डीएमएफ के फंड में बड़ा घालमेल
डीएमएफ के फंड में बड़ा घालमेल

0 बिना मांग और सरकारी दर तय किये खरीदी की
0 कृषि यंत्रों की बजाय प्रोसेसिंग यूनिट पर कर दिए खर्च

रायपुर। टीआरपी डेस्क/ सालाना लगभग 1500 करोड़ रुपए के डीएमएफ फंड को नौकरशाह के भरोसे छोड़ने का क्या खामियाज़ा उठाना पड़ता है, यह जल्द ही सरकार भी समझ जाएगी। बिना किसी मांग के पूरे प्रदेश में कृषि यंत्रों की बजाय अलग-अलग क़िस्म के प्रोसेसिंग प्लांट क्रय कर लिए गए हैं।

डीएमएफ फंड से अफसरों ने मिनी आटा चक्की, तेल मिल, मिनी दाल और राईस मिल की बेतहाशा खरीदी कर ली है। बाजार दर से ज़्यादा कीमत में क्रय की गई, अब तक ये मशीनें ना तो ज़रूरतमंद लोगों को दी गई है और ना ही कोई रेट कॉन्ट्रेक्ट के तहत ली गई है।

अफसरशाही की इन कारगुज़ारियों की तस्दीक जब TRP ने की तो सरकारी पैसों की फ़िज़ूलख़र्ची सामने आई है। विभागीय गोदामों में दाल, तेल, राइस की मिनी प्रोसेसिंग मशीन के आलावा बड़ी तादात में मिनी आटा चक्की कंडम होती पड़ी है। टीआरपी को सूत्रों ने बताया कि अगर इन मशीनों को वितरित नहीं करना था, तो ख़रीदा क्यों गया इसका कोई जवाब नहीं देता।

घोटालों के लिए हुआ ये खेल

सवाल उठना लाज़मी है कि जब किसानों ने कोई मांग नहीं की थी और इन मशीनों का कोई सरकारी क्रय मूल्य ही तय नहीं है तो इन्हें बाजार दर पर लेने की किन लोगो को हड़बड़ी थी। तक़रीबन 3 से 4 सालों में डीएमएफ फंड की राशि से कृषि यंत्रों के बदले प्रोसेसिंग यूनिट पर तक़रीबन दो से ढाई सौ करोड़ रूपये यूं ही फूंकने की वजह क्या है। इसी तरह केंद्र की “रफ़्तार” योजना के तहत आने वाली गौठानों की राशि 50 करोड़ को मनमाफिक खर्च की भेंट चढ़ा दिया गया।

सवा लाख की मशीनें 8 लाख में लेने की तैयारी

प्रोसेसिंग से जुडी 4 मशीनों की बाजार में कुल कीमत महज़ एक से सवा लाख रूपये है, ऐसे में इन्ही मशीनों को कृषि विभाग 8 लाख रूपये में खरीदने तैयार है। बता दें कि केंद्र की “रफ़्तार” योजना के गोठानो के लिए मशीनरी की सरकारी खरीदी दरें भी तय ही नहीं हैं, फिर किस आधार पर इनकी खरीदी 8 लाख रूपये तय कर दी गई है, यह जांच का विषय है।

चैंप्स के पोर्टल पर दर्ज मशीनों की अधिकतम कीमत

एक भी मशीन का आरसी तय नहीं

डीएमएफ फंड की राशि से कृषि यंत्रों की दरें तो तय हैं, लेकिन प्रोसेसिंग प्लांट का रेट तय नहीं है। वैसे भी नियमतः किसी भी चीज़ की खरीदी का रेट कॉन्ट्रेक्ट RC होना ज़रूरी है। जैसे सरकारी दरें सीएसआईडीसी, जेम्स, चैंप्स या विभाग द्वारा आरसी यानि कि रेट कॉन्ट्रेक्ट होता है मगर अब तक इन मशीनों की कोई दर भी तय नहीं है और न ही कोई शर्तें हैं। ताकीद हो कि डीएमएफ और रफ़्तार योजना के पैसों की बेकदरी के दस्तावेज़ टीआरपी के पास उपलब्ध हैं।

हज़ारों करोड़ का आता है बजट

छत्तीसगढ़ में सन 2015 में DMF का कानून लागू होने के बाद से अब तक संबंधित जिलों में करीब 9223 करोड़ रूपये का संग्रहण DMF के मद में हुआ है। इसी तरह केंद्र की रफ़्तार योजना के तहत गत वर्ष 20 और इस साल तक़रीबन 30 करोड़, कुल मिलाकर 50 करोड़ रुपया किसानों के लिए कृषि उपकरणों की खरीदी के लिए बतौर बजट आया। राज्य के डीएमएफ जिलों में 7 ही बड़े जिले हैं जिनमें कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा सहित बस्तर और सरगुजा संभाग के है। इन दोनों ही माध्यमों से आने वाले पैसों को बिना सरकारी दरें तय कर यंत्रों की खरीदी की जा रही है।

जिम्मेदारों का तर्क champs के दर पर खरीद

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कृषि यंत्रों की खरीदी के लिए बकायदा वर्ष 2017 से champs पोर्टल की व्यवस्था की गई है, जो बदस्तूर जारी है। इस पोर्टल में अधिकृत एजेंसियों द्वारा मशीनों की अधिकतम कीमत (MRP) का उल्लेख किया गया है। किसान अपनी मांग और ज़रूरत के मुताबिक यंत्र देखता है और एजेंसी से मोलभाव करके मशीन खरीदता है। दूसरी ओर अगर रेट कॉन्ट्रेक्ट किया जाये तो इन मशीनों की दर काफी कम हो जाती है, लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि उक्त फंड की राशि के तहत मनमाने ढंग से मशीनें बिना मांग और रेट कॉन्ट्रेक्ट के champs पोर्टल को आधार मानते हुए सरकारी खरीदी कर ली गई है। सरकार द्वारा इन ख़रीदियों की जांच करा ली जाये तो सारी गड़बड़ी उजागर हो जाएगी।

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