श्रीनगर । जम्मू के ऊपरी डांगरी गांव की रहने वाली 47 वर्षीय रेखा शर्मा ने आतंकवादियों से लड़ने के लिए बंदूक उठा ली है। स्थानीय स्वयंसेवकों के एक समूह को उनके क्षेत्र में आतंकी हमलों का मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। रेखा शर्मा ने कहा कि उसने बंदूक उठाने का फैसला इसलिए किया क्योंकि वह अपने पड़ोस की एक विधवा के विलाप को सहन नहीं कर सकी। विधवा महिला ने इस साल 1 और 2 जनवरी को गांव में एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों में अपने दोनों बेटों को खो दिया था। 47 साल की रेखा शर्मा ने कहा, “अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों से लड़ने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह हम डांगरी की महिलाएं भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से लड़ेंगी।

जम्मू विश्वविद्यालय से मास्टर्स और बी.एड. की डिग्री हासिल कर चुकीं तीन बच्चों की मां रेखा शर्मा ने कहा कि आतंकवादियों ने मेरे घर, मेरे गांव और मेरी मातृभूमि में खून बहाया है…हम इस नरसंहार का बदला लेंगे। उन्होंने कहा कि उसने बंदूक उठाने का फैसला इसलिए किया क्योंकि वह अपने पड़ोस की एक विधवा के विलाप को सहन नहीं कर सकी, जिसने इस साल 1 और 2 जनवरी को गांव में एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों में अपने दोनों बेटों को खो दिया था।

पति को खोने के बाद महिला ने आतंकी हमले में दोनों बेटों को खोया

रेखा शर्मा ने बताया कि उनकी पड़ोसी सूरज देवी ने कुछ साल पहले अपने पति को खो दिया था, लेकिन अपने दोनों बच्चों दीपक शर्मा और प्रिंस शर्मा को अपने सीमित संसाधनों के बावजूद अच्छी शिक्षा दिलाई। दोनों बच्चों ने गणित में एमएससी की डिग्री हासिल की थी। प्रिंस को पिता के स्थान पर अनुकंपा के आधार पर जल शक्ति विभाग में नौकरी मिली थी। वहीं, दीपक को लद्दाख में सेना के फील्ड ऑर्डिनेंस डिपो में नियुक्त किया गया था, लेकिन ड्यूटी ज्वाइन करने से एक सप्ताह पहले ही उनकी मौत हो गई थी। आतंकी हमले में घायल हुए प्रिंस की कुछ दिनों बाद मौत हो गई थी।

विधवा की आंखों के सामने मारे गए थे दोनों कमाऊ बेटे

रेखा शर्मा ने कहा कि आप उस महिला के दर्द की कल्पना नहीं कर सकते जिसके दोनों बच्चे उसकी आंखों के सामने मारे गए। मैं उसकी चीखें नहीं सुन सकी। उन्होंने कहा कि सूरज की हालत ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर उसके पास कोई हथियार होता और वह उसे फायर करना जानती तो शायद आतंकवादी मौके से भागने में सक्षम नहीं होते।

शादी के बाद दिल्ली से जम्मू आई थीं रेखा शर्मा

रेखा शर्मा ने कहा कि वह कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि उसे बंदूक चलाना नहीं आता था। रेखा शर्मा के पति रणधीर कुमार शर्मा बिजनेसमैन हैं। उनका बड़ा बेटा ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद बिजनेस कर रहा है, जबकि बेटी जम्मू विश्वविद्यालय से एमएससी की पढ़ाई कर रही है और सबसे छोटा बेटा नौवीं कक्षा में है। दिल्ली की रहने वाली रेखा शर्मा की शादी 1997 में डांगरी में रणधीर से हुई थी। बब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अपने अंतिम चरण में था।

1999 के बाद जम्मू में लौटने लगी थी शांति

रेखा शर्मा ने बताया कि साल 1999 में पास के बाल जराला गांव में एक विवाह समारोह में आतंकवादियों द्वारा लगभग आधा दर्जन लोगों की हत्या के बाद उनके पति रणधीर ने उन्हें बंदूक चलाना सिखाया था। रणधीर उस समय ग्राम रक्षा समिति के सदस्य थे। इलाके में शांति लौटने के बाद लोग वीडीसी के बारे में भूल गए और अपने हथियार अपने ट्रंक में रख दिए। रेखा ने कहा कि उनके पति ने भी अपनी बंदूक सरेंडर कर दी। उन्होंने कहा कि तब लोगों में कोई डर नहीं था और देर रात में भी सभी खुलेआम घूम रहे थे।

आतंकी हमलों के बाद बढ़ी हथियारों की मांग

रेखा शर्मा ने कहा कि हाल के आतंकवादी हमलों में दीपक और प्रिंस सहित सात नागरिकों की मौत के बाद हथियारों की मांग फिर से बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि मैं गांव की अन्य महिलाओं को भी हथियार उठाने और आतंकवादियों से लड़ने के लिए प्रशिक्षित होने के लिए राजी करूंगी।