें कि पहले Privacy Shield कानून के तहत यूरोपीय डाटा को अमेरिकी सर्वर पर ट्रांसफर किया जाता था, लेकिन इस कानून को जुलाई 2020 में यूरोपीय कोर्ट ने खत्म कर दिया। प्राइवेसी शील्ड के अलावा मेटा यूरोपीय यूजर्स का डाटा अमेरिकी सर्वर पर स्टोर करने के लिए Standard Contractual Clauses का भी इस्तेमाल कर रही है, लेकिन इस पर भी यूरोप समेत कई देशों में जांच चल रही है।
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