संपादकीय विशेषः छत्तीसगढ़ के सूरते हाल पर हसदेव 'हंसे या रोए'…. आपका आभार… आपका आभार

संपादकीय। जंगलों की कटाई से सालों से हांफ रहा छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहे जाने वाले हसदेव को मंगलवार को मंगलवाली खबर मिली, हस ‘देव’ को बताया गया सिंह ‘देव’ ने उसे बचा लिया, अब तो सूबे के मुखिया भी उसे बचाने के लिए साथ आ गए हैं। इस सूकून भरी खबर पर हसदेव को भरोसा नहीं हो पा रहा उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वो हंसे या रोए…

हसदेव बताना चाहता है. उसने कई सभ्यताओं को बनते बिगड़े देखा है, लाखों आदिवासी उनकी गोद में सदियों से शरण पाते रहे हैं। उसने यह भी देखा है कि पूंजीवादी लोग रात के अंधेर में किस बेहरमी से उसकी शाखाओं पर कुल्हाड़ी चलते हैं। हसदेव को अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है कि उसे मिले जीवनदान की उम्र लंबी हो सकती है।

अभी तो सूबे के दो बड़े चेहरों ने उसे बचा लिया, आगे अगर सरकार बदली तो उसे बचाने कौन आएगा, रात के अंधेरों में उसे पूंजीवादी कुल्हाड़ी से कौन बचाएगा। उसकी गोद में बसने वाले आदिवासी भोले हैं मगर वो उसे बचाने
उतनी ही ईमानदारी से अपना घरबार छोड़कर जंगलों में डेरा डाले भूखे प्यासे बैठे हैं। जिसकी वजह से सरकार को भी झुकना पड़ा।

हसदेव ये बात बखूबी जानता है, उसकी गोद में बसे भोलेभाले आदिवासी पूंजीवाद की पूंजी की ताकत के आगे बेबस हैं, अगर उसकी कोख से कोयला उत्खनन करने वाली कंपनी कोर्ट कचहरी से कोई आदेश लेकर आ गई तो उसे बचाना मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल हसदेव के सामने केवल एक ही विकल्प है…वो सूबे के दोनों नेताओं को ये कहता रहे कि आपका आभार…आपका आभार…जो आपने मुझे बचा लिया। वो कभी हंसता है कभी सियासत की सूरतेहाल पर आंसू बहाता है और कहता जाता है आपका आभार…आपका आभार…

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