डॉ. निर्मल वर्मा

रायपुर। चिकित्सा शिक्षा विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त संचालक डॉ. निर्मल वर्मा द्वारा अपनी पदस्थापना के दौरान सन 2020 में करोड़ों की खरीदी की गई, जिसकी शिकायत संचालनालय, चिकित्सा शिक्षा से करते हुए आरोप लगाया गया कि खरीदी में काफी अनियमितता बरती गई है।

4 सदस्यीय समिति को सौंपा जांच का जिम्मा

डॉ. निर्मल वर्मा के खिलाफ की गई शिकायत की जांच के लिए गठित 4 सदस्यीय समिति में डॉ. सुमित त्रिपाठी को अध्यक्ष, डॉ. तरुणेश राज, डॉ. अमित कुमार भारद्वाज और श्रीमती सुषमा ठाकुर को बतौर सदस्य शामिल किया गया। समिति ने सम्पूर्ण जांच के बाद हाल ही में अपनी रिपोर्ट सौंपी है।

भंडार क्रय नियमों का नहीं किया पालन

जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि तत्कालीन अतिरिक्त संचालक शिक्षा डॉ. निर्मल वर्मा को संचालनालय चिकित्सा शिक्षा का वित्तीय अधिकार सौंपा गया था, जिसमे वे संचालक के नोशनल अनुमोदन के पश्चात वित्तीय अधिकार का प्रयोग कर सकेंगे, किन्तु डॉ.निर्मल वर्मा द्वारा लैब सामग्री एवं उपकरण आदि के क्रय की कार्यवाही में छ.ग. भंडार क्रय नियमों का पालन नहीं किया गया। नियम के मुताबिक एक लाख से अधिक की खरीदी की कार्यवाही खुली निविदा से किया जाना है, मगर डॉ.निर्मल वर्मा द्वारा 2 करोड़, 65 लाख 29 हजार के लैब सामग्री एवं उपकरण आदि के क्रय आदेश कोटेशन के आधार पर जारी किये गए हैं।

अधिकारों का किया दुरूपयोग

डॉ.निर्मल वर्मा को नर्सेस काउंसिल में क्रय हेतु किसी भी प्रकार की वित्तीय शक्तियां नहीं दी गई थी, लेकिन अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए उन्होंने 7 लाख 30 हजार रूपये के फर्नीचर और कंप्यूटर आदि सामग्रियों की खरीदी कर ली। नियम के मुताबिक नर्सेस काउंसिल द्वारा 50 हजार रूपये से अधिक का व्यय राज्य सरकार के अनुमोदन के बिना नहीं किया जा सकता, मगर डॉ.निर्मल वर्मा ने 7 लाख 30 हजार रूपये के क्रय आदेश जारी कर दिए।

डॉक्टर के CR में की प्रतिकूल टिप्पणी

शिकायत की जांच के दौरान पाया गया कि डॉ.निर्मल वर्मा द्वारा कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष कुमार सिन्हा के गोपनीय प्रतिवेदन (CR) में दो सालों तक प्रतिकूल टिप्पणी की गई है, मगर इसके एवज में कोई भी प्रमाणित एवं साक्ष्य दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया और उनके ग्रेडिंग को “ग” से “क” कर दिया गया।

बंद पड़े अस्पताल में नर्सिंग पाठ्यक्रम की कर दी अनुशंसा

डॉ.निर्मल वर्मा ने भारती कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग, दुर्ग को बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम के लिए 60 सीटों की अनुशंसा कर दी जबकि उन्होंने निरिक्षण टीप में स्पष्ट उल्लेख किया था कि अस्पताल के कुछ हिस्से में मरम्मत कार्य चल रहा है और अस्पताल चालू हालत में नहीं है। प्रतिवेदन में इस बात का उल्लेख भी किया गया है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग ने रायपुर, बिलासपुर एवं दुर्ग संभाग के जिलों में (अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के विकासखंड को छोड़कर) नवीन GNM /BSC NURSING /POST BESIC (BSC NURSING) संस्थाओ को अनुमति प्रदान नहीं करने का आदेश दिया था। इन जिलों में अनुमति उन्हीं संस्थाओं को दी जाएगी जिनका स्वयं का कम से कम 100 बिस्तरों का अस्पताल हो। इन सबके बावजूद डॉ.निर्मल वर्मा ने भारती कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग, दुर्ग को नर्सिंग पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने की अनुशंसा कर दी।

जांच प्रतिवेदन में इस बात का भी उल्लेख है कि डॉ. निर्मल वर्मा ने लीगल प्रकरणों के प्रभारी अधिकारी के रूप में फोटोकॉपी-प्रिंटिंग से जुड़े 3 फर्मों का फर्जी बिल वाउचर जमा करके भुगतान हासिल किया है।

संचालक ने की कार्यवाही की अनुशंसा

जांच दल से मिले प्रतिवेदन के आधार पर संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ विष्णु दत्त ने सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर तमाम बिंदुओं का उल्लेख किया है और डॉ. निर्मल वर्मा द्वारा वित्तीय अनियमितता की पुष्टि करते हुए उनके खिलाफ सिविल सेवा आचरण नियम के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की है। डॉ. वर्मा वर्तमान में बतौर प्राध्यापक, कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, चिकित्सा महाविद्यालय में पदस्थ हैं।

गौर करने वाली बात ये है कि डॉ. निर्मल वर्मा द्वारा करोड़ों की खरीदी कोरोना काल में की गई और यह तर्क दिया गया कि प्राकृतिक आपदा या कानून व्यवस्था की विषम परिस्थितियों में बिना निविदा बुलाये ही सीधे सक्षम अधिकारी द्वारा सामग्रियों की खरीदी की जा सकती है। ऐसे में क्या डॉ. वर्मा द्वारा की गई खरीदी को अनुचित ठहराया जा सकता है? यह सवाल जानकर लोग उठा रहे हैं। फ़िलहाल जांच प्रतिवेदन मिलने के बाद शासन द्वारा क्या कार्यवाही की जाती है, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई है।

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