इस फेमस IAS ने कहा 'गलती हुई, सबकुछ खत्म हो गया...' तीन साल बाद फिर से जॉइन की सिविल सर्विसेज, जानिए क्या है वापसी के लिए सर्विस रूल्स
इस फेमस IAS ने कहा 'गलती हुई, सबकुछ खत्म हो गया...' तीन साल बाद फिर से जॉइन की सिविल सर्विसेज, जानिए क्या है वापसी के लिए सर्विस रूल्स

नई दिल्ली। UPSC Topper रहे शाह फैसल (Shah Faesal) एक बार फिर सुर्खियों में हैं। IAS से इस्तीफा देने के 3 साल बाद उन्होंने फिर से सिविल सर्विसेज जॉइन कर ली है। हालांकि, अभी उनकी पोस्टिंग होनी बाकी है। शाह फैसल अभी वेटिंग में हैं। बीते दिन ही उन्होंने सोशल मीडिया पर नौकरशाह के रूप में अपनी वापसी का संकेत दिया था।

‘असहिष्णुता’ को लेकर छोड़ी थी नौकरी

फैसल ने 2009 में UPSC की परीक्षा में टॉप किया था। वो जम्मू-कश्मीर के पहले UPSC टॉपर हैं। उन्होंने देश में बढ़ती कथित ‘असहिष्णुता’ को लेकर जनवरी 2019 में IAS की नौकरी छोड़ दी थी और राजनीति के मैदान में उतर पड़े थे। इसके बाद शाह फैसल ने अपनी खुद की पार्टी ‘जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट’ बनाई और विधानसभा चुनाव लड़ने की मंशा जताई।

ट्वीट के जरिए दिया था नौकरी में वापसी का संकेत

गौरतलब है कि बीते दिन ही शाह फैसल ने IAS की नौकरी में अपनी वापसी का संकेत दिया। फैसल ने ट्वीट कर 2019 में सरकारी नौकरी छोड़कर सियासत में कूदने के अपने फैसले को लेकर बातें कही। उन्होंने बताया कि कैसे उनके जीवन के 8 महीने (जनवरी 2019-अगस्त 2019) इतने बुरे गुजरे कि वो टूट गए थे।

क्या कहते हैं ऑल इंडिया सर्विस रूल्स?

आईएएस या आईपीएस की सेवाओं से जुड़े नियम कायदे इस रूल बुक के अंतर्गत आते हैं। ऑल इंडिया सर्विस अमेंडमेंट रूल्स 2011 के तहत इस्तीफे के बाद वापस नौकरी में आने संबंधी नियम शर्तें तय की गई थीं। इसके मुताबिक मोटे तौर पर कहा गया था : ‘कोई अधिकारी अपना इस्तीफा वापस ले सकता है, अगर इस्तीफे के पीछे रहे कारणों से उसकी सत्यनिष्ठा, क्षमता और व्यवहार पर आंच न आती हो।’

लेकिन बात इतनी ही नहीं है। कोई अफसर इस्तीफा वापस लेने की कवायद कुछ शर्तों पर ही कर सकता है। अगर किसी अफसर ने इस्तीफा इसलिए दिया था कि उसे किसी व्यावसायिक प्राइवेट कंपनी या कॉर्पोरेशन या सरकार के नियंत्रण वाली किसी कंपनी में जॉइन करना था, या फिर इस्तीफा देकर व​ह किसी राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक आंदोलन से जुड़ने वाला था, तो ऐसे में इस्तीफा वापसी की दरख्वास्त केंद्र सरकार द्वारा मंज़ूर नहीं की जा सकेगी।

क्या और भी कोई नियम कायदा है?

पर्सनल और ट्रेनिंग विभाग के तहत भी सर्विस से जुड़े कुछ मामले तय और नियंत्रित होते हैं। अगर कोई अधिकारी अपने पद व सेवा से इस्तीफा देता है और कुछ समय के बाद वह सर्विस में दोबारा आना चाहता है तो यह भी एक देखने लायक बिंदु होता है कि उसका इस्तीफा केंद्र द्वारा मंज़ूर किया गया या नहीं। नौकरी में दोबारा आने के लिए अधिकारी के आवेदन पर केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (CAT) सुनवाई करता है।

क्या था शाह फैसल के मामले में पेंच?

ऊपर बताए गए नियम शर्तों से तो साफ है कि शाह फैसल का मामला काफी पेचीदा था। कश्मीर में बतौर आईएएस सेवाएं दे रहे शाह फैसल ने साल 2019 की शुरूआत में इस्तीफा दिया था, लेकिन पहली बात यह है कि अब तक उनका इस्तीफा केंद्र द्वारा मंज़ूर नहीं किया गया था। दूसरा पेंच यह है कि फैसल ने इस्तीफा सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए दिया था और इस्तीफा देकर अपनी एक राजनीतिक पार्टी बनाई थी।

इतना ही नहीं, तीसरा पेंच यह भी था कि पिछले साल 5 अगस्त को कश्मीर के राज्य स्वरूप में बदलाव के बाद बने हालात के चलते अन्य कई कश्मीरी नेताओं के साथ ही फैसल को भी पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार/नज़रबंद भी किया गया था और करीब दस महीने बाद उन्हें रिहा किया गया। तो फैसल के मामले में सवाल खड़े होते हैं:

  1. क्या इस्तीफा देने के मकसद और इस्तीफे के बाद की गतिविधियों को विचाराधीन रखा गया या अब तक इस्तीफा मंज़ूर नहीं हुआ है, इस बात को तवज्जो दी गई ?
  2. क्या इस्तीफा दे चुके आईएएस की पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तारी नौकरी रीजॉइन करने में बाधा नहीं बनी?

