HIGH COURT

बिलासपुर। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कमर्शियल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें जंगल सफारी का मास्टर प्लान और डीपीआर बनाने का काम लेने वाली फर्म को अनुंबध रद्द किए जाने के एवज में करीब 2 करोड़ रुपये का मुआवजा देने को कहा गया था। फर्म कोर्ट के समक्ष स्पष्ट नहीं कर पाया कि उसने कितना नुकसान उठाया है।

ये है मामला :

रायपुर के अवर न्यायालय ने मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम के तहत 11 दिसंबर 2017 को एक आदेश पारित किया, जिसकी पुष्टि 30 अक्टूबर 2018 को वाणिज्यिक न्यायालय ने की। इस आदेश में कंसलटेंसी कंपनी लर्न नेचर कंसल्टेंट फर्म के पक्ष में शासन को आज से 3 महीने के भीतर 1 करोड़ 84 लाख 76 हजार 640 रुपये का भुगतान करने और मूल राशि पर प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत की दर से ब्याज देने का आदेश दिया। फर्म को निविदा प्रक्रिया के बाद नया रायपुर में जंगल सफारी परियोजना के विकास के विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) और पर्यवेक्षण के बाद मास्टर प्लान तैयार करने का काम दिया गया था। मास्टर प्लान को अनुमोदन के लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सीजेडए) को भेजा गया।

निचली अदालत में फर्म ने बताया था कि उसने वन विभाग में डीपीआर दायर की थी, जिसे वन विभाग के माध्यम से सीजेडए को अनुमोदन के लिए भेजा जाना था। वन विभाग से वे अनुमोदन का पत्र प्राप्त करने का इंतजार कर रहे थे। किसी न किसी कारण से अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ। फर्म ने डीपीआर का 1 करोड़ 32 लाख रुपये का बिल बनाया था। इसका विभाग ने भुगतान नहीं किया। भुगतान के लिए जब फर्म ने वन विभाग को नोटिस दी तो विभाग ने अनुबंध को ही समाप्त कर दिया। इस पर फर्म ने मध्यस्थता में अपील की जहां से उसके पक्ष में आदेश दिया।

इस आदेश के विरुद्ध अपील करते हुए राज्य शासन ने हाईकोर्ट को बताया कि फर्म सीजेडए के दिशानिर्देशों के अनुरूप ले आउट बनाने में विफल रहा। इसके चलते मास्टर प्लान के बाद विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को वन विभाग ने मंजूरी नहीं दी। कई बार फर्म के साथ संपर्क कर त्रुटियों को सुधारने का अवसर दिया गया लेकिन वह अनुबंध की शर्तों का पालन करने में विफल रहा। इसके कारण अनुबंध समाप्त कर दिया गया। निचली अदालत का निर्णय दिया कि अनुबंध समाप्त करने का आदेश मनमाना एवं अवैध है और भुगतान का आदेश दिया।

हाईकोर्ट में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल ने वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि फर्म यदि नुकसान का दावा करते हैं तो इसके लिए आवश्यक है कि वह नुकसान के होने को साबित करें। इसे अदालत के सिर पर यह कहते हुए नहीं डाला जा सकता कि यह विवरण है, जो मेरी क्षति हुई। मैं आपसे यह हर्जाना चाहता हूं। प्रकरण में हानि के विशिष्ट कारणों का पूरी तरह से अभाव है। वादी फर्म का दायित्व है कि वह नुकसान को निर्दिष्ट करे और नुकसान की सीमा को ठीक तरह से इंगित करे।

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