कृषि विभाग में साढ़े 3 साल में 7 संचालक, आखिर क्या है वजह..?

उचित शर्मा

राज्य शासन ने IAS अधिकारियों की तबादला सूची जारी की है। इस सूची में कृषि विभाग मे संचालक के पद पर रहे यशवंत कुमार का भी नाम है, जिन्हें इस पद से हटाकर अय्याज तम्बोली को संचालक, कृषि बनाया गया है। बीते 3.5 साल में इस किसान हितैषी सरकार के आने के बाद इस पद पर यह 7वीं पदस्थापना है। कृषि प्रधान राज्य छत्तीसगढ़ में कृषि संचालक के पद पर एक अधिकारी का औसतन 6 महीने बैठना कई सवालों को जन्म देता है। माइक्रोस्कोप लगा कर देखें तो हर 6 मासी फसल के लिए एक संचालक। आखिर ऐसी क्या वजह है कि इस महत्वपूर्ण पद पर बार-बार अधिकारियों का तबादला किया गया है।

छत्तीसगढ़ में कृषि विभाग के संचालक पद पर बीते 3.5 वर्ष के दौरान पदस्थ रहे अधिकारियों में एम एस केरकेट्टा, भीम सिंह, टामन सिंह सोनवानी,नीलेश क्षीरसागर, अमृत खल्खो, यशवंत कुमार और अब अय्याज तम्बोली शामिल हैं।

2000 करोड़ के बजट वाले कृषि विभाग के अधीन केंद्र और राज्य की अनेक योजनाएं संचालित हैं, वहीं पैदावार को बढ़ाने के नित नए प्रयोग भी विभाग के माध्यम से होते रहते हैं। वर्तमान में सरकार की महत्वाकांक्षी नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी योजना में भी कृषि विभाग की अनेक योजनाएं समाहित हैं। इस लिहाज से विभाग में संचालक का पद काफी अहम हो जाता है। ऐसे में एक अधिकारी को इस पद पर बैठकर कृषि विभाग की नीतियों को समझने में 6 माह लग जाते हैं। वह अपनी सोच के मुताबिक किसानों के हित में किसी योजना पर अमल की शुरुआत करता है, इसी बीच उसका तबादला हो जाता है। ऐसा करने से विभाग और किसानों का किस तरह भला होगा, ये समझ से परे है।

कृषि संचालक के अलावा “कृषि उत्पादन आयुक्त” के पद पर भी अधिकारियों की ज्यादा समय तक पदस्थापना नहीं रही है। यहां भी अधिकारी बार-बार बदले गए हैं। बीते साढ़े 3 साल में यहां KDP राव की सेवनिवृत्ति के बाद मनिंदर कौर द्विवेदी, डॉ एम गीता और डॉ कमलप्रीत सिंह की पदस्थापना हो चुकी है।

कृषि विभाग के अंतर्गत ही आने वाले बीज निगम में भी नई सरकार के आने के बाद से प्रबंध संचालक (MD) के पद पर 5 अधिकारियों की पदस्थापना हो चुकी है। इनमें जन्मेजय महोबे, नरेंद्र दुग्गा, भुवनेश यादव, अनिल साहू और फिर दोबारा भुवनेश यादव को यहां दोबारा पदस्थ किया गया है।

इस बात अनुभव की करें तो कृषि विभाग में 5 IAS और एक IFS पदस्थ हैं, मगर धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ राज्य में खेती-बाड़ी को इसका कितना लाभ हासिल हो रहा है, यह यक्ष प्रश्न है।

भारी-भरकम बजट वाले कृषि विभाग की हालत यह है कि यहां बीजों और खाद इत्यादि की जांच के लिए कोई अच्छा लैब नहीं है, राज्य के लैब में होने वाली जांच में काफी विलंब हो जाता है। इसका लाभ सीधा व्यापारियों को हो जा रहा है।

सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी भी इसी विभाग के चलते हो रही है। विधानसभा में कृषि मंत्री शुरू से ही विवादों के घेरे में रहे हैं। विपक्ष हर सत्र में उनकी घेरेबंदी करता है। कभी खाद-बीज की कमी, कभी घटिया बीज की खरीदी पर तो कभी रकबे से ज्यादा मक्का बीज की खरीदी, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के इतर कृषि यंत्र की बजाय गैर जरुरी चीजों की खरीदी को लेकर विधानसभा में हंगामा होता रहा है।

कृषि विभाग के कामकाज पर नजर डालें तो ये विभाग अपनी कार्यशैली की वजह से हमेशा से चर्चा में रहा है। कभी बीज निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते, कभी हार्टिकल्चर की वजह से, कभी चैम्पस या फिर किसानों और गौठानों के लिए बिना दर तय किये कृषि यंत्रों और अन्य सामग्रियों की खरीदी की वजह से कृषि विभाग का काफी “नाम” रहा है। आलम ये है कि किसानों के नाम पर खरीदे गए यंत्र आज जिलों में धूल खा रहे हैं।

तमाम अखबारों में कृषि विभाग, हार्टिकल्चर और बीज निगम के तथाकथित जिम्मेदारों के कारनामों का समय-समय पर खुलासा होता रहा है। स्वाभाविक है कि निचले स्तर से लेकर ऊपर के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत के बिना इस तरह का घोटाला संभव नहीं है। ऐसे ही घोटाले में प्रदेश के कृषि मंत्री ने संबंधितों के खिलाफ FIR दर्ज करने की घोषणा विधानसभा में की थी मगर आज तक इस तरह की कोई भी कार्रवाई नहीं हो सकी है।

कृषि विभाग के अंदरखाने के बंद दरवाजे के दरख्तों से यह भी खबर आ रही है कि आने वाले समय में किसानों को मिलने वाली सीधी सब्सिडी (DIRECT BENIFICIERY TRANSFER) की सुविधा भी बंद की जा रही है। DBT की सुविधा का बंद होना अपने आप में सवालिया निशान लगाता है। अब ये योजना किन व्यापारियों को लाभ दिलाने के लिए बंद की जा रही है ये भी एक सवाल है।

सच कहें तो छत्तीसगढ़ का कृषि विभाग चंद लाइजनरों के कब्जे में हैं। यहां कुछ आशीर्वाद प्राप्त सप्लायरों का जमावड़ा है, जिनके माध्यम से सारे काम होते हैं। हास्यास्पद स्थिति तो ये है कि यहां भूसा और खली जैसी चीजों की सप्लाई के लिए लघु व्यवसाइयों की बजाय बड़े घरानों से लाइफ टाइम अनुबंध कर लिया जाता है। कुल मिलकर यहां कृषि विभाग पर लालफीता शाही हावी रही है।

वर्तमान में कृषि विभाग में संचालक के पद पर एक और नए अधिकारी की पदस्थापना हो गई है। देखना है कि नवा-रायपुर में बैठे उच्च अधिकारी और राजनेताओं के कथित दबाव पर कब तक इस तरह मनमाने तरीके से तबादले होते रहेंगे। प्रदेश के मुखिया को इस बात की चिंता करने की जरुरत है कि किसानों की हितैषी के रूप में पहचान बनाने वाली उनकी सरकार किसानों की पैदावार और आय बढ़ा पाने कितना सफल हो पाई है।

बहरहाल हजारों करोड़ के बजट वाले छत्तीसगढ़ के कृषि विभाग के बारे में तो यही कहा जा सकता है कि…

धूल चेहरे पे थी.. हम आईना साफ करते रहे…

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