AIIMS

रायपुर। गंभीर रोगियों को दर्द से राहत प्रदान करने के लिए पैन एंड पैलिएटिव केयर योजना के अंतर्गत प्रथम चरण में प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में यह सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के तत्वावधान में 28 जिला अस्पतालों के चिकित्सकों और पैरा-मेडिकल स्टॉफ को ट्रेनिंग के साथ शुरूआत कर दी गई है। जिला अस्पतालों में सुविधा प्रारंभ होने के बाद दूसरे चरण में पीएचसी और सीएचसी तक यह सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।

इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैलिएटिव केयर और नेशनल हैल्थ मिशन के संयुक्त तत्वावधान में पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित कर छत्तीसगढ़ के सभी जिला अस्पतालों के एक चिकित्सक और एक पैरा मेडिकल स्टॉफ को गंभीर रोगियों के दर्द को कम करने के लिए प्रशिक्षित किया गया।

नेशनल प्रोग्राम फॉर पैलिएटिव केयर योजना के अंतर्गत आयोजित यह कार्यक्रम प्रदेश के वृहद प्रशिक्षण कार्यक्रमों में से एक है। अभी तक रोगियों को अपने दर्द को कम करने के लिए मुख्य शहरों में स्थित प्रमुख अस्पतालों में संपर्क करना पड़ता था मगर इस प्रशिक्षण के बाद जिला अस्पतालों में भी यह सुविधा उपलब्ध होगी।

निदेशक प्रो. (डॉ.) नितिन एम. नागरकर ने प्रशिक्षण कार्यशाला को बहु-उपयोगी बताते हुए कहा कि एम्स इस दिशा में नेतृत्व के लिए सदैव तत्पर है। इस प्रशिक्षण के बाद जिला स्तर पर और पीएचसी और सीएचसी स्तर तक यह सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।

मुख्य अतिथि एम्स, दिल्ली के पैलिएटिव केयर विभागाध्यक्ष डॉ. सुषमा भटनागर ने बताया कि भारत में कार्डियक मायोपैथी, क्रॉनिक रीनल डिजिज और कैंसर जैसे गंभीर 3 प्रतिशत रोगियों को ही अंतिम स्थिति में पैलिएटिव केयर मिल पाती है। यदि चिकित्सकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाए तो दूरस्थ क्षेत्रों में इन रोगियों को दर्द निवारक दवाइयों के प्रयोग से अंतिम स्थिति में पीड़ा से राहत प्रदान की जा सकती है।

कार्यक्रम का आयोजन आंकोलॉजी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. यशवंत कश्यप और पैन एंड पैलिएटिव केयर के विशेषज्ञ डॉ. अविनाश तिवारी के निर्देशन में हुआ। एनएचएम के नोडल अधिकारी डॉ. कमलेश जैन और डॉ. शैलेंद्र अग्रवाल ने इस पहल को सराहनीय बताया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में डॉ. सिद्धार्थ नंदा, डॉ. रूपा मेहता, डॉ. विनय राठौर, डॉ. अमित, डॉ. प्रसाद डांगे सहित प्रमुख चिकित्सकों ने भाग लिया।

पैलिएटिव केयर के अंतर्गत गंभीर रोगियों की मानसिक और शारीरिक पीड़ा को कम करने का प्रयास किया जाता है। इसमें रोगी के सामाजिक, शारीरिक, पारिवारिक, अध्यात्मिक, भावनात्मक पहलुओं का अध्ययन कर रोगी को दवाइयों के साथ मनोवैज्ञानिक सहायता भी प्रदान की जाती है जिससे उसके आत्मविश्वास में वृद्धि हो सके।

Hindi News के लिए जुड़ें हमारे साथ हमारे
फेसबुक, ट्विटरयूट्यूब, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, टेलीग्रामकू और वॉट्सएप, पर