SECURITY GAURD

कोरबा। SECL की कोरबा में बूढ़ी हो चुकी खदानों पर अब यहां के सुरक्षा कर्मियों का नहीं, कबाड़ चोरों का राज है। ये हम नहीं, वहां समय-समय पर होने वाली घटनाएं बता रही हैं।

वैसे तो SECL की कोरबा जिले की खदानों में सुरक्षा के लिए CISF और त्रिपुरा रायफल्स की सेवाएं ली जा रहीं हैं, मगर पुरानी और बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी खदानों में SECL के ही सुरक्षा कर्मियों को ही तैनात कर दिया गया है। इन खदानों की तरह ही बूढ़े हो चुके विभागीय सुरक्षा कर्मी निहत्थे होकर आखिर उन कबाड़ चोरों का सामना कैसे करेंगे जो हथियारों से लैस होकर आते हैं और खुले आम लोहे के सामान उठाकर निकल जाते हैं। ऐसी ही एक घटना में कल रात SECL की बलगी खदान में चोरों ने जमकर पथराव किया, इस दौरान आधा दर्जन कर्मी घायल हो गए।

एक कर्मी की आंख फूटी

इस दौरान ड्यूटी पर तैनात अन्य सुरक्षाकर्मी केशव प्रसाद केंवट, गनपत राम यादव, मोहन लाल जायसवाल, हरनाम सिंह कंवर, दुबराज सिंह को मारपीट के कारण चेहरा,पीठ, सिर में चोट लगी है। वहीं हरनाम सिंह कंवर के दाहिने आंख में गंभीर चोट लगी है। बताया जा रहा है कि उसकी एक आंख की रौशनी चली गई है। उसे अपोलो अस्पताल बिलासपुर रिफर किया गया है

कोयला नहीं लोहे की हो रही है सुरक्षा

कोरबा जिले में SECL के बांकी क्षेत्र में 70 के दशक में भूमिगत कोयला खदानें खली गईं। इनमे से अधिकांश बंद हो चुकी हैं। बलगी की खदान के बारे में बताया जा रहा है कि वह घाटे पर चल रही है और यहां से बहुत ही कम मात्रा में कोयला निकल रहा है। दरअसल खदान परिसर में लोहे के काफी सामान पड़े हुए हैं। इसी की सुरक्षा का काम इस परियोजना के कर्मचारी दिन-रात करते हैं। आलम ये है कि यहां हर रात बड़ी संख्या में चोर पहुंचते हैं और वर्कशॉप में पड़े लोहे उठाकर ले जाते हैं। इनकी संख्या और आक्रामक रुख को देखते हुए कर्मचारी कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं रहते। बीती रात गिरोह के सदस्यों ने ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों पर पहले पथराव किया और फिर इनसे मारपीट भी की। बताया जा रहा है कि सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस पार्टी पर भी चोरों ने पथराव किया। इस दौरान गिरोह के सदस्य वर्कशाप से कीमती सामान लेकर फरार हो गए। इस मामले में बांकीमोंगरा पुलिस मारपीट और गाली-गलौज की धारा के तहत जुर्म दर्ज कर आरोपियों की तलाश में जुटी है।

अर्द्ध सैनिक बल की तैनाती क्यों नहीं ?

SECL की कोरबा जिले की खदानों में अर्धसैनिक बल की तैनाती तो की गई है, मगर बताया जाता है कि बांकी परियोजना के खदान नुकसान में चल रहे हैं, इसलिए यहां की सुरक्षा को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती और यहां SECL के विभागीय सुरक्षा कर्मियों और दूसरे कर्मचारियों को चौकीदारी के लिए लगा दिया गया है। ऐसे में अगर चोर जानलेवा हमला कर रहे हैं तो इसका जिम्मेदार आखिर कौन होगा।

फल-फूल रही हैं कबाड़ की दुकानें

SECL की कोयला खदानें जहां भी संचालित हैं वहां कबाड़ खरीदने वालीं दुकानें पनप जाती हैं। बांकी मोंगरा क्षेत्र में भी कबाड़ की दुकानें चल रहीं हैं, जहां खदान से चुराया हुआ लोहा बड़े ही आराम से ख़रीदा जाता है। ये दुकानें किसके संरक्षण में चल रहीं हैं, यह बताने की तो जरुरत ही नहीं हैं।

कोयला और डीजल की भी होती है चोरी

कोरबा में SECL की खदानों से लोहे के साथ ही बड़े पैमाने पर कोयले की चोरी होती है। खदानों के आसपास के इलाकों के लोग बड़ी संख्या में दिन के वक्त खदानों में घुस कर कोयला उठा ले जाते हैं। रात के वक्त घुसने वाला चोरों का गिरोह खदान में खड़ी मशीनों और गाड़ियों से भारी मात्रा में डीजल निकाल कर ले जाते है। इनके खिलाफ कभी-कभार ही धर-पकड़ की कार्रवाई होती है, वरना ये हर रोज इसी तरह कोयला, लोहा और डीजल की चोरी करते हैं।

कर्मचारियों का मनोबल गिर रहा

इस मामले में एसईसीएल के जनसंपर्क अधिकारी शनिश्चंद्र का कहना है कि बलगी वर्कशाप में हुई घटना चिंता का विषय है। कबाड़ चोरों के हमले से एसईसीएल के सुरक्षा कर्मी ने अपनी एक आंख की रौशनी खो दी है। कोरिया जिले में पिछले नवंबर माह में चर्चा खदान में भी इस तरह की घटना हुई थी। इस तरह की घटनाओं से सुरक्षा कर्मियों का मनोबल गिर रहा है।

गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व ही देशभर में बंद हो चुकीं या फिर बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी कोयला खदानों से नए सिरे से उत्पादन शुरू किया गया। और यह तर्क दिया गया कि इससे कोयले का उत्पादन बढ़ जायेगा, मगर इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि ऐसी खदानों को चलाने से लाभ कम, नुकसान ज्यादा है। बांकी क्षेत्र की खदानों को भी इसी रणनीति के तहत फिर से चालू किया गया, मगर जानकर बताते हैं कि इन खदानों को चलाने से कोई लाभ नहीं हो रहा है। यही वजह है कि यहां की खदानों से अधिकांश कर्मचारियों को हटाकर दूसरी नई खदानों में भेज दिया गया है। बहरहाल SECL प्रबंधन को नए सिरे से विचार-विमर्श कर पुरानी खदानों के संचालन को लेकर फैसला करना चाहिए, अन्यथा खदानों की परिसंपत्तियां भी इसी तरह कबाड़ियों की भेंट चढ़ती रहेंगी।

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