Irregulars Paradise -पाठ्य पुस्तक निगम में अनियमिताओं का बोलबाला
Irregulars Paradise -पाठ्य पुस्तक निगम में अनियमिताओं का बोलबाला

विशेष संवादाता, रायपुर

विभाग से भ्रष्टाचार को खत्म करने के दावे के बाद भी छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम अब भी एक ही ढर्रे पर ही चल रहा है। 100 करोड़ के बजट वाले इस विभाग में इस साल का बजट भी अनियमितताओं की भेट चढ़ चुका है। आपको बता दें कि दो साल पहले हुई ऑडिट में विभाग के अफसरों का 80.98 करोड़ का घोटाला सामने आया था। जिसपर कार्यवाही के नाम पर महज खानपूर्ति हुई।

इस वर्ष भी विभाग एक नया घोटला करने की तैयारी में है। दरअसल निगम में एक जैसे काम के लिए दो विभाग को अलग-्लग भुगतान किया जा रहा है। आसान शब्दों में कहें तो विभाग एक, वस्तु एक, समय भी एक परंतु काम की दर तय करने का पैमाना अलग-अलग है।

पाठ्य पुस्तक निगम में विविध मुद्रण की निविदा के नेगोशिएशन में दो वर्ष पूर्व की दर से 20-25 प्रतिशत वृद्धी कर अनुमोदन किया गया है। उल्लेखनीय है कि विविध मुद्रण में मुद्रक द्वारा ही कागज लगाया जाता है और इन दरों में लगभग 90 प्रतिशत मूल्य कागज का ही रहता है।

दूसरी तरफ़ कागज ख़रीदी की निविदा में नेगोशिएशन उपरांत विगत वर्ष की दर से 55 प्रतिशत वृद्धि अनुमोदन कर कार्यादेश जारी कर दिया गया। ऐसे में लगने लगा है कि या तो प्रबंध संचालक को इस बात से अंधेरे में रखा गया की विविध मुद्रण में 90 प्रतिशत काग़ज का ही मूल्य होता है।

उदहारण के लिए विविध के कार्य जो टेक्स्ट बुक के कार्य से इतर है, जिसमें कोई प्रिंटर अपना पेपर ख़रीद के प्रिंट कर दे रहा है। उसमें वृद्धि की अनुशंसा 20% और जिसमें विभाग खुद पेपर ख़रीद के दे रहा है उसमें 55% के करीब दर में अंतराल है।

स्कूली किताब से लेकर विविध कार्यों के लिए कागज़, ज़िल्द और अन्य मुद्रण कार्य की शर्तें और दरें इस कदर अलहदा हैं जिसका बेजा मुनाफा सीधे तौर पर निगम के औहदेदारों की जेबों में जा रा है। क्योंकि बिना सामान्य सभा के प्रस्ताव और खरीदी करने व अनुमति देने वालों की रज़ामंदी के बिना यह संभव नहीं।

घोटाले का एक किस्सा 2 साल पुराना

अक्टूबर-नवम्बर 2019 और दिसम्बर 2020 में अनूठी अनियमितता निगम में हुई थी। महाप्रबंधक और वरिष्ठ वित्त प्रबंधक के संयुक्त हस्ताक्षर के बिना ही चेक जारी हुआ। तब अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा था, छोड़े नहीं जाएंगे दोषी। लेकिन फिर क्या हुआ और अब भी उसी तरह की अनियमिताओं के ढर्रे में चल रहे इदारे को सुधरने में वे नाकामयाब ही हैं।

बता दें कि ऑडिट में एक और रोचक घोटाला पकड़ में आया था। निगम के अफसरों ने रायपुर के राजाराम प्रिंटर्स को 8 करोड़ 20 लाख रुपए से अधिक की राशि का भुगतान कर दिया गया था। लेकिन मज़े की बात यह कि राजराम प्रिंटर्स से क्या काम कराया गया है, इसके कोई दस्तावेज निगम के पास मौजूद ही नहीं है। प्रकाशक से कार्यादेश, मुद्रित सामग्री और उसके परिवहन का विवरण प्रकाशक से बिल, वाउचर, पावती और चालान की प्रति भी नदारद थी।