इन सवालों के जवाब के लिए कुछ उदाहरणों से प्रैक्टिस को समझना ज़रूरी है।

एक सामान्य केस :

शिमला में नियुक्त रही एक महिला रेवेन्यू सर्विस अधिकारी के केस में कुछ साल पहले खबर थी कि उन्होंने 2008 में स्वास्थ्य और रिलेशनशिप के खराब दौर के चलते इस्तीफा दिया था और तीन साल बाद वह वापस सेवा में आना चाहती थीं, लेकिन उनके आवेदन को खारिज करते हुए कहा गया कि इस्तीफा मंज़ूर किया गया और 90 दिनों को रिलेक्सेशन पीरियड भी जा चुका इसलिए उनकी अर्ज़ी मान्य नहीं है।

आईएएस कन्नन का विशेष केस

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विभाजित कर दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के फैसले का विरोध कर, इस फैसले को जम्मू कश्मीर के लोगों की आज़ादी पर हमला बताकर और सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ मुखर होकर अगस्त 2019 में इस्तीफा देने वाले आईएएस कन्नन गोपीनाथन के मामले में दिलचस्प यह है कि उनका इस्तीफा भी सरकार ने मंज़ूर नहीं किया था।

यही नहीं, इसी साल अप्रैल में सरकार ने एक पत्र जारी कर कन्नन को सेवा में लौटने का आदेश भी दिया। हालांकि कन्नन ने सेवा में लौटने से इनकार करते हुए खुद कहा था ‘चूंकि मैं खुद आईएएस के पद से इस्तीफा दे चुका हूं इसलिए अब मुझे आईएएस अफसर कहा नहीं जा सकता और इसी कारण मुझे वही सैलरी और अन्य आर्थिक लाभ मिल सकते हैं.’

कितने समय में इस्तीफा होता है मंज़ूर?

तय नहीं है, चूंकि यह सरकारी प्रक्रिया है इसलिए हर मामले के लिए इसमें समय अलग ढंग से लग सकता है। किसी आईएएस का इस्तीफा एक हफ्ते के भीतर भी मंज़ूर हो सकता है तो किसी का एक साल में भी नहीं। इस बारे में विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित एक रिपोर्ट कहती है कि इस्तीफा मंज़ूर करना या न करना सरकार की एक ‘प्रेशर तरकीब’ होती है, जिसके ज़रिये किसी आईएएस अफसर पर कई तरह से दबाव बनाए जा सकते हैं।

आसान तरीके से ऐसे समझें कि ओडिशा कैडर की अपराजिता सारंगी मामले में क्या हुआ था! सारंगी ने 2018 में इस्तीफा देकर भाजपा जॉइन की थी और फिर वह भुबनेश्वर से लोकसभा चुनाव जीती भी थीं। उनका इस्तीफा कुछ ही दिनों में मंज़ूर किया गया था। इसी तरह, पहले 2005 बैच के अधिकारी ओपी चौधरी के मामले में एक हफ्ते के भीतर इस्तीफा मंज़ूर हुआ था, जिन्होंने इस्तीफे के बाद भाजपा जॉइन की थी।

इसी रिपोर्ट के मुताबिक आईएएस अफसर मानते हैं कि इस्तीफा मंज़ूर किए जाने में चार से पांच महीने तक का वक्त लगना तो ठीक है, लेकिन कन्नन और फैसल जैसे मामलों में एक साल के वक्त तक इस्तीफा मंज़ूर नहीं हुआ।

गृह मंत्रालय ने फैसल की पुन: बहाली की

गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि फैसल की इस्तीफा वापस लेने की याचिका को स्वीकार कर लिया गया है और उनकी अगली नियुक्ति की घोषणा जल्द की जाएगी। गृह मंत्रालय, जो अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश (एजीएमयूटी) कैडर के लिए कैडर नियंत्रण प्राधिकरण है, ने इस्तीफा वापस लेने की उनकी याचिका के बारे में जम्मू-कश्मीर प्रशासन से राय मांगी थी।
अधिकारियों ने कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, आईएएस की देखभाल करने वाले विभाग के अलावा सभी तिमाहियों से रिपोर्ट मिलने के बाद, उनकी याचिका को स्वीकार करने का निर्णय लिया गया और बाद में इस महीने की शुरुआत में बहाल कर दिया गया।

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