टीआरपी डेस्क। निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” इन दिनों बहुत चर्चा बटोर रही है। कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और पलायन की दंश पर बनी यह फिल्म कश्मीरी पंडितों के साथ घटी घटनाओं पर फिल्माया गया है। लेकिन जब असल में जब (1990 ) ये सभी घटनाएं घटी तब भारत का केवल एक शख्स उनकी सहायता के लिए सामने आया।

बाला केशव ठाकरे (बाला साहेब ठाकरे) एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने कश्मीरी पंडितों की सहायता की थी। बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे वर्तमान में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री है। बाला ठाकरे खुद कभी किसी राजनीतिक पद पर नहीं रहे लेकिन वह हमेशा लोगों की मदद करते थे। साल 2020 में एक पत्रकार (कश्मीरी पत्रकार, कश्मीरी पंडित) ने बताया था कि बाला साहेब इकलौते नेता थे जिन्होंने 1990 में कश्मीरी पंडितों की मदद की थी।

दरअसल, 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों पर अत्याचारों की सीमा पार हो गयी। इस दिन पूरे समुदाय को घाटी छोड़ने पर विवश होना पड़ा। कई लाख लोग एक साथ सड़कों पर आ गए थे। लोग कैंपों में रहने को मजबूर थे। कश्मीरी पंडितों को ये भरोसा था कि उन पर हुए अत्याचार के खिलाफ भारतीय राजनीतिक पार्टियां मजबूत कदम उठाएंगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। चारों तरफ से लाचारी, विवशता के घेरे में जब समुदाय के लोगों को कुछ सूझ नहीं रहा था तो समुदाय के कुछ प्रतिनिधि बाला साहेब से मिलने पहुंचे। बाला साहेब ने इन प्रतिनिधियों से पूछा कि उन्हें किस तरह की मदद चाहिए? प्रतिनिधि समझते थे कि आर्थिक मदद तो कुछ समय में समाप्त हो जाएगी।

प्रतिनिधियों ने बाला साहेब से कहा कि अगर संभव हो सके, तो महाराष्ट्र के संस्थानों में कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करवा दें। इससे उनके बच्चों को अपना भविष्य बनाने में मदद मिलेगी। बाला साहेब ने इसे तुरंत स्वीकार किया और कश्मीरी पंडितों को दिया वादा पूरा किया। खुद कश्मीरी पत्रकार ने यह स्वीकार किया कि बालासाहेब द्वारा की गई की वजह कश्मीरी पंडितों की अगली पीढ़ी को पढ़ाई-लिखाई और करियर बनाने में काफी हद तक मदद मिली।

कश्मीरी पंडितों की सहायता का श्रेय अगर किसी को दिया जाता है तो वह है बाला साहेब ठाकरे। 1990 में जब कश्मीरी पंडितों का उनके घरों में रहना मुश्किल हो गया था, ऐसी स्थिति में बाल ठाकरे ने न केवल उनका सहयोग किया बल्कि उन्हें महाराष्ट्र में आरक्षण भी दिलवाया। जिसकी वजह से आज कई कश्मीरी पंडितों का घर चल रहा है।

मुंबई में होगा वहीं जो बाला साहेब ठाकरे कहेंगे

राजनीति में किसी पद पर न होते हुए भी बाला साहेब ठाकरे का बोल-बाला हुआ करता था। एक वक्त ऐसा भी रहा जब यह माना जाता था कि सरकार चाहे किसी की भी क्यों न हो पर मुंबई में होगा वहीं जो बाला साहेब ठाकरे कहेंगे। और इस धारणा को गलत भी नहीं कहा जा सकता। उनके एक इशारे पर शिव सैनिक बिना देर किये किसी भी घटना को अंजाम देने में नहीं सोचते थे। उनकी पार्टी सत्ता में रहे या न रहे बाल ठाकरे के का रुतबा इतना बड़ा था कि बड़े-बड़े लोग उनके यहां हाजिरी लगाने जाया करते थे। बाला साहेब ठाकरे ने अपने पूरे जीवन में जो किया वो डंके की चोट पर किया।

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