रायपुर। मुख्यमंत्री के आव्हान पर संस्कृति विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 01 मई को मजदूर दिवस के अवसर पर संस्कृति विभाग के परिसर स्थित गढ़ कलेवा में आज से ‘बोरे बासी थाली’ का शुभारंभ होने जा रहा है। उल्लेखनीय है कि बोरे बासी रात में पके हुए चावल को रातभर पानी में भिगोकर सुबह पूरी तरह भीग जाने पर भाजी, टमाटर चटनी, टमाटर-मिर्ची की चटनी, प्याज, बरी-बिजौरी एवं आम-नींबू के आचार के साथ मजे से खाया जाता है।

क्या खास रहेगा बोरे बसी थाली में

गढ़ कलेवा में राज्य के पकवानो की शृंखला में आज से बोरे बासी थाली भी चार चाँद लगाती नज़र आने वाली है। गढ़ कलेवा में उपलब्ध इस ठेठ छत्तीसगढ़िया व्यंजन की थाली को दो प्रकार में बांटा गया है। जिनके रेट भी अलग अलग है। पहली थाली 80 रु की है जिसमे आपको बोर बासी से भरी हुई एक थाली के साथ चटनी, प्याज़, मिर्च, भाजी और चावल आटे का पापड़ उपलब्ध होगा। दूसरी थाली जिसकी कीमत 150 रु रखी गयी है जिसमे आपको बोरे बासी के अलावा कटोरियों में दो किस्म की भाजी, चटनी, अचार, लाइ बडी, बिजौरी, मुनगा की सब्जी उपलब्ध कराई जायेगी।

जानिए क्या है इस पारम्परिक व्यंजन की खासियत

बोरे बासी स्वास्थ्यगत दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है, इसमें विटामिन बी-12 की प्रचूर मात्रा के साथ-साथ ब्लड और हाइपरटेंशन को नियंत्रित करने का भी काम करता है। बोरे बासी में आयरन, पोटेसियम, कैल्शियम की मात्रा भरपूर होती है। इसे खाने में पाचन क्रिया सही रहता है एवं शरीर में ठंडकता रहती है। छत्तीसगढ़ के किसान मजदूरों के साथ-साथ सभी वर्गों के लोग चाव के साथ बोरे बासी का सेवन करते आ रहे हैं। आधुनिकता और भाग-दौड़ भरी जिन्दगी तथा जागरूकता के अभाव में इसके खान-पान में जरूर कमी आई है, लेकिन छत्तीसगढ़ी खान-पान का प्रचार-प्रसार इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए बेहतर उपाय होगा।

